फिर भी अनछूया ही रहता
बन मलयज वन-वन डोल रहा
शशि मुख से बदली खोल रहा
तू पुहिन बिंदु बन कर ढुलका
जल में जीवन रस घोल रहा !
साँझ-सवेरे, विपिन घनेरे
पंकज पादप, मानुष चेहरे,
सब तेरी ही कथा सुनाते
दिवस मनोहर घोर अँधेरे !
हर शब्द तुझे इंगित करता
हर भाव तुझे मन में भरता,
हर भाषा तुझको ही गाती
फिर भी अनछूया ही रहता !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..शुभकामनाएं सहित..
जवाब देंहटाएंहर शब्द तुझे इंगित करता
जवाब देंहटाएंहर भाव तुझे मन में भरता,
हर भाषा तुझे ही गाती है
फिर भी अनछूया ही रहता !
...वाह...असीम सत्ता की लाज़वाब अभिव्यक्ति...
साँझ-सवेरे, विपिन घनेरे
जवाब देंहटाएंपंकज पादप, मानुष चेहरे,
सब तेरी ही कथा सुनाते
दिवस मनोहर घोर अँधेरे !सुन्दर प्रांजल अभिव्यक्ति
माहेश्वरी जी, कैलाश जी व वीरू भाई, स्वागत व आभार !
जवाब देंहटाएंसुंदर लेखन व रचना , आ. धन्यवाद !
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