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गुरुवार, अप्रैल 21

कविता

 कविता 

भला किससे है 

कविता की महक और मिठास 

शब्दों के सुमधुर जाल से 

या भावों के सुर और ताल से 

कभी ढूँढे नहीं मिलते शब्द पर 

भीतर घन बन उमड़ती हैं भावनाएँ 

या सागर में उठे ज्वार सी 

कभी फुर्सत है शब्द गढ़ने की, तो 

सूने सपाट आकाश सा तकता है मन 

फिर कैसे कोई गुनगुनाए 

इस मरुथल में शब्द पुष्प उगाए 

कभी-कभी ही होता है मेल 

सोने में सुहागे सा 

जब भाव और शब्द दोनों समीप हों 

काव्य की सरिता सहज बहती जाए 

निज सुवास और रस से 

सुहृदों को छूती जाए 

जैसे अंतर को तृप्त करें 

किसी के नेह भरे बोल 

वैसे रख देती है दिल के द्वार खोल 

कभी सुख की बरखा बन बरस जाती 

कभी नयनों में सावन-भादों  भर जाती 

कविता जीवन का फूल है 

उसकी हर अदा क़ुबूल है ! 


बुधवार, मार्च 27

दूर कोई गा रहा है





दूर कोई गा रहा है

कौन जाने आस किसकी
किस बहाने आँख ठिठकी 
प्रीत की गागर बना दिल

बेवजह छलका रहा है !

चढ़ हवाओं के परों पर
अनुगूँज मुड़ जाती किधर
कौन उस पर कान देगा

सुर मधुर बिखरा रहा है !

बद्ध लय ना टूटती है
अनवरत बहती नदी है
मिल गयी निज लक्ष्य से जब

मौन अब बस छा रहा है !



(अभी-अभी दूर बैठे एक पक्षी की आवाज खिड़की से भीतर आ रही थी, फिर अचानक बंद हो गयी.) 

सोमवार, सितंबर 18

एक कलश मस्ती का जैसे


एक कलश मस्ती का जैसे

बरस रहा सावन मधु बन कर
या मदिर चाँदनी मृगांक की,
एक कलश मस्ती का जैसे
भर सुवास किसी मृदु छंद की !

जीवन बँटता ही जाता है
अमृत का एक स्रोत बह रहा,
लहराता सागर ज्यों नाचे
अंतर में नव राग उमगता !

टूट गयी जब नींद हृदय की
गाठें खुल-खुल कर बिखरी हैं,
एक अजाने सुर को भर कर
चहूँ दिशाएं भी निखरी हैं !

भीतर बाहर एक वही है 
एक ललक ही प्रतिपल महके,
धरती अंबर एक सदा हैं
मुस्काता नभ वसुधा लहके !

बुधवार, अगस्त 13

उसने भी कर दिया इशारा

उसने भी कर दिया इशारा

रंग हमारे हाथ लगे हैं
कैनवास है यह जग सारा,
रंगी इसे बना डालें अब
उसने भी कर दिया इशारा !

कोई गीत रचे जाता है
हम भी सुर अपने कुछ गा लें,
गूँजे स्वर्णिम स्वर लहरियाँ
उन संग आशाएं सजा लें !

रचा जा रहा पल-पल यह जग
सृजन हमारे हाथों कुछ हो,
कोई मौन सजाता निशदिन
मिलन हृदय का उससे भी हो !

बिन मांगे ही जो देता है
देख तृप्त होता है अंतर,
नजर जहाँ भी टिक जाती है
उसका ही तो दिखता मंजर !



मंगलवार, जून 21

विश्व संगीत दिवस पर शुभकामनाएँ


संगीत

प्राणों में नव रस भर, मिठास संगीत भरे
स्वर लहरी गुंजित हो, प्रमुदित उर सबके करे !

रसवंती धार बहे, श्रवणों को सार मिले
सुर में जब गीत उगें, मन को बहार मिले

जीवन को सिंचित कर, रग-रग में अमिय भरे
स्वर लहरी गुंजित हो, विकसित उर कलिका करे !

चेतन कर सुप्त हृदय, नव भाव जगा देता  
व्याकुल मन सहला कर, नव आस जगा देता !

युग-युग से राग व सुर, मानस में ललक भरे
स्वर लहरी गुंजित हो, पुलकित अंतर कर दे !

अनिता निहालानी
२१ जून २०११