बुधवार, नवंबर 15

अभी समय है नजर मिलाएं


 अभी समय है नजर मिलाएं


नया वर्ष आने से पहले
नूतन मन का निर्माण करें,
नया जोश, नव बोध भरे उर
नये युग का आह्वान करें !

अभी समय है नजर मिलाएं
स्वयं, स्वयं को जाँचें परखे,
झाड़ सिलवटों को आंचल से
नयी दृष्टि से जग को निरखे !

रंजिश नहीं हो जिस दृष्टि में
नहीं भेद कुछ भले-बुरे का,
निर्मल आज नजर जो आता
कल तक वह धूमिल हो जाता !

पल-पल बदल रही है जगती
नश्वरता को कभी न भूलें,
मन उपवन हो रिक्त भूत से
भावी हित मन माटी जोतें !

कर डालीं थी कल जो भूलें
उनकी जड़ें मिटा दें उर से,
नव पौध प्रज्ञा की उगायें
नव चिंतन से सिंचन कर के !

बने-बनाये राजपथ छोड़
नूतन राहों का सृजन करे,
नया दौर बस आने को है
मन शुभता का ही वरण करे !

गुरुवार, नवंबर 9

एक निपट आकाश सरीखा



एक निपट आकाश सरीखा



नयन खुले हों या मुँद जाएँ
जीवन अमि अंतर भरता है,
मन सीमा में जिसे बांधता
वह उन्मुक्त सदा बहता है !

चाह उठे उठ कर खो जाये
दर्पण बना अछूता रहता,
एक निपट आकाश सरीखा
टिका स्वयं में कुछ ना कहता !

अकथ कहानी जिसने बाँची
चकित ठगा सा चुप हो जाता,
जाने कितने वेष धरे हैं  
युग युग स्वयं को दोहराता !