मंगलवार, मई 17

अभी

अभी

अभी खुली हैं आँखें
तक रही हैं अनंत आकाश को
अभी जुम्बिश है हाथों में
 लिख रही है कलम प्रकाश को
अभी करीब है खुदा
पद चाप सुनाई देती है
अभी धड़कता है दिल
उसकी झंकार खनखनाती है
अभी शुक्रगुजार है सांसें
भीगी हुईं सुकून की बौछार से
अभी ताजा हैं अहसास की कतरें
डुबाती हुई सीं असीम शांति में
अभी फुर्सत है जमाने भर की
बस लुटाना है जो बरस रहा है
अभी मुद्दत है उस पार जाने में
बस गुनगुनाना है जो छलक रहा है  



(वर्तमान के एक क्षण में अनंत छुपा है) 

शुक्रवार, मई 13

गुरूजी के जन्मदिन पर


गुरूजी के जन्मदिन पर



शब्द नहीं ऐसे हैं जग में
जो तेरी महिमा गा पायें,
भाव अगर गहरे भी हों तो
व्यक्त हृदय कैसे कर पायें !  

'तू' क्या है यह तुम्हीं जानते
अथवा तो ऊपरवाला ही,
क्या कहती मुस्कान अधर की
जाने कोई मतवाला ही !

जाने कितने राज छिपाए
मंद-मंद मुस्कातीं ऑंखें,
अन्तरिक्ष में उड़ता फिरता
मन मनहर लगा नव पांखें !

सबके कष्ट हरे जाएँ बस
यही बसा दिल में तेरे है,
सबके अधर सदा मुस्काएं
गीत यही तूने टेरे हैं !

लाखों जीवन पोषित होते
करुणा सहज भिगोती मन को,
हाथ हजारों श्रम करते हैं
सहज प्रेरणा देती उनको !

तेरा आना सफल हुआ है
भारत का मस्तक दमकाया,
नेहज्योति जला कर जग में
 खुशियों का उजास फैलाया !