बुधवार, अगस्त 27

ये जो सामने

ये जो सामने

नीला आकाश दिख रहा है
श्वेत हल्के मेघों से आवृत
जिसमें अभी-अभी एक पंछी तिरता हुआ
निकल गया है
जिसको छूने की होड़ में
बढ़ती चली जाती है
धरा की कोख से उगी हरियाली
ऊंचे वृक्षों की कतारें
रोकती हैं दृष्टि पथ
क्षितिज का
जिसके नीचे मंडरा रही हैं
 तितलियाँ सुमनों पर
ये गवाह है
अनगिनत सृष्टियों का
अथवा तो घट रहा है इसके नीचे
हर युग.. एक साथ.. अभी इस क्षण !
क्यों कि अनंत है आकाश
कालातीत और भविष्य द्रष्टा भी !


7 टिप्‍पणियां:

  1. क्यों कि अनंत है आकाश
    कालातीत और भविष्य द्रष्टा भी !
    ...बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

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  2. संजय जी, कैलाश जी व अनु जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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  3. Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
    आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 29 . 8 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !

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  4. लाज़वाब प्रस्तुति / शानदार अभिव्यक्ति

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