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रविवार, जून 29

खोल पंख नव इतराता है

खोल पंख नव इतराता है


मुक्त हुआ मन खो जाता है
अब वह हाथ कहाँ आता है,
अनथक जो वाचाल बना था
अब चुपचुप सा मुस्काता है !

प्रियतम का जो पता पा गया
अनजाने का संग भा गया,
छू आया अंतिम सीमा जो
खोल पंख नव इतराता है !

भांवर डाली जिसने पी संग
चूनर कोरी दी श्यामल रंग,
किसकी राह तके अब बैठा
गीत मिलन क्षण-क्षण गाता है !

सुधियाँ भी अब कहाँ सताती
चाह दूजे की नहीं रुलाती,
एक लहर उठती मन सागर
बस इक वही नजर आता है !

स्वप्न खो गये दूर गगन में
 उड़ी कल्पना कहीं पवन में,
 विकसित सरसिज एक अनोखा
उर उपवन को महकाता है !


गुरुवार, जून 19

मधुर अमराई में बदले


मधुर अमराई में बदले


थामता है हर घड़ी वह
जो बरसता प्रीत बनकर,
खोल देता द्वार दिल के
फिर सरसता गीत बन कर !

हर नुकीले रास्ते को
मृदु गोलाई में बदले,
कंटकों से जो भरी थी
मधुर अमराई में बदले !

मरहम रखता दर्द हरता
हर कदम पर साथ देता,
पोंछ देता दुःख इबारत
या नये से अर्थ देता !

बूंद बनकर जो मिला था
सिन्धु सा वह बढ़े आता,
रोशनी की इक किरण था
बन उजाला चढ़े आता !

दूर से था जो पुकारे
बस गया है दिल में आके,
डाल डेरा और डंडा
पा गया हो ज्यों ठिकाने ! 

सोमवार, जून 16

कह रहा है वह

कह रहा है वह 



दो घड़ी तो बैठो मेरे पास भी
हर वक्त कुछ न कुछ काम लिए रहते हो
कभी सुनाते कानों को संगीत
दिखाते कभी आँखों को मोहक दृश्य
कभी अख़बार के पन्ने पलटने को ही
इतना आवश्यक मान लेते कि
अनसुनी कर देते हर पुकार  
फुर्सत कहाँ हैं तुम्हें मुझसे मिलने की
 घट रहा है सामने प्रकृति का इतना बड़ा चमत्कार
उसे पल भर निहारने की
रंगों का खजाना उड़ेले जाती है धरा
 पवन व सूर्य के साथ मिलकर आकाश में
जल के बिना कहाँ सम्भव होगा यह
 मौन वह प्रतीक्षारत है
प्रियतम को पुकार लगाते किसी प्रेमी की
जीवन भरपूर है चारों ओर
फूटा पड़ रहा है... पर तुम  
खोये हो अपनी ही बनाई एक स्वर्ण की दुनिया में
जो माया मृग की तरह कभी हाथ नहीं आती
 हवाएं शीतल हैं बाहर और भीतर
 दोनों तापों को हरने में सक्षम
आकाश अनंत है हर दुःख को मिटाने में समर्थ
 दो घड़ी तो छोड़ दो सारे काम
तभी मिलेगा अन्तर्वासी राम !

बुधवार, जून 11

घटता है जो इक ही पल में

घटता है जो इक ही पल में



कभी अचानक झर जाता ज्यों
 मेघ भरा हो भाव नीर से,
रिस जाता अमि अंतर घट का
रहा अछूता जो पीड़ा से !

सहज कभी पुरवाई बहती
खुल जाते सब बंद कपाट,
भीतर बाहर मधु गंध इक
उमड़ संवारे प्राण सपाट !

घोर तिमिर में द्युति लहर ज्यों
पथ प्रशस्त कर देती पल में,
भर जाता अनुराग अनोखा
कोई आकर हृदय विकल में !

मुस्काता ज्यों शशि झील में
झलक कभी आ जाती उसकी,
 स्मृति नहीं, ना ही भावना
घटता है जो इक ही पल में !

मंगलवार, मई 27

रास रचाएं संग वनमाली

रास रचाएं संग वनमाली



चलो झटक दें हर वह पीड़ा
जो उससे मिलने में बाधक,
सभी कामना अर्पण कर दें
बन जाएँ अर्जुन से साधक !

चलो उगा दें चाँद प्रीत का
उससे ही करें प्रतिस्पर्धा,
या फिर अंजुरी भर-भर दें दें
भीतर उमग रही जो श्रद्धा !

चलो गिरा दें सभी आवरण
गोपी से हो जाएँ खाली,
उर के भेद सब ही खोल दें
रास रचाएं संग वनमाली !

सोमवार, सितंबर 12

दिल, दौलत और दुनिया


दिल, दौलत और दुनिया


इक्कीसवीं सदी में सभ्य हो गया है आदमी
राजी है वह धन की खातिर 
ईमां भी खोने को
बढता रहे बस तिजोरी का रुतबा
इस खातिर वह  
नींदे ही नहीं गंवाता
रिश्ते भी गंवाता है.....
भरने को तो एक ही शै
खुदा ने ऐसी बनाई
झुकती है जिसके
सामने खुद उसकी खुदाई
दुनिया की हर दौलत
जिसके सामने शरमाई
 मुहब्बत ही वह शै है
जो जितनी लुटाई
उतनी ही बढती है
उसकी कमाई
यह उल्फत की दुनिया
उलट है इस दुनिया से
यहाँ जिसने लुटाया उसने
पाया ही पाया....
कौडियों के मोल बेच इसे
फिर भी यह मानव इतराया....
भेद सृष्टि का जब समझ न पाया....


 

मंगलवार, अगस्त 9

कैसी है यह विडंबना


कैसी है यह विडंबना

भीतर इक प्रकाश जगा है
बाहर लेकिन अंधकार है,
जिसका ज्ञान हुआ है भीतर
बाहर दिखता नहीं प्यार है !

एक तत्व से बना जगत यह
फिर भी भेदभाव कर्मों में,
एक ही ज्योति हुई प्रकाशित
फिर भी पृथक हुए धर्मों से !

कथनी करनी का यह अंतर
साल रहा मन को भारी है,
सहज मिटेगा यह अंतर भी
खोज अभी मन की जारी है !

प्रेम किये से पड़े झेलना
स्वयं को भी जीवन का जुआ,
प्रेम मांगता कीमत अपनी
सरल शाब्दिक देना दुआ !

भीतर एक अकर्ता बैठा
लेकिन कर्म से मुक्ति नहीं है,
क्या करना क्या नहीं है करना
इसकी कोई युक्ति नहीं है ?

पर उपदेश कुशल बहुतेरे
सत्य यही सामने आता,
निज सुख की खातिर दूजे को
जब कोई गुलाम बनाता !

उसमें कोई गति नहीं है
अचल अनादि जो अनंत है,
मन में ही घटना-बढ़ना है
लेकिन स्वयं सदा बेअंत है !  
    

गुरुवार, मई 5

दिल में रहे किसी के


दिल में रहे किसी के

हर दिल में कैद है इक दरिया मुहब्बतों का
बांधे न बांध जिसको सागर की हो तमन्ना !

कदमों में कैद राहें मंजिल का पता पूछें
थक कर नहीं थमे गर साहिल की हो तमन्ना !

हर दिल बना है भिक्षु हर दिल तलाशता है
सब कुछ लुटा दे जिसको उल्फत की हो तमन्ना !

हाथों को यूँ उठाये तकता है आसमां को
खुद पर यकीन कर जो जन्नत की हो तमन्ना !

तकदीर के भरोसे तदबीर से है गाफिल
दिल में रहे किसी के गर रब की हो तमन्ना !

अनिता निहालानी
५ मई २०११


बुधवार, अप्रैल 27

बस यूँ ही पुकारा करते हैं






बस यूँ ही पुकारा करते हैं


जीने की तमन्ना दिल में है, जीने का सबब मालूम नहीं
जीने का सलीका सीखा नहीं, बस वक्त गुजारा करते हैं I

ऊपर ऊपर से सहला दें, दिल छू लें ऐसे बोल कहाँ
कभी हाथ बढा के रोका नहीं, बस यूँ ही पुकारा करते हैं I

कुदरत के पुजारी बनने का, दावा करते जो थकते नहीं
साथी बन गए लुटेरों के, क्या खूब नजारा करते हैं I

जो दीनो-धर्म की बातें करें, कण-कण में रब है समझाएं
परहेज उन्हें भी गैरों से, रब का बंटवारा करते हैं I

जन्मों तक साथ निभाने की, कसमें खाना तो सीख लिया
सुख था तो साथ गंवारा था, गर्दिश में किनारा करते हैं I

अनिता निहालानी
२७ अप्रैल २०११

मंगलवार, अप्रैल 12

रामनवमी के शुभ अवसर पर आप सभी को शुभकामनाएँ !

भीतर कोई जाग गया है

भीतर कोई जाग गया है
जला के कोई आग गया है,
दिव्य अनल शीतल, शुभकारी
दिप-दिप होती अंतर बारी !

जब हम नयन मूंद सो जाते
स्वप्नलोक में दौड़ लगाते,  
तब भी कोई रहे जागता   
खैर हमारी रहे मांगता !

कोई घेरे हर पल हमको
साया कोई साथ लगा है,
सदा निगाहें पीछा करतीं
अंतर में वह प्रीत पगा है !

माँ सा ध्यान रखे है सबका
फिर क्यों दिल में द्वंद्व सहें,  
सौंप सभी कुछ रहें मुक्त हो,
प्रीत में उसकी गीत कहें !

मधुरिम वंशी धुन हो जाएँ
उसकी हाँ में हाँ मिलाएं,
मुक्त गगन सा जीना सीखें
उन पलकों में रहना सीखें !

कैसा अदभुत खेल रचाया
अपनी माया में भरमाया,
मकड़ी जैसे जाल बनाती
संसार स्वयं से उपजाया !

अनिता निहालानी
१२ अप्रैल २०११  

बुधवार, मार्च 30

मन राधा उसे पुकारे

मन राधा उसे पुकारे

झलक रही नन्हें पादप में
एक चेतना एक ललक,
कहता किस अनाम प्रीतम हित
खिल जाऊँ उडाऊं महक !

पंख तौलते पवन में पाखी
यूँ ही तो नहीं गाते,
जाने किस छुपे साथी को
टी वी टुट् में पाते !

चमक रहा चिकना सा पत्थर
मंदिर में गया पूजा,
जाने कौन खींच कर लाया
भाव जगे न दूजा !

चला जा रहा एक बटोही
थम कर किसे निहारे,
गोविन्द राह तके है भीतर
मन राधा उसे पुकारे !

अनिता निहालानी
३० मार्च २०११