गुरुवार, अगस्त 28

वर्तन सृष्टि का

वर्तन सृष्टि का


माँ की गोद की तरह थामे है धरा
आकाश सम्भाले है पिता के हाथ की मानिंद
मखमली गलीचों से बढ़कर
कोमल दूब का स्पर्श
जो भर जाता है एक अहसास आनिंद !
स्वर्ग और कहाँ होगा कभी ?
नाचते हुए मोर देखे हैं अभी  
सुनी है पंछियों की रुनझुन
रंगो का यह अनोखा फैलाव
सागर का उतार और चढ़ाव
झुकता हर शाम लाल फूल
पर्वतों के पीछे उन अदृश्य चरणों पर
अनुपम है चमकीले सितारों का झुरमुट
कैसा अनोखा यह वर्तन सृष्टि का
खो जाता संसार और हर तरफ
है जलवा उसी का !  

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