गुरुवार, फ़रवरी 29

एक लघु कथा

अकेली 


उसकी आँखों से गंगा जमुना बह रही थी। उसने क्या सोचा था और क्या हो गया था। अभी कल तक तो उसका छोटा सा सुखी परिवार था, एक प्यारा सा बेटा, मेधावी पति, जो अपनी ख़ुद की कंपनी खोल रहा था। उसके सास-ससुर भी पास ही रहते थे, उनके साथ भी उसके रिश्ते अच्छे थे। पर आज ऐसा क्या हो गया कि जैसे कोई किसी के घरौंदे को तिनका-तिनका बिखे दे, उसका संसार उजड़ रहा है। उसे याद आया, कॉलेज में वह बहुत सक्रिय थी, खेलकूद और तैराकी की प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी। गाड़ी चलाकर कॉलेज आती थी। उनका प्रेम विवाह हुआ था, पर दोनों के परिवार भी एक-दूसरे को जानते थे सो उनके विवाह में कोई अड़चन नहीं आयी। विवाह के दो वर्षों के भीतर ही वह माँ बन गई, उसका सारा समय बच्चे के साथ बीतने लगा, उसने अपने कैरियर की तरफ़ कोई ध्यान ही नहीं दिया। बेटा जब बड़ा हो गया, उसके पास ख़ाली समय था, पति देव अपने काम में इतने व्यस्त थे कि उसका दिन कैसे बीतता है, इसकी उन्हें कोई खबर नहीं थी। वह उन्हें दफ़्तर छोड़ कर आती, बेटे को स्कूल और जब तक पुत्र की छुट्टी होती, वह ख़ुद कभी किसी मॉल या किसी पुस्तकालय में समय बिताने लगी। ऐसे ही एक दिन उसे वह मिला था, वह एक किताब पढ़कर मुस्कुरा रही थी और वह उसके पास की कुर्सी पर बैठा था। उसने सहज ही पूछा, कौन सी पुस्तक ने आपको इतना मोह लिया है, उसने बताया, और तब ज्ञात हुआ, वह किताब उसने भी पढ़ी है।उनकी बातें चल पड़ीं, फिर तो लगभग रोज़ ही मिलना चलता रहा। न कभी उसने पूछा, वह कौन है, न ख़ुद बताया। दिन हफ़्तों में बदल गये और हफ़्ते महीनों में, अब उनका मिलना कॉफ़ी हाउस में भी होने लगा और एक दिन तो उसने घर आने का निमंत्रण भी दे दिया। उसके पति सुबह निकलते थे तो देर रात ही घर आते थे, पुत्र को स्कूल से लाने में अभी देर थी, उसने सोचा क्यों न घर पर ही चाय पी जाये। जब बात बिगड़नी होती है तो सारे कारण बनते चले जाते हैं, वह रसोई में गई तो उसने पूछा क्या बाथरूम का इस्तेमाल कर सकता है, इशारे से उसे बताकर वह चाय बनाने चली गई, तभी दरवाज़े की घंटी बजी। वह दरवाज़ा खोलने गई, उसके पति ने घर में प्रवेश किया तभी उनके कमरे से वह हाथ पोंछता हुआ आया। वे तीनों सकपका गये। वह कुछ कहती इसके पहले ही जल्दी से नमस्ते कहकर वह घर से निकल गया। पति की आँखों में ज्वाला थी, पर उसने कुछ नहीं कहा और वह भी उल्टे पावों लौट गया। रात तक वह लौटा ही नहीं, फ़ोन भी बंद था।स्कूल से बेटे को भी अपने पिता के घर ले गया। सुबह एक संदेश आया, वह उससे सारे संबंध तोड़ना चाहता है, वह चाहे तो अपनी माँ के घर जा सकती है या वहीं रह सकती है। उसने अपने कुछ घंटों के अकेलेपन को दूर करने के लिए एक मित्र बनाया था, पर अब वह सदा के लिए अकेली थी। 


सोमवार, फ़रवरी 26

कब खुलता यहाँ द्वार तेरा

कब खुलता यहाँ द्वार तेरा 


दिल में ढेरों लिए कामना 

जब कोई याचक आता है, 

‘मैं’ पा लूँगा  परम शक्ति से  

स्वयं को वही भरमाता है !


तब तक नहीं खुला करता है 

द्वार सदा जो खुला हुआ है, 

जब ख़ाली हो मन हर शै से 

तत्क्षण प्रियतम मिला हुआ है !


‘तू’ कहकर जब ढूँढा उसको 

‘मैं’ भी संग हुआ छलता है, 

उसके सिवा न कोई जग में 

सत्य प्रकट पल-पल करता है 


तम से ढका हुआ मन भारी 

बुद्धि चंचला दौड़ लगाये, 

सत के पार विचरता है जो 

कैसे उसकी आहट आये !


एक ही रस्ता एक उपाय 

अर्पण कर सब रहें अमानी, 

जिसने कुछ न चाहा जग में 

‘स्वयं’ की महिमा उसने जानी !


शनिवार, फ़रवरी 24

आर्टिकल ३७०


आर्टिकल ३७० 

 रक्त रंजित था जब कश्मीर 

थमा दिये गये थे पत्थर 

बच्चों-युवाओं के हाथों में 

जो अपने ही वतन के रक्षकों को 

निशाना बनाते थे 

जब चंद लोग निज स्वार्थ की ख़ातिर 

सरहद पार से जा मिले थे 

और उनके नापाक इरादों को 

यहाँ अंजाम देने के मंसूबे पालते थे 

जहन्नुम बना रहे थे जो जन्नत को 

ऐसे में एक जाँबाज़ कश्मीरी लड़की 

और पीएमओ की एक देशभक्त महिला 

उस सपने को पूरा करने का बीड़ा उठाती  हैं 

जो किसी ने बरसों पूर्व देखा था 

आर्टिकल ३७० को हटाने का सपना 

जो कब का हो चुका होता पूरा 

यदि  आड़े न आये होते 

कुछ लोभी राजनेता

कितनी क़ुर्बानियाँ देकर उसे हटाया गया 

एक भटके हुए बेटे को जैसे 

घर वापस लाया गया 

जिसने बना दिया था बेगाना 

अपने ही वतन के एक हिस्से को 

यह फ़िल्म उसी की कहानी है 

जो हर दुनिया के हर नागरिक को सुनानी है 

कश्मीर अब आगे बढ़ रहा है 

हाथ में हाथ डाले भारत के सभी राज्यों के 

तरक़्क़ी की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है 

लाल चौक पर तिरंगा लहराता है 

प्रेम कश्मीरियों के दिल में जगाता है ! 


गुरुवार, फ़रवरी 22

मुक्तेश्वर और जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान

नैनीताल की छोटी सी यात्रा - ३

मुक्तेश्वर और जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान


२१ नंबर 

आज सुबह दस बजे हम मुक्तेश्वर के लिए रवाना हुए। उससे पूर्व रिज़ौर्ट में ही प्रातः भ्रमण किया नदी किनारे एक चट्टान पर स्थित योग कक्ष में प्राणायाम तथा योग साधना की। जल प्रपात, नदी तथा झील की कुछ तस्वीरें उतारीं।आलू-पराँठा और दही का नाश्ता करके आधा घंटा पैदल चल कर, दो बार पहाड़ी नदी पार करके हम उस स्थान पर पहुँचे जहाँ ड्राइवर प्रतीक्षा कर रहा था।

देवदार और चीड़ के वृक्षों से घिरी घुमावदार सड़कों से पद्मपुरी होते हुए हम नैनीताल से लगभग ५१ किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुक्तेश्वर धाम पहुँचे। फलों के बगीचों एवं घने जंगलों से घिरे हुए इस स्थान पर भारतीय पशु अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई है। यहीं पर्वत के शिखर पर भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है।​​मंदिर की वास्तुकला विश्व स्तरीय है, इसे भारत के संरक्षित स्मारकों की श्रेणी में रखा गया है। मंदिर में बहुत भीड़ थी।शिव के ५००० वर्ष पुराने मंदिर में स्वयंभू शिव के दर्शन करना अपने आप में एक अनुपम अनुभव था। ऐसी मान्यता भी है कि पाण्डवों ने अज्ञातवास के काल में यहाँ शिव लिंग की स्थापना की थी।इस  मंदिर में हर वर्ष कई महत्वपूर्ण समारोहों और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। निसंतान दंपति यहां संतान की कमाना से आते हैं। एक गाइड हमें मंदिर के निकट स्थित चौली की जाली नामक स्थान दिखाने ले गया। जहां से हिमालय की हिम से ढकी श्रृंखलाओं का सुंदर दृश्य देखा जा सकता है।

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान द्वारा स्थापित एशिया की बड़ी दूरबीन दूर से दिखायी। नाग के फन की आकृति की एक चट्टान अति आकर्षक थी। तत्पश्चात हम घने वृक्षों से भरे हुए वन में भ्रमण करने के लिए रवाना हुए। वापसी में हमने शिवालय रेस्तराँ में दोपहर का भोजन किया। भालू गढ़ झरने में लगभग दो किलोमीटर की रोमांचक पैदल यात्रा करके हम विशालकाय झरने तक पहुँचे। रास्ते में बाँज और बुरांश के जंगल तथा साथ-साथ बहती हुई नदी मन मोह रही थी।काफ़ी ऊँचाई से गिरते हुए जल प्रपात के दृश्य नयनाभिराम थे। होटल वापस लौटे तो शाम के साढ़े पाँच बज गये थे। रिज़ौर्ट में रात्रि में विशेष भोज का आयोजन किया गया था।आग सेंकने का भी इंतज़ाम था, तीन-चार परिवारों का एक समूह भी आ गया था, जिससे रौनक़ बढ़ गई  थी। सबने आग के चारों ओर बैठकर सूप का आनंद लिया और फ़िल्मी गीतों की अंताक्षरी खेली।कल हमें राम नगर होते हुए जिम कार्बेट जाना है। 



२२ नवम्बर 

​​​​सुबह लगभग आठ बजे हम जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के लिए रवाना हुए। मार्ग में कुछ देर के लिए भीमताल पर रुके।नीले रंग के जल वाला त्रिभुज के आकार का यह विशाल ताल तीन तरफ से पर्वतों से घिरा है। ताल में कमल के फूल खिले हुए थे। पांडव काल से संबंध रखने वाली इस झील के मध्य एक टापू है। यहाँ से सिंचाई हेतु छोटी-छोटी नहरें निकली गई है। हमने कुछ तस्वीरें उतारीं और आगे की यात्रा आरंभ की। जिम कॉर्बेट भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय पार्क है, जो बंगाल बाघ की रक्षा के लिए स्थापित किया गया है। जिसके लिए हमने अपनी सफारी टिकट पहले ही बुक कर ली थी। नेट पर पढ़ा, जिम कार्बेट अचूक निशानेबाज थे, साथ ही उन्हें वन्य पशुओं से प्रेम भी था। कुमाऊँ के कई आदमखोर शेरों को  मारकर उन्होंने अनेकों की जानें बचायी थी। गढ़वाल के रुद्रप्रयाग में भी एक आदमखोर शेर को जिम कार्बेट ने मारा था। उनकी अनेक पुस्तकों में से एक पुस्तक 'द मैन ईटर ऑफ रुद्र प्रयाग' है, जो बहुत प्रसिद्ध हुई। 

हमें कुमाऊँ विकास निगम की खुली जीप द्वारा पार्क के मुख्य द्वार ढेला तक ले जाया गया, जहाँ वनविभाग कर्मचारी द्वारा पहचान पत्र की जाँच की गई। आकाश बिलकुल साफ़ था और धूप खिली हुई थी। गेट के पास ही जंगली फूलों पर तितलियाँ मंडरा रहीं थीं। साथ में अनुभवी गाइड भी दिया गया था, जो पशुओं के बारे में कई रोचक जानकारियाँ देता हुआ जा रहा था। उसने बताया जंगल में बाघ, हाथी, भालू, सुअर, हिरन, चीतल, साँभर, तेंदुआ,नीलगाय, आदि अनेक 'वन्य प्राणी' देखने का अवसर मिल सकता है। इसी तरह इस वन में अजगर तथा कई प्रकार के साँप भी निवास करते हैं। यहाँ लगभग ६०० रंग-बिरंगे पक्षियों की जातियाँ भी दिखाई देती हैं।कॉर्बेट नैशनल पार्क को चार जोन में बाँटा गया है। प्रवेश द्वार से अंदर जाते ही रोमांचक सफर शुरू हो गया। कुछ दूर तक पक्की सड़क के बाद केवल कच्ची पगडंडियों पर ही जीप दौड़ती जा रही थी। पंछियों की मीठी आवाज़ें बरबस लुभा रही थीं। कुछ सुंदर पंछियों के चित्र भी हमारे कैमरे में क़ैद हो गये। एक विशालकाय हॉर्नबिल पक्षी को दिखाने के लिए गाइड ने काफ़ी देर प्रतीक्षा की, जब उसने उड़ान भरी तो उसकी सुन्दर आकृति स्मृति सदा के लिए मन में बस गई। 

हमने अनेक पहाड़ियों, रामगंगा नदी के बेल्ट, दलदलीय गड्ढे, घास के मैदान और एक बड़ी झील​​ के दर्शन भी किए जो जिम कॉर्बेट पार्क की शोभा बढ़ाती है।अब इस पार्क का नाम राम गंगा नेशनल पार्क हो गया है।सूखी हुई घास के मैदान सुनहरे रंग के हो गये थे और दूर क्षितिज में हरी पहाड़ियों के सान्निध्य में अति शोभित हो रहे थे। हमने चितकबरे व सुनहरे हिरणों की कई प्रजातियों को निहारा। जीप को आते देखकर मृग शावक बड़े ही शांत भाव से मुड़कर देखते फिर आगे बढ़ जाते। घने हरे झाड़ों में छिपे हुए वे रामायण के स्वर्ण मृग की याद दिला रहे थे। वृक्षों की डालियों पर बैठे हुए लंगूर तथा वानरों की कई टोलियों ने भी हमारा ध्यान खींचा। उनके परिवार की मंडली एक-दूसरे का ख़याल रख रही थी। अचानक जंगल की निस्तबधता को भंग करती हुई कुछ आवाज़ें गूंजी, तो ड्राइवर रुक गया,गाइड ने बताया, यह टाइगर के निकट होने की निशानी है। बंदर व पक्षी अन्य जानवरों को सचेत  करने  के लिए ऐसी आवाज़ निकलते हैं। लगभग आधा घंटा हम वहीं चुपचाप खड़े रहे, एक दो और सफारी जीपें भी वहाँ आ गयीं। यहाँ सफारी पर आने वाले हर पर्यटक की दिल्ली इच्छा होती है कि कम से कम एक बाघ के दर्शन तो उसे हो जायें, पर शायद आज यह इच्छा पूरी होने वालू नहीं थी। टाइगर बाहर निकलने के बजाय शायद जंगल में भीतर प्रवेश कर गया था। एक-एक करके सभी वाहन चल पड़े और हम मुख्य द्वार से बाहर आ गये। रात को काठगोदम से दिल्ली की हमारी ट्रेन समय पर थी। सुबह मंझला भाई स्टेशन पर लेने आ गया था, स्वादिष्ट नाश्ता करके दोपहर एक बजे एयरपोर्ट के लिए निकले और हवाई यात्रा से देर रात तक बैंगलुरु पहुँच गये। नैनीताल की यह यात्रा एक सुखद स्मृति की तरह मन में बस गयी है।  


सोमवार, फ़रवरी 19

कैंची धाम की यात्रा

नैनीताल की एक छोटी सी यात्रा - २

कैंची धाम की यात्रा 


२० नवम्बर 

सुबह नाश्ते के बाद दस बजे हम नैनीताल से रवाना हुए।सबसे पहले शहर की चहल-पहल से लगभग तीन किलोमीटर दूर  स्थित ‘लवर्स पॉइंट’ नामक स्थान  देखा, जिसे सुसाइड पॉइंट भी कहते हैं। घाटी का दृश्य मनोरम था, यहाँ से खेत, झील और कई सुंदर पहाड़ियाँ दिखाई पड़ती हैं।हमने यादों के रूप में यहाँ की कई तस्वीरें कैमरे में क़ैद कर लीं।सूर्यास्त व सूर्योदय का दृश्य देखने भी लोग यहाँ आते हैं। जीप के ड्राइवर कम हमारे गाइड ने इस स्थान से जुड़ी एक कहानी बतायी। गाँव के एक लड़के और एक अंग्रेज लड़की की प्रेम कहानी; जो ब्रिटिश काल में घटी थी। इस दुखांत कहानी में लड़के को मरवा दिया जाता है, बाद में लड़की भी आत्महत्या कर लेती है। इसी जगह से घोड़े वाले एक अन्य प्रसिद्ध जगह टिफ़िन टॉप के लिए जाते हैं। इसके बाद हमारी कार चीना पीक पर रुकी, जहाँ से हिमालय के हिम शिखर दिखायी पड़ते हैं। शहर से छह किलोमीटर दूर स्थित चीना (नैना) पीक नैनीताल की सबसे ऊँची चोटी है। यहाँ हमने हिम से ढके हुए त्रिशूल, नंदा देवी तथा तीन अन्य शिखर देखने के लिए दूरबीन का उपयोग किया, बहुत ही सुंदर दृश्य था।इस पर्वत की चोटी से नैनीताल शहर की सुंदरता का विहंगम दृश्य भी देखाई देता है । यहाँ से थोड़ी दूर यात्रा करने पर पर ही सूखातल में स्थित इको केव गार्डन आ गया। इस स्थान को वर्ष 1990 में खोजा गया था। प्राकृतिक गुफाओं का उपयोग करके तथा सुंदर बाग-बगीचों द्वारा सुसज्जित यह पार्क एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल बन गया है।कई सुंदर मूर्तियाँ और विभिन्न आकर्षक आकार भी इसकी शोभा बढ़ाते हैं। गुफाओं के नाम टाइगर, पैंथर, बैट, उड़ने वाली लोमड़ी और साही जैसे जानवरों के नाम पर रखे गये हैं। कुछ गुफाओं में बैठकर जाना पड़ता है। टाइगर तो नहीं दिखा, पर उसकी आवाज़ें निरंतर आ रही थीं। यहाँ अनेक पर्यटक आये हुए थे। 

कैंची धाम पहुँचे तो बारह बज गये थे। ​​कैंची धाम  नैनीताल से लगभग 17 किलोमीटर और भवाली से 9 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इस आधुनिक तीर्थ स्थल पर बाबा नीब करौली महाराज का आश्रम है । प्रत्येक वर्ष की 15 जून को यहां पर बहुत बड़े  मेले का आयोजन होता है, जिसमें देश-विदेश के श्रद्धालु भाग लेते हैं।अल्पायु में ही बाबा नीब करौली को ईश्‍वर के बारे में विशेष ज्ञान प्राप्त हो गया था. वे हनुमानजी को अपना आराध्य मानते थे. मंदिर में कई सुंदर मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। काफ़ी भीड़ थी, लोग बैठकर बाबा से अपनी मनोकामनाएँ बता रहे होंगे अथवा पूरी हो जाने पर कृतज्ञता व्यक्त करने आये थे। मन्दिर के सम्पूर्ण वातावरण में एक दिव्य ऊर्जा का अनुभव हो रहा था। नीब करौली बाबा की शिष्या सिद्धि माँ के बारे में एक पुस्तक ख़रीदी।

भवाली से कुछ आगे ही बढ़े होंगे की ड्राइवर ने कहा, चाय पीते हैं। मोड़ पर ही एक दुकान भी दिख गई। वहीं बैठे हुए उस रिज़ौर्ट के मैनेजर से बात की जहाँ हमें रुकना था। उसने बताया, यह रिज़ौर्ट मुक्तेश्वर में नहीं बल्कि चाँफी में है। ड्राइवर ने ईश्वर का धन्यवाद दिया कि कैसे उसे चाय के लिए रुकने की प्रेरणा जगी और उसने पता पूछा, वरना हम मुक्तेश्वर पहुँच गये होते। 



‘मचान’ रेस्तराँ में भोजन करने के बाद हम लगभग दो जगह से नदी पार करके बीस-पच्चीस मिनट कच्चे रास्ते पर पैदल चलकर चाँफी के जंगलसे सटे एक गाँव  में स्थित इस रिज़ौर्ट में आ पहुँचे हैं, जिसका नाम सॉलिट्यूड यानी एकांत बिलकुल सार्थक है। हमारा  सामान पहले ही एक महिला व एक पुरुष कुली ले आये थे।निकट ही कलसा नदी बह रही है, जिसकी आवाज़ एक मधुर धुन सी बज रही है । यहाँ माल्टे, संतरे और नींबू के कई बगीचे हैं।अनेक पक्षियों, झींगुरों और अन्य कीटों की आवाज़ें आ रही हैं। दो परिवार और रह रहे हैं।सामने ही हिम से ढकी चमकती हुई चोटियाँ एक स्वर्गिक अनुभव सी प्रतीत हो रही हैं।हमने रात्रि भोजन में सूप पिया और कुमाऊँनी खिचड़ी खायी। कल शिव धाम तथा मंदिर देखने मुक्तेश्वर जाना है। 

क्रमश:



गुरुवार, फ़रवरी 15

नैनीताल की एक छोटी सी यात्रा

नैनीताल की एक छोटी सी यात्रा 

१९ नवम्बर 

परसों सत्रह तारीख़ की सुबह हम बंगलुरु से लखनऊ पहुँचे थे। लखनऊ हवाई अड्डे का टर्मिनल-२ अभी भी दीपावली की सजावट के कारण बहुत आकर्षक लग रहा था। जूम कार से होटल पहुँच गये। जहां भतीजी की शादी होनी थी। मेंहदी का कार्यक्रम आरंभ होने वाला था। सुंदर सजावट के मध्य तीन कलाकार पारंपरिक पोशाक में मेंहदी लगाने के लिए भी तैयार बैठे थे। युवा इवेंट मैनेजर सारा प्रबंध देख रही थी। ढोल बजने लगे और राजस्थानी लोक गीत गाया गया। अन्य लोगों के साथ भावी दुल्हन ने भी कार्यक्रम में सुंदर नृत्य किया। सभी रिश्तेदार आपस में बातें करते रहे, आपस में मिलने का यही तो मौक़ा होता है।अगला कार्यक्रम रात को था, सो शाम को हम अंबेडकर पार्क देखने चले गये।अत्यंत विशाल और अपने आप में अजूबा यह पार्क मायावती द्वारा २००२ में बनवाया गया था।रात नौ बजे विवाह का अगला कार्यक्रम आरम्भ हुआ। पंडित जी ने मन्त्रोच्चारण के मध्य सगन की रस्म पूरी करवायी। चुन्नी चढ़ाने की रस्म के बाद वर-वधू के मध्य अंगूठी का आदान-प्रदान हुआ। कई रिश्तेदारों के साथ उन दोनों भी नृत्य किया। दूसरे दिन दिन में हल्दी की रस्म भी पूरे विधिविधान और गाजे-बाजे के साथ हुई, रात को विवाह संपन्न हुआ और सुबह तारों की छाँव में विदाई। 

कल रात्रि अर्थात अठारह नवम्बर को हम बाघ एक्सप्रेस से लखनऊ से रवाना हुए। चारबाग़ स्टेशन से ट्रेन एक घंटा देरी से चली।आज सुबह दस बजे हम काठगोदम पहुँच गये। ड्राइवर दीप लेने आया था। बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे थे कि नैनीताल उत्तराखण्ड के कुमायूँ क्षेत्र का एक सुंदर पर्यटक स्थल है; ग्रीष्मकालीन अवकाश में यह नगरी पर्यटकों से पूरी तरह भर जाती है। शीतऋतु में यहाँ हिमपात देखने भी लोग आते हैं; पर कभी जाने का अवसर नहीं मिला था।होटल पहुँचने तक गूगल पर कुछ जानकारी एकत्र की, समुद्र तल से नैनीताल की ऊँचाई छह हज़ार फ़ीट से कुछ अधिक है। इस अंचल में अनेक मनोरम झीलें हैं। इनमें से प्रमुख नैनी झील है। यह झील चारों और से बर्फ से ढके पर्वतों से घिरी है, इसकी कुल परिधि लगभग दो मील है।रास्ते में हनुमान गढ़ी के सुंदर मंदिर में रुके। हनुमान जी के साथ ही यहाँ भगवान राम और शिव के मंदिर भी हैं। यह मंदिर बाबा नीब करौली के आदेशानुसार 1950 के आसपास बनाया गया था।यह स्थान अपने सूर्यास्त के दृश्य के लिए भी प्रसिद्ध है। नैनी झील की शोभा दिखाते हुए ड्राइवर हमें होटल ‘नैनी रिट्रीट’ले आया है। झील में रंग-बिरंगी नावें चल रही थीं, पर्वतों पर खड़े ऊँचे वृक्षों तथा गगन में विचरण करते बादलों का प्रतिबिंब जल में शोभित हो रहा था।।झील के उत्‍तरी किनारे को मल्‍लीताल और दक्षिणी किनारे को तल्‍लीताल कहते हैं।स्कंद पुराण के अनुसार अत्रि, पुलत्स्य और पुलह ऋषि ने इस झील में मानसरोवर का जल भरा था। 



आज भारत-आस्ट्रेलिया के मध्य क्रिकेट का फ़ाइनल खेला जा रहा है। भारत ने २४० रैन बनाये हैं। करोड़ों लोगों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। दोपहर को पौने दो बजे ही नहा-धो कर तैयार हो गये।इस होटल में बेगोनिया के कई रंगों के फूल खिले हैं।होटल में ही कुछ देर टहलने व फ़ोटोग्राफ़ी करने के बाद नीचे उतरकर ‘नैना देवी’ का मंदिर देखने गये।
नैनी झील के उत्‍तरी किनारे पर नैना देवी का भव्य मंदिर स्थित है। माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर स्थान-स्थान पर जा रहे थे, तब जहाँ  उनके शरीर के अंग गिरे वहाँ शक्तिपीठों की स्‍थापना हुई। नैनी झील के स्‍थान पर देवी सती की आँख गिरी थी। हर वर्ष माँ नैना देवी का मेला नैनीताल में आयोजित किया जाता है।पास ही एक गुरुद्वारा भी है, उसमें एक महिला ग्रंथी पाठ कर रही थी तथा दो अन्य महिलाएँ उसे दोहरा रही थीं। एक भव्य मस्जिद भी निकट ही दिखायी दी, जिसकी वास्तुकला का जवाब नहीं है।हमने नैनी झील में नौकायन का आनंद भी लिया। नाविक ने बहुत ही धैर्य से  सभी प्रश्नों का जवाब दिये। झील के एक ओर स्थित है मॉल रोड‍ जिसे अब गोविंद बल्‍लभ पंत मार्ग कहा जाता है। पर्यटकों के लिए यह रोड आकर्षण का केंद्र है। झील के दूसरी ओर की सड़क को ठंडी सड़क कहते हैं। यह  मॉल रोड जितनी व्‍यस्‍त नहीं रहती। यहां पाषाण देवी का मंदिर भी है। ठंडी रोड पर वाहनों को लाना मना है।मंदिर से निकल कर भूटिया मार्केट से गुजरते हुए हम मॉलरोड पर आ गये। जहां तीन-चार वस्तुएँ ख़रीदीं। घर के लिए लकड़ी की एक नाम पट्टिका ख़रीदी, जो कारीगर ने हाथों हाथ बना कर दी। कल हमें मुक्तेश्वर जाना है। 

क्रमशः 





मंगलवार, फ़रवरी 13

दूर हुए पर हृदय निकट थे


दूर हुए पर हृदय निकट थे

​​

सिया-राम के मध्य बहा जो प्रेम भरा दरिया अपार था, दूर हुए पर हृदय निकट थे कान्हा-राधिका में प्यार था ! सत्यवान संग जा यमलोक सावित्री की प्रीत अनोखी, महल-दुमहले तज कर निकली नहीं भक्त मीरा सी देखी ! ऐसे ऊँचे मानदंड हों प्रेम दिवस तभी मने सार्थक, मृत्यु भी न विछोह कर पाये ऐसा हो उर अमर समर्पण !


बुधवार, फ़रवरी 7

जीवन एक हवा का झोंका

जीवन एक हवा का झोंका 


मधु से मधु भर लें अंतर में 

कुछ रंग चुरा लें कुसुमों से, 

अंबर से नीलापन निर्मल 

गह लें विस्तार दिशाओं से !


मन हो जाये गतिमय नद सा

हरियाली दुनिया में भर दे,  

जीवन एक हवा का झोंका 

बन कर जिसे सुवासित कर दे !


कदमों में विश्वास भरा हो 

हाथों में हो बागडोर भी, 

पलकों में नव स्वप्न भरे हों 

पूर्ण सत्य की इक ज्वाला भी !


अपने पथ पर हो निशंक फिर 

राही कदम बढ़ाता जाये, 

कोई साथ सदा है उसके 

मनहर गीत सुनाता जाये !


उर की गहराई से निकलें 

सच के मोती बिखरें जग में, 

नहीं थमे विकास की धारा 

नहीं दम-खम प्रमाद का चले !