शुक्रवार, अगस्त 22

जब

जब



औघट राह टूटा कगार
थाह नहीं पाए कोई,
कंटक पथ पथराये नैना
पार कहाँ जाये कोई !

मति कुंठित सोया विवेक
जब, कुंद हुई दृष्टि सबकी,
हित अनहित भी नहीं सूझता
क्षार हुई सृष्टि मन की !

हृदय भ्रमित गान अधूरा
स्वप्न खंडित सा कोई,
कहाँ जाना ? किसे जाना ?
जानता यह कहाँ कोई ! 

9 टिप्‍पणियां:

  1. गान अधूरा
    कैसे पूरा ?
    भोजन कहाँ
    बचा है चूरा ?
    मंगलकामनाएं हम सबको !

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  2. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
    इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 24/08/2014 को "कुज यादां मेरियां सी" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1715 पर.

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  3. बहुत गहरे भाव के साथ... सुंदर रचना..

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