वह अनंत पथ खुद से जाता
उस अनन्त पथ के हो राही
बाधाओं से क्या घबराना,
जन्मों की जो चाह रही है
उसे थाम कर बढ़ते जाना !
गह्वर भी हैं सँकरे रस्ते
भय के बादल घोर अँधेरे,
कर्मों की जंजीर पड़ी है
अपना ही मन देगा धोखे !
किन्तु नहीं पल भर को इनकी
व्यर्थ व्यथा में जकड़ो खुद को,
एक उसी की लगन लगी हो
बल देंगी राहें कदमों को !
प्रतिपल नीलगगन से आतीं
लहरें सिंचित करतीं मन को,
नीचे धरती माँ सी थामे
दृष्टि टिकी हो मात्र लक्ष्य पर !
भाव जगें पल-पल शुभता के
उनकी आभा में लिपटा तन,
वह अनंत पथ खुद से जाता
क्यों संशय में सिमटा है मन !