जब
औघट राह टूटा कगार
थाह नहीं पाए कोई,
कंटक पथ पथराये नैना
पार कहाँ जाये कोई !
मति कुंठित सोया विवेक
जब, कुंद हुई दृष्टि सबकी,
हित अनहित भी नहीं सूझता
क्षार हुई सृष्टि मन की !
हृदय भ्रमित गान अधूरा
स्वप्न खंडित सा कोई,
कहाँ जाना ? किसे जाना ?
जानता यह कहाँ कोई !
सुंदर लेखन व रचना , अनीता जी धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आशीष जी, स्वागत व आभार !
हटाएंगान अधूरा
जवाब देंहटाएंकैसे पूरा ?
भोजन कहाँ
बचा है चूरा ?
मंगलकामनाएं हम सबको !
सत्य वचन सतीश जी
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 24/08/2014 को "कुज यादां मेरियां सी" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1715 पर.
बहुत बहुत आभार राजीव जी
हटाएंपार कहाँ पाये कोई !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत गहरे भाव के साथ... सुंदर रचना..
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