मंगलवार, अगस्त 5

उर उसी पी को पुकारे

उर उसी पी को पुकारे


झिलमिलाते से सितारे
झील के जल में निहारें,
रात की निस्तब्धता में
उर उसी पी को पुकारे !

थिर जल में कीट कोई
खलबली मचा गया है,
झूमती सी डाल ऊपर
कोई खग हिला गया है !

दूर कोई दीप जलता
राह देखे जो पथिक की,
कूक जाती पक्षिणी फिर
नींद खुलती बस क्षणिक सी !

स्वप्न ले जगत सारा
रात्रि भ्रम जाल डाले,
कालिमा के आवरण में
कृत्य कितने ही निभा ले !

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 06 अगस्त 2014 को लिंक की जाएगी........
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. उर उसी को पुकारे--बहुत खूबसूरत,भावाव्यक्ति.

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  3. स्वप्न ले जगत सारा
    रात्रि भ्रम जाल डाले,
    कालिमा के आवरण में
    कृत्य कितने ही निभा ले !.........बहुत सुन्दर
    सावन का आगमन !
    : महादेव का कोप है या कुछ और ....?

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  4. यशोदा जी, रविकर जी, प्रतिभा जी, मन जी, कालीपद जी, कुंवर जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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