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गुरुवार, जुलाई 14

बम विस्फोट

बम विस्फोट

हवा में उठता शोर, गंध, शोले और
चीथड़े लाशों के
दो पल में जिंदगी ने दम तोड़ा
कटे सर, कहीं धड़
बर्बरता ने सारी सीमाओं को छोड़ा

चीखें, कराहटें, आर्तनाद
विलाप, विनाश, विध्वंस
कहीं दूर नफरत ने जाल बिछाया
कहर बरसाया

शैतान कभी मरा ही नहीं
दानव आज भी जिन्दा हैं
जीवित हैं राक्षस
आतंकियों के रूप में  

की दानव ने ही हथियारों की खेती
बमों के बीज उगाए
कभी धर्म, जाति, कभी देश के नाम पर
मासूमों पर बरसाए

सहमे, सिमटे डरे हुए लोग
मौत के क्रूरतम चेहरे
को भौंचक खुली आँखों से
देखते सो गए  
लोग जो कभी गुनगुनाते थे.
हँसते, गाते थे
बमों की आवाज से बहरे हो गए !