बुधवार, मई 29

उसको खबर सभी की



उसको खबर सभी की

खोया नहीं है कोई भटका नहीं है राह
अपने ही घर में बैठा बस घूमने की चाह

जो दूर से भी दूर और पास से भी पास
ऐसा कोई अनोखा करता है दिल में वास

उसको खबर सभी की जागे वह हर घड़ी
कोई रहे या जाये बाँधे नहीं कड़ी

इक राज आसमां सा खुलता ही जा रहा
वह खुद ही बना छलिया खुद को सता रहा

नजरों से जो बिखरता उसका ही नूर है
कहता दीवाना दिल वह कितना दूर है

कोई फूल फूल जाकर मधुरस बटोरता है
मीठी सी इक डली बन वह राह जोहता है

सोमवार, मई 27

फिर फिर भीतर दीप जलाना होगा



फिर फिर भीतर दीप जलाना होगा


नव बसंत का स्वागत करने
जग को अपनेपन से भरने
उस अनंत के रंग समेटे
हर दर बन्दनवार सजाना होगा !

सृष्टि सुनाती मौन गीत जो
कण-कण में छुपा संगीत जो
आशा के स्वर मिला सहज ही
प्रतिपल नूतन राग सुनाना होगा !

अम्बर से रस धार बह रही
भीगी वसुधा वार सह रही
श्रम का स्वेद बहाकर हमको
नव अंकुर हर बार खिलाना होगा !

टूटे मत विश्वास सदय का
मुरझाये न स्वप्न हृदय का
गहराई में सभी जुड़े हैं
भाव यही हर बार जताना होगा !