बुधवार, फ़रवरी 2

कुछ इधर की कुछ उधर की

कुछ इधर की कुछ उधर की

लोकतंत्र
लोकतंत्र का हुजूर असल अर्थ है यही
लोग अपने हों यदि, तन्त्र अपना हो गया !

जान पहचान के हैं हजार फायदे
अर्जियां धरी रहीं, यूँ ही काम हो गया !

दे दिला दिया उन्हें चाय-पानी वास्ते
हफ्ते भर से था खराब, फोन ठीक हो गया !

एब्स्ट्रैक्ट आर्ट

निकले जो सर के ऊपर महान है वह रचना
हैरान करके छोड़े, आलीशान है वह रचना !

जो उलटी है या सीधी पहचानना हो मुश्किल
इंसान या गधे की, यह जानना हो मुश्किल !

वह कलाकृति अमर है जो हो परे अकल से
लाखों में वह बिकेगी, टेढ़ी हो जो शकल से !

अनिता निहालानी
२ फरवरी २०११

2 टिप्‍पणियां:

  1. अनीता जी,

    आप वाकई एक सम्पूर्ण रचनाकार है......हास्य में लिपटा करार व्यंग्य......बहुत खूब.....आर्ट वाला तो बहुत ही बढ़िया है.........बहुत खूब|

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