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बुधवार, दिसंबर 21

कान्हा बंसी किसे सुनाए

कान्हा  बंसी किसे सुनाए


वरदानों से झोली भर दी 

पर हमने क़ीमत कब जानी, 

कितनी बार मिला वह प्रियतम 

किंतु कहाँ सूरत पहचानी !


आस-पास ही डोल रहा है 

जैसे मंद पवन का झोंका, 

कैसे कोई परस जगाए 

बंद अगर है हृदय झरोखा !


रुनझुन का संगीत बज रहा 

पंचम  सुर में कोकिल गाए, 

कानों में है शोर जहाँ का 

कान्हा  बंसी किसे सुनाए !


एक नज़र करुणा से भर के 

दे देती प्रकृति पुण्य प्रतीति, 

राहों के पाहन चुन-चुन कर 

जीवन में मधुरिम रव भरती !


अमर  अनंत धैर्यशाली वह 

हुआ सवेरा जब जागे तब,

आनंद लोक निमंत्रण देता 

लगन लगे मीरा वाली जब !




सोमवार, अगस्त 1

वह आज भी प्रतीक्षा रत है..


वह आज भी प्रतीक्षा रत है..

लुकाछिपी खेलने वाले बच्चों में
एक जन छिप गया दूर सबकी नजरों से
ऐसी जगह, जहाँ ढूँढ न सका कोई भी उसे
कुछ देर वे ढूँढते रहे थे
फिर ढलती शाम देख
जाने लगे एक-एक कर
भूल ही गए अपने उस सखा को,
जो छिपा था दूर बड़े पाषाण के पीछे
गुल्म-लताएँ उग आयी थीं जिसके चहुँ ओर
मन ही मन था वह प्रतीक्षारत अपने साथियों का
जिनमें से एक व्यस्त था
पथ पर आते-जाते वाहनों को निहारने में
दूसरा खिलौनेवाले की बंसी की धुन में खो गया था
एक स्वादिष्ट व्यंजन की तलाश में खिंचा चला गया
खोमचेवालों की तरफ
और किसी को उसकी माँ सहलाते हुए ले गयी
कोई मित्र से झगड़ने में हो गया मशगूल
यानि की हर कोई गया भूल
 उस साथी को
जो शाम ढलने तक करता रहा था प्रतीक्षा
और शायद हर रोज करता रहेगा....
.......
.......
क्यों न हम ही उसे ढूँढें !