पिता
पिता वह मजबूत तना है
जिसके आधार पर पनप रहा है परिवार
और माँ वह जड़
जो दिखाई नहीं देती, पर जिसकी वजह से खड़ा है वृक्ष
और जो मुखरित है नई नई कोंपलों और कलिकाओं में...
पिता की रगों में दौड़ता है सत्
सत् जो शाखाओं से होता हुआ उतर आया है फूलों में
जिनके भार से झुक गयीं हैं शाखाएँ
धरा तक
और नई जड़ों ने गाड़ दिये हैं अपने डेरे
वृक्ष जीवित रहेगा बनेगा साक्षी प्रलय का
पिता की आँखों में सुकून है भीतर अपार संतोष
जो रिस रहा है
पत्तियों के आखिरी सिरों तक ...
अनिता निहालानी
१९ जून २०११