शुक्रवार, दिसंबर 30

शुभ हो नया वर्ष




शुभ हो नया वर्ष

चलो एक बार फिर
करें स्वागत नव वर्ष का !
यूँ तो सृष्टि हर क्षण नयी है
उपजती है, मिटती है
उमडती है, गिरती है
बनती है पल-पल अपनी गरिमा में
कुछ और ही...
नहीं था हिमालय का उत्तंग शिखर लाखों वर्ष पूर्व
आज जहाँ है मरुथल, बहती थी जलधार वहाँ
वहाँ आज कंटक हैं...जहाँ फूलों की घाटियाँ थीं कभी  
रूप और आकार बदलते हैं
बदलती हैं चेहरे की रेखाएं भी
नेताओं के भविष्य भी, देशों की सीमाएं भी....

एक वर्ष में भी बदल जाता है बहुत कुछ
चलो एक बार फिर
कुछ वायदें करें खुद से
अपनी सम्भावनाओं को तलाशें
बीज जो मचल रहा है भीतर
फूल बनने को
उसे उचित खाद और जल से सींचें
सुनें दिल की ज्यादा
जब दिमाग कहे शॉर्टकट अपनाने को
दे दिलाकर कुछ अपना काम निकलवाने को....

चलो एक बार फिर
करें यकीन अच्छाई पर
कुछ पेड़ लगाएं
धरती को हरा-भरा छोड़ जाने के लिये
और मत व्यक्त करें
जब चुनाव आएँ...
चलो नववर्ष का करें स्वागत...

गुरुवार, दिसंबर 29

मन में है अपार ऊर्जा


नए वर्ष के लिये कुछ और संकल्प


श्रेष्ठ का चुनाव सदा हो, कुछ भी हेय न हो जीवन में
प्रेय मार्ग पर बहुत चल लिये, श्रेय सधे अब तो जीवन में

मन में है अपार ऊर्जा, सुप्त कहीं न रह जाये
जहाँ पहुंचने की ठानी है, स्वप्न भी उसका ही आये

जो भी जिस क्षण जीवन दे दे, सहज सदा स्वीकार रहे
कोई नहीं कामना व्यापे, परम का ही आधार रहे

भाग्य बना करता है उनका, जो प्रमाद नहीं करते
एक भूल छोटी सी ही हो, देती घाव, नहीं भरते

आगे बढ़ते-बढ़ते जीवन, पीछे लौट नहीं आये
भीतर कोई जाग गया हो, पुनः कभी न सो जाये 

मंगलवार, दिसंबर 27

नई मंजिलें राह देखतीं


नई मंजिलें राह देखतीं

जाने कहाँ-कहाँ से आते, मन दिन-रात गुना करता है
कई विचारों के गालीचे, यह दिन-रात बुना करता है

सोये सोये जन्म बीत गए, जगे भाग्य जो था सोया
वही मिलेगा इस जीवन में, जो कुछ हमने है बोया

रंग भरें सुकल्पनाओं में, जीवन पथ सुंदर होगा
नित नया निखार आयेगा, हर पल तब बेहतर होगा

ऋतु आने पर बीज पनपते, भीतर कोई चेता देता
शुभ संकल्प बीज के सम ही, सही समय पर फल देता

नई मंजिलें राह देखतीं, रस्ते कुछ नए बुला रहे हैं
कर्म सदा हों सबके हित में, गीत यही तो सुना रहे हैं

सोमवार, दिसंबर 26

नए वर्ष के लिये संकल्प


नए वर्ष के लिये संकल्प

मन उपवन नित सजा रहे, न उगने पाए खर-पतवार
मंजिल की बाधा बन जाये, जमे न ऐसा कोई विचार

आशा के कुछ पुष्प उगायें, पोषण दे, ऐसा ही सोचें
कंटक चुन-चुन बीनें पथ से, सदा अशुभ को बाहर रोकें

प्रज्ञा की सुंदर बेल हो, दृढ़ इच्छा का वृक्ष लगे
प्रेम की धारा बहे सदा, बुद्धि, ज्योति बनी जगे

अपसंस्कृति को प्रश्रय न दें, सुसंस्कृति ही पनपे
तहस-नहस न हो मन उपवन, जीवन निशदिन महके

नया-नया सा नित विचार हो, भीतर ज्ञान की ललक उठे
जिज्ञासा जागृत हो मन में, जिजीविषा भी प्रबल रहे

रहे जागरण भीतर प्रतिपल, प्रतिपल श्रद्धा हो अर्जित
आगे ही आगे ही बढ़ना है, भीतर स्मृति हो वर्धित

रविवार, दिसंबर 25

बड़े दिन पर खास आपके लिये हार्दिक शुभकामनाओं सहित


बड़े दिन पर खास आपके लिये


वह एक चरवाहा है
और मैं उसके रेवड़ की सबसे छोटी भेड़
वह बचाता है, जहरीली झाडियों से,
कंटीली राहों से और अनजान गड्ढों से
दुलराता है अपने हाथों में ले....

वह पिता है
और मैं भटका हुआ पुत्र
जो घर लौट आया है
बाद बरसों के  
पिता ने जिसके स्वागत में
किया है कितना विशाल आयोजन...

वह किसान है
और मैं उसके हाथ में पड़ा बीज
जो कभी गिरा चट्टान पर
कभी पगडंडी पर
और आज कोमल भूमि में
एक दिन खिलाएगा जो पुष्प
होने अर्पित उसी को...

वह एक मछुवारा है
जो फंसाता है मनुष्यों को
अपने जाल में
चुने जायेंगे कुछ उनमें से
और शेष लौटा दिये जायेंगे
पुनः भवसागर को...  

शुक्रवार, दिसंबर 23

छूट गयी जब “मैं”


छूट गयी जब “मैं”

छूट गयीं सारी व्यस्तताएँ
छूट गयी जब मैं,
सारे जहाँ का समय अब मुट्ठी में आ गया
छूट गयी जब मैं,
कुछ भी करने को नहीं है जब
है अनंत वक्त अपनी मुट्ठी में
बेफिक्री कैसी पायी है
छूट गयी जब मैं,

फूल ज्यों होता है
अस्तित्त्व हमारा ऐसा ही है
जग तय करता है
उपयोगिता उसकी...
वह तो खिलता है बस अपनी मौज में
यह देह जहाँ भी रहे, काम आये जग के
वाणी हो उपयोगी
और ये हाथ उगायें फूल या लिखें कविता !

मन का तो अब पता ही नहीं चलता
जैसे सूर्य के आते ही अंधकार का
छूट गए सारे आग्रह
सारी पकड़ भी छूट गयी....
अब भीतर मीलों तक चैन बिछा है
अंतहीन शांति
आज समय ही समय है....
जन्मों का यायावर घर लौट आया है
अब नहीं उठानी गठरी
और न ही चलना किसी अगले पड़ाव को
जिस पार उतरने की आस लगाये था मन
दौड़ता फिर रहा था
आज आ पहुँचा है
खत्म हो गयी सारी आपाधापी
और भीतर खाली है
वहाँ कोई भी नहीं है, यात्री लौट गया
पंछी उड़ गया...


गुरुवार, दिसंबर 22

वही तो हमराज है


वही तो हमराज है


राज करना इस जहाँ पर, कायरों का काम है
दिल पे अपने राज कर ले, वह बना सरताज है

सो रहे हम क्यों तिमिर में, जग गया वह सूर्य बन
राह रोशन कर गया जो, वही तो हमराज है

एक छोटा सा जहाँ, गढ़ लिया निज वास्ते
‘मैं’ सलामत यह रहे, ‘तू’ से न हमको काज है

हो थोड़ी पहचान यहाँ, जग मुझको मुड़कर देखे
रात दिन बस बज रहा यूँ, जिंदगी का साज है

सोमवार, दिसंबर 19

तुम धरती के नमक बनो


तुम धरती के नमक बनो


येरूशलम का बेतलेहम गाँव
पूर्व दिशा में चमका तारा,
मरियम-युसूफ के घर जन्मा
परम पिता का पुत्र दुलारा !

हेरोदस राजा घबराया
ज्योतिषियों को तब बुलवाया,
खोजो शिशु को, भेजा उनको
दिल में उसके पाप समाया !

ज्योतिषी गण गौशाले आये
सोना, गंध, लोबान चढ़ाए,
आयी है एक दिव्य आत्मा
कर प्रणाम उसे मुस्काए !

युसूफ को भी मिला संदेश
मरियम व यीशू को बचाओ,
हेरोदस का देश त्याग तुम
मिस्र देश में शीघ्र ही जाओ !

युसूफ तब गलील जा पहुँचा
यीशू तभी नासरी कहलाया,
राजा को भी क्रोध उठा, कई
नन्हें बच्चों को मरवाया !

यूहन्ना इक ज्ञानी आये
यीशू के बारे में बताते,
स्वर्ग राज्य अब निकट आ गया
चर्चा कर फूले न समाते !

यीशू भी गलील से आये
बपतिस्मा लेने तब उनसे,
परम पिता की कृपा मिली तब
हुए प्रसन्न यीशू के तप से !

रोटी से ही नहीं है जीवित
मानव प्रभु के वचन से जीता,
परम पिता की आज्ञा में रह
उसके प्रेम की न ले परीक्षा !

यीशू पुनः गलील लौट गए,
यूहन्ना को जब कैद किया,
धर्म प्रचार किया लोगों में  
दो मछुवों को शिष्यत्व दिया !  

रोगीजन स्वस्थ हो जाते
यीशू जब उपदेश सुनाते,
दुखों में डोल रहे थे जो जन
निकट आ उनके राहत पाते !

दिया पहाड़ी पर उपदेश
दीन बनो, तुम नम्र बनो,
धर्म मार्ग पर सदा चलो
हृदय शुद्ध कर दयावान हो !

मेल-मिलाप रहे आपस में
दुःख से कभी न घबराओ,
स्वर्ग मिलेगा. धरा का सुख भी
परम पिता पर श्रद्धा लाओ !

तुम धरती के नमक बनो
और जगत की ज्योति भी,
तुमसे वह प्रकाश उठेगा
चमक उठेगी परम प्रीति भी !

गाँव-गाँव में घूमे यीशू
अद्भुत कथा, कहानी कहते,
भोले लोगों को समझाते
उन्हें कुरीति से छुड़वाते !

क्रिसमस उत्सव आया आज
प्रभु यीशू की याद दिलाने,
रक्त बहाया जिसने अपना
उस पावन की कथा सुनाने !    

शुक्रवार, दिसंबर 16

चेतन भीतर जो सोया है


चेतन भीतर जो सोया है

बीज आवरण को भेदता
धरती को भेदे ज्यों अंकुर,
चेतन भीतर जो सोया है
पुष्पित होने को है आतुर !

चट्टानों को काट उमड़ती
पाहन को तोड़े जल धार,
नदिया बहती ही जाती है
सागर से है गहरा प्यार !

ऐसे ही भीतर कोई है
युगों-युगों से बाट जोहता,
मुक्त गगन का आकांक्षी जो 
कौन है उसका मार्ग रोकता !

धरा विरोध करे न कोई
अंकुर को बढ़ने देती है,
पोषण देकर उसे जिलाती
मंजिल तक फिर ले जाती है

चट्टानें भी झुक जाती हैं
मिटने को तैयार सहर्ष,
राह बनातीं, सीढ़ी बनतीं
नहीं धारतीं जरा अमर्ष !

लेकिन हम ऐसे दीवाने
खुद के ही खिलाफ खड़े हैं,
अपनी ही मंजिल के पथ में
बन के बाधा सदा अड़े हैं ! 

जड़ पर बस चलता चेतन का
मन जड़ होने से है डरता,
पल भर यदि निष्क्रिय हो बैठे
चेतन भीतर से उभरता !

लेकिन इसको भय सताता
अपना आसन क्योंकर त्यागे,
जन्मों से जो सोता आया
कैसे आसानी से जागे !

दीवाना मन समझ न पाए
जिसको बाहर टोह रहा है,
भीतर बैठा वह प्रियतम भी
उसका रस्ता जोह रहा है !








  

बुधवार, दिसंबर 14

जग में जितना ढूँढा उसको


जग में जितना ढूँढा उसको


क्या कोई ऐसा प्रांगण है
उगे जहाँ हैं सुरभि कमल ?
जहाँ पहुँच कर दोनों मिलते
 परम ब्रह्म व जीव अमल !

जग में जितना ढूँढा उसको
कहीं न पाया अविरत प्यार,  
होश जगे तो भीतर झाँकें,
सुना जहाँ है इक भंडार !

पल-पल जन्मे पल-पल हत हो,
इस सृष्टि का इक-इक कण-कण
यह तन एक नगर है जिसमें,
 छिपे हुए हैं अगणित पल-क्षण !

भुला दिया है जिसको हमने,
वह अपना ही होगा विस्तार
याद आ जाये जिस पल उसकी ,
शायद मिल जायेगा प्यार !




सोमवार, दिसंबर 12

स्वप्न और जागरण


स्वप्न और जागरण

तुमने अपने स्वप्न से मुझे आवाज दी है
तुम बेचैन हो...
शायद भयानक स्वप्न देख रहे हो कोई
पर मैं जाग रही हूँ और नहीं जानती कि
स्वप्न में कैसे प्रवेश किया जाता है
तुम्हारी नींद गहरी है और तुम जागना नहीं चाहते
पर घबराहट झलक रही है तुम्हारे चेहरे पर
स्वप्न की इस दुनिया से बाहर निकल कर ही
तुम्हें भान होगा...अरे, यह तो स्वप्न था
मात्र स्वप्न !
लेकिन तुम्हें प्यारी है नींद भी
तो गिरते हो गड्ढों में या छूट जाती है रेल
बढ़ जाती हैं दिल की धडकनें
यह सब होता है स्वप्न में
उसी में तुम पुकारते हो ईश्वर को
जो जगे हुए को ही मिलता है
किसी के स्वप्न में प्रवेश करना उसे भी नहीं आता
तुम चाहोगे क्या कोई बिना अनुमति के प्रवेश करे
तुम्हारे स्वप्न में...जागना ही होगा तुम्हें...

रविवार, दिसंबर 11

जाग गया है हिंदुस्तान


जाग गया है हिंदुस्तान

सोये हुए जन-जन में अन्ना, फूंक चेतना की चिंगारी
आत्मशक्ति के बल पर तुमने, भारत की तस्वीर संवारी ! 

संसद में हो चर्चा अविरत, भ्रष्टाचार मिटाना होगा
भ्रमित न होगी अब जनता, लोकपाल बिठाना होगा ! 

कोई तो हो ऐसा जिसको, पीड़ित जन फरियाद कर सकें
रक्षक जो भक्षक बन बैठे, उनसे वे निजात पा सकें ! 

न्यायालय में न्याय कहाँ है, पैसे में बिकता कानून
कॉलेजों में सीट नहीं हैं, निगल गये भारी डोनेशन ! 

राशन हो या गैस कनेक्शन, सब में गोलमाल चलता है
ऊपर से नीचे तक देखें, भ्रष्टाचार यहाँ पलता है ! 

नेता भी बिकते देखे हैं, ऑफिसर बेचें ईमान
घोटाले पर घोटाला है, नई पीढ़ी होती हैरान ! 

कोई ऐसा क्षेत्र बचा न, जहां स्वच्छ काम होता है  
महँगाई तो बढती जाती, सबका बुरा हाल होता है ! 

अन्ना ने मशाल जलाई, जाग गया है हिंदुस्तान
झांक के अपने भीतर देखे, बने आदमी हर इंसान ! 

थोड़े से सुख सुविधा खातिर, गिरवी न रखेंगे आत्मा
नई पीढ़ी यह सबक ले रही, अनशन पर बैठा महात्मा ! 

अन्ना का यह तप अनुपम है, देश का होगा नव निर्माण
रोके न रुकेगा यह क्रम, करवट लेता हिंदुस्तान !