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गुरुवार, मार्च 7

राह अब भी बहुत शेष है

विश्व महिला दिवस पर 


राह अब भी बहुत शेष है 


बनने लगे हैं कितने ही बिंब 

मन की आँखों के सम्मुख 

छा जाते बन प्रतिबिंब 

कौंध जाते कितने ही ख़्याल हैं 

आख़िर यह विश्व की 

आधी आबादी का सवाल है 

ऐसा लगता है दुनिया

एक पहिये पर ही 

आज तक चलती रही है  

तभी शायद इधर-उधर 

 लुढ़क सी रही है 

किंतु अब समाचार सुनें ताजे 

घुट-घुट कर जीने के दिन गये 

 उठने लगी हैं आवाजें  

उन्हें भी भागीदार बनाओ 

बराबरी का हक़ दिलाओ 

कम से कम जीने तो दो 

बुनियादी अधिकारों को 

अब बन रही है ऐसी दुनिया 

जहाँ पक्षपात नहीं होगा 

 मौक़ा मिलेगा हरेक को

 हुनर दिखाने का

सजग है आज की महिला 

कि वह शक्ति का पुंज  है 

और होकर रहेगी वह 

जो होना चाहती है 

उसे अनुसरण मात्र नहीं करना है 

अपने सपनों में स्वयं रंग भरना है 

इसलिए आज का दिन विशेष है 

पर  राह अब भी बहुत शेष है 

हाशिये पर खड़ी हैं अनगिनत महिलाएँ 

वे भी आगे आयें, ताकि  

 युद्ध में झोंकी जा रही है जो दुनिया

 फिर से हँसे और गुनगुनाए !


गुरुवार, मार्च 4

आने वाला है महिला दिवस

आने वाला है महिला दिवस 


मात्र नारी शक्ति का प्रतीक नहीं है 

बल्कि  याद दिलाता है यह दिवस कि 

अभी भी हो रहे हैं उनपर अत्याचार 

इक्कसवीं सदी में भी हो रहा है आए दिन ही 

उनके साथ दुर्व्यवहार 

अखबार के पन्नों पर तो कुछ ही खबरें आ पाती हैं 

मगर उन खबरों की हकीकत भीतर तक डरा जाती है 

महिलायें क्या-क्या कर रही  हैं 

यह तो जग जाहिर है 

मात्र उसे न दोहराएं 

बल्कि एक वंचित नारी के अधिकारों को याद कराएं !

आज के दिन प्रशंसा सुनकर अपनी 

स्वयं की पीठ न थपथपायें 

जो महिलायें अभी भी कुचली जाती हैं 

उनके दर्द को भी बाहर लाएं !

महिला दिवस कोई उपलब्धि नहीं है नारी के लिए 

एक चुनौती है 

नन्ही बच्चियों से लेकर बुजुर्ग माताएं तक 

होती हैं जहाँ  हिंसा व अपमान का शिकार 

हर उस बात को बाहर लाना है 

समाज को आईना दिखाना है !

जायदाद में अधिकार से वंचित रखा गया 

सदियों तक महिलाओं को 

नहीं था वोट देने का अधिकार 

न ही शिक्षा का 

 योगदान का जिक्र कहाँ होता है उस अनाम स्त्री  के

जो हर बार मिलती रही है एक सफल पुरुष के पीछे 

इस महिला दिवस पर यही मनाएं कि  

हर वर्ग की स्त्री समानता का अधिकार पाए !


बुधवार, मार्च 7

महिला दिवस पर शुभकामनायें




महिला दिवस पर



कभी जो भ्रमण करती थी सावित्री की तरह
 देश-देश योग्य वर की तलाश में
गार्गी की तरह गढ़ीं वेद ऋचाएं
विवश कर दी गयी अवगुंठन में रहने को 
उड़ा करती थी जो खुले युद्ध क्षेत्र में
  शेरनी की तरह रथ की लगाम थामे
अबला की उपाधि दे चुप करा दी गयीं
अन्याय सहते हुए जब
पानी सिर से ऊपर आ गया तो
कमर कस ली उसने
और सुसजग है आज की मानुषी अति
अपने उन खोये मूल अधिकारों के प्रति
षड्यंत्र रचा गया अनजान रखने का युगों से
जिसे अपनी ही क्षमताओं से
निकल पड़ी है अप्रतिम भविष्य की ओर...
 इस बार उसके कदम आगे ही बढ़ेंगे..
हर बाधा फलांग सीढ़ी चढ़ेंगे ! 

गुरुवार, मार्च 7

विश्व महिला दिवस पर ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ


स्त्री विमर्श

स्त्री, स्त्री है उसके पूर्व मानवी है
मानव होना भूल गए हैं आज हम
देह मात्र नहीं है मानव
मनन ही बनाता है मानव को मानव....पर
मनन करने की फुरसत किसे है आज..
दौड़ते हैं सुबह से शाम तक
मायावी स्वप्नों के पीछे
न समय है प्रकृति के सान्निध्य में वक्त गुजारने का
न अपने भीतर झाँकने का..
उपभोक्ता बनकर गिर गया है मानव अपनी गरिमा से
चाहे पुरुष हो या स्त्री...
और...समय काटने को ही नहीं क्या
  उछाल देते हैं कोई न कोई नारा...
छेड़ देते हैं कोई विवाद
और घिर जाते हैं स्वयं भी उसी के घेरे में..
मुक्ति चाहती है स्त्री
उठा था यह नारा पश्चिम में
उठा था किन्तु हजारों वर्ष पूर्व भारत में भी
मुक्ति चाहता है मानव
मुक्ति किससे ?
अपनी भीरुता से, अज्ञान से, अशिक्षा से,
मुक्ति प्रमाद से, जड़ता से, रूढियों से..
भला कौन नहीं चाहता ऐसी मुक्ति
पर नहीं...नारों में खो जाते हैं मूल प्रश्न
कोई नहीं सोचता इस मूल मुक्ति की बाबत...

तथाकथित मुक्ति मिली भी तो नारीत्व से...
जो उसका गौरव था
प्रेम, सहिष्णुता, और समर्पण
उसकी कमजोरी नहीं थी
यही थी उसकी गरिमा..
लेकिन प्रेम को तिलांजलि दे
पुरुष विहीन जीवन को अपनाने वाली स्त्री
क्या एकांगी नहीं होती गयी..
हाँ...देखा है मैंने भी दादा को चिल्लाते हुए
दादी पर, जो चुपचाप सुन लेती थी सिर झुकाए ..
बाद में हंसकर बताते
वे काबू नहीं रख सकते गुस्से पर, जैसे मैं रख सकती हूँ
और यह भी कि कठिन परिस्तिथियों में
बनीं थीं सम्बल साथ निभाया दादा का हर हाल में...
देखा है पुत्र का फोन न आने पर करवटें बदलते पिता को
श्रम से कमाई धन राशि को
थमा देते पति को पत्नी के हाथों...
लाकर देते अच्छी पुस्तकें एक दूसरे को  
ताकि ज्ञान का प्रकाश पा सकें
कर सकें अपनी ऊर्जा, समय का सदुपयोग
ऐसे जोड़े जो सहभागिता का जीवन जीते हैं..
अस्तित्त्व में दो नहीं हैं स्त्री और पुरुष
जीवन रथ के दो पहिये
आश्रित हैं एक दूसरे पर
साहस, बल व उदारता जहाँ आभूषण हैं मानवीयता के
वहाँ कैसे कोई भेद करेगा कि ये मिलते हैं
स्त्री हृदय में या पुरुष हृदय में..

स्त्री होने का सुख चाहती हैं जो
वे साथ आयी जिम्मेदारियों से
मोड़ सकती हैं कैसे मुँह..
क्यों कोई माँ या दादी नवजात पुत्री को नहीं
स्वीकारती उसी चाव से ...
क्यों ईर्ष्या की आग में जलने लगती हैं
एक ही पुरुष के लिये चाहे वह उनका प्रिय क्यों न हो..
क्यों नहीं कचोटती उनकी आत्मा
निरीह बालिका से घर का काम कराते
बिना माथे पर शिकन डाले भर लेती हैं झोली
पिता की मेहनत की कमाई दहेज के नाम पर
क्यों नहीं पूछतीं सवाल पति के बेहिसाब लाए पैसों का
दहेज के नाम पर जलाई जाती हैं स्त्रियां
क्या घर की स्त्रियों का नहीं होता उसमें हाथ
प्रदर्शन करना देहयष्टि का..
महंगे जेवरों व साड़ियों का
लगता है क्यों जरूरी...
क्यों नहीं करतीं विरोध
अपने आसपास होती नोच-खसोट का
चाहे वह पर्यावरण के प्रति हो या मानव के प्रति..
आजादी का अर्थ खुलेआम सिगरेट या शराब पीना तो नहीं
आधी रात तक डिस्को में नाचना भी नहीं
बिताना बहुमूल्य समय को
उबाऊ धारावाहिकों को देख आंसू बहाने में
या किटी पार्टियों में एक दूसरे को नीचा दिखाने में..

सही है कि नहीं आँख मूंद सकते हम
स्त्रियों पर होता है अत्याचार
 घरेलू हिंसा का होती हैं शिकार
सहती जाती हैं मूक हुई निराधार
नहीं..शक्ति उन्हें भीतर जगानी होगी
अपनी इज्जत, अपने सम्मान की डोर
अपने हाथों में थमानी होगी
पुरुष जैसी होकर नहीं स्वयं होकर
ही यह कीमत चुकानी होगी
स्त्री, स्त्री होकर कर सकती है जो
आधा अधूरा पुरुष होकर नहीं ...
वह उसके विपरीत जायेगा
 वह लड़ेगी अपने आप से और हारेगी
उसकी जीत नहीं है पुरुष होने में...
और न ही अपनी पहचान खोने में
उसकी असली जीत तो पूर्ण स्त्री होने में है

 स्त्री विमर्श का अर्थ है
जागरूक होना स्त्री का अपने प्रति..
परिवार के प्रति..समाज के प्रति
इसके नाम पर भ्रमित ही होती आ रही है स्त्री..
एक होना चाहता है हर मानव
अपने भीतर के आधे सच से
हरेक के भीतर सोया है एक विपरीत लिंग...
वही पूर्णता है
उसी की तलाश है...
अर्ध नारीश्वर की अमूल्य खोज
जगत को देने वाले इस देश में
हास्यास्पद जान पड़ती है स्त्री विमर्श की बात
यदि पानी है स्त्री को अपनी गरिमा
तो जगाने होंगे मानवीय मूल्य भीतर
रचनी होंगी नई परम्पराएँ भय को मिटाकर
जहाँ दोनों मित्र हों, प्रतिद्वंद्वी नहीं
पूरक हों एक दूजे के विरोधी नहीं
लड़ाई लंबी है पर लड़ाई अज्ञान के विरुद्ध है
जिससे पिसते पुरुष भी हैं सताए वे भी जाते हैं
अशिक्षा का दानव उन्हें भी खा रहा है
पर जागना होगा अपने अधिकारों के प्रति 
तभी लायेंगी सुखद आशा, नव निर्माण की
भविष्य की संतानें.....



   

गुरुवार, मार्च 8

महिला दिवस पर शुभकामनायें


महिला आरक्षण विधेयक - आजादी की ओर बढ़ते कदम

प्राचीन भारत का इतिहास नारी की गौरवमयी गाथाओं से भरा पड़ा है I हमारे पूर्वजों ने सदा नारी की मान-मर्यादा व अधिकारों की रक्षा को महत्व दिया था I उस काल में उन्हें समाज में बराबरी का स्थान प्राप्त था I परिवार में उनका पद प्रतिष्ठापूर्ण था, कोई भी सामाजिक या धार्मिक कृत्य उनकी सम्मति के बिना नहीं हो सकता था, बल्कि रणक्षेत्र में भी वे पति का सहयोग करती थीं I समय बदला, भारत परतंत्र हुआ और नारियों की स्वतंत्रता का भी अपहरण हो गया I उनकी प्रेम, बलिदान और सर्वस्व समर्पण की भावना उनके लिये ही घातक सिद्ध हुई I पर्दा प्रथा को बढ़ावा मिला, समाज में महिलाओं का स्थान गौण हो गया, उन्हें शिक्षा से वंचित कर दिया गया I उनके सामाजिक जीवन का क्षेत्र सीमित कर दिया गया I कमोबेश आज भी भारत में विशेषकर गावों तथा छोटे शहरों में स्त्रियों की स्थिति में ज्यादा सुधार नहीं हुआ है I आज समस्याओं का रूप भले बदल गया हो नारियों के लिये सम्मानित जीवन जीना आज भी बहुत कठिन है I उन्हें आर्थिक रूप से परावलम्बी रहना पड़ता है, अशिक्षा, कुपोषण, अस्वच्छता तथा स्वास्थ्य सम्बन्धित अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिनके कारण न तो वे एक खुशहाल जीवन की कल्पना कर सकती हैं न ही अपने व्यक्तिगत जीवन में कोई मुकाम हासिल कर सकती हैं I उनकी प्रतिभाओं का विकास होना तो दूर रहा, उन्हें अपने महिला होने के कारण ही अपमान सहना पड़ता है I  
विश्व की आबादी का लगभग आधा भाग महिलाएँ हैं, लेकिन उनके हित के लिये नीतियों का निर्धारण पुरुष करते आये हैं I भारत ही नहीं विश्व भर की संसदों में महिलाओं को आज तक उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है, पूरी दुनिया में केवल १७.५% महिलाओं की ही राजनीति में भागेदारी है I अमेरिका तथा योरप के देशों में २०% तथा अरब देशों में मात्र ९.६% महिलाएं ही संसद में भाग लेती हैं, भारत इस मामले में विश्व में १३४ वें स्थान पर आता है I भारतीय संसद में उंगलियों पर गिनी जा सकने के लायक महिलाएं हैं, यही हालत राज्यों की विधानसभाओं की है I
समाज में महिलाओं को सम्मान व समानता दिलाने के लिये राजनीति में उनकी भागीदारी तय करना बहुत जरूरी है I यह जग विदित है कि सदा से पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता रहा है I आज भी समाज में दहेज प्रथा, बाल विवाह, कन्या भ्रूण हत्या, विधवाओं पर होते अत्याचार, लड़कियों के साथ आये दिन छेड़-छाड़ व दुर्व्यवहार की समस्याएँ आम हैं I परिवार में पुत्र के जन्म पर जो खुशी महसूस की जाती है वह कन्या के जन्म पर नजर नहीं आती, नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी नहीं के बराबर है, शिक्षा संस्थानों में भी यही हाल है, देश की ज्यादातर लड़कियों को अपनी पढ़ाई दसवीं कक्षा से पहले ही छोड़ देनी पड़ती है I आज भी महिलाएं वेतनमानों तथा स्वास्थय के मामले में काफी पीछे हैं, उनके साथ खुले आम भेद भाव हो रहा है, उनके लिये आर्थिक योजनाएं शुरू करने, नौकरियों तथा उच्च शिक्षा संस्थानों में स्थान आरक्षित करने की बहुत आवश्कयता है I कानून और व्यवस्था सुधारने की भी उतनी ही जरूरत है ताकि महिलाएं बाहर जाकर खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें. गावों में लडकियाँ आज भी विद्यालयी शिक्षा से वंचित हैं I इन सब कारणों से जरूरी है कि उन्हें संसद में सीधे हिस्सेदारी दी जाये, जिससे नीति निर्धारण में उनकी साझेदारी संभव हो सके क्योंकि चुनी हुई महिलाएं अपनी समस्याओं पर ज्यादा ध्यान दे सकेगीं, अतः महिलाओं का राजनीतिक सशक्तीकरण अत्यंत आवश्यक है I
हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा और उनके संरक्षण के लिये व बराबरी का दर्जा देने के लिये दर्जन भर से ज्यादा कानून हैं, लेकिन इनके बावजूद उनका शोषण किसी न किसी रूप में होता आया है I संसद तथा विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी उनकी सुरक्षा तथा अधिकारों के लिये अब तक बनाये कानूनों में सर्वोपरि होगी I आज से सोलह वर्ष पूर्व १९९६ में  महिलाओं को संसद तथा विधानसभाओं में ३३% आरक्षण देने का मुद्दा उठा था, पर इतने वर्षों तक यह किसी न किसी कारण से लटकता ही आ रहा है I दो वर्ष पहले ९ मार्च २०१० को राज्यसभा में यह विधेयक पारित होने के बावजूद लोक सभा में इसे मंजूरी नहीं मिल पायी है I पंचायत राज्य और स्थानीय निकाय सम्बंधी संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद महिलाओं की आवाज इस मसले पर और सशक्त हुई है I लगभग सभी राजनितिक दलों के चुनाव घोषणा पत्र में इस बिल को पास करने का वायदा किया जाता रहा है, लेकिन महिलाओं के आरक्षण को लेकर उनकी कथनी व करनी में बहुत अंतर है इसीलिए आज तक सफलता नहीं मिल सकीI सभी राजनितिक दल महिलाओं के जीवन में खुशहाली लाने के लिये इसे संसद में मन्जूरी दिलाने का आश्वासन तो देते हैं पर स्वार्थ वश कभी भी गम्भीरता से इस दिशा में उनके द्वारा प्रयास नहीं किये गएI इस विधेयक को पारित करने के लिये भारतीय संविधान में संशोधन करना पड़ेगा तथा इसे दो तिहाई बहुमत से पास करना जरूरी है I विरोध करने वाले नेता यह कहते हैं कि यदि यह बिल अपने वर्तमान स्वरूप में पास हो गया तो अगले कुछ ही वर्षों में लोकसभा में ९०% महिलाएं ही नजर आयेंगी I आज भी देश की राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्षी नेता, यू पी ए अध्यक्ष सभी पदों पर महिलाएं ही हैं, जो बिना आरक्षण के आयी हैं I वे यह भी कहते हैं कि निचली जातियों तथा अल्पसंख्यकों के लिये भी आरक्षण होना चाहिए, अन्यथा सभी सीटों पर उच्च वर्ग की पढ़ी लिखी महिलाओं का चयन निश्चित है I
राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति दोनों ने महिला आरक्षण विधेयक को देश के लिये जरूरी बताते हुए शीघ्र पारित किये जाने की बात कही है, क्योंकि देश के विकास में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक भागीदारी हुए बिना आधी आबादी को न्याय मिलना असम्भव है I
आज हर क्षेत्र में महिलाओ के बढ़ते वर्चस्व ने यह साबित कर दिया है कि यदि अवसर मिले तो वे किसी मामले में भी पुरुषों की अपेक्षा कम नहीं हैं I यदि यह बिल पास हो जाता है तो संसद में ५४३ सीटों में से १८३ पर केवल महिलाएं चुनाव लड़ेंगी I ऐसा होने पर संसद का माहौल ही बदल जायेगा, वहाँ का स्तर ऊँचा होगा तथा संसदीय कार्य भी सुचारू रूप से होगाI राजनीति का अपराधीकरण रुकेगा I आज चुनावों में जिस तरह कालाधन खर्च किया जाता है तथा धांधली की जाती है, बाहुबल के आधार पर वोट हथियाए जाते हैं ऐसे में महिलाओं के लिये साफ-सुथरे साधन अपना कर संसद में पहुँचने के लिये आरक्षण के अलावा कोई मार्ग नहीं है I वास्तव में महिलाओं का राजनितिक सशक्तिकरण स्वयं में एक उद्देश्य ही नहीं है बल्कि असमानता पर आधारित समाज व्यवस्था में परिवर्तन लाने का एक साधन भी है I