सोमवार, जनवरी 31

श्रद्धा का फूल



श्रद्धा का फूल 


श्रद्धा का फूल 

जिस अंतर में खिलता है 

प्रेम सुरभि से 

वही तो भरता है !


बोध का दिया जलता 

अविचल, अविकंप वहाँ 

समर्पण की आँच में 

अहंकार ग़लता है !


श्रद्धा का रत्न ही 

पाने के काबिल है 

स्वप्न से इस जगत में 

और क्या हासिल है 

आनंद की बरखा में 

भीगता कण-कण उर का 

सारी कायनात 

इस उत्सव में शामिल है !


हरेक ऊहापोह से

 श्रद्धा बचाती है 

चैन की एक छाया 

जैसे बिछ जाती है 

जो नहीं करे आकलन

 नहीं व्यर्थ रोकटोक 

श्रद्धा उस प्रियतम से

जाकर मिलाती है !


श्रद्धा का दीप जले 

अंतर उजियारा है  

हर घड़ी साथ दे 

यह ऐसा सहारा है 

अकथनीय, अनिवर्चनीय 

जीवन की पुस्तक को

 इसने निखारा है !


शुक्रवार, जनवरी 28

एक सूर्य उग आए ऐसा

एक सूर्य उग आए ऐसा


​​
दीप जले अंतर में ऐसा 

ज्योति कभी ना ढके तमस से, 

जगमग कर दे राहें सारी 

कोई विकार छिपे न मन से !


अंत:लोक में जाग उठें हम 

एक सूर्य उग आए ऐसा, 

युगों युगों की नींदें टूटें 

स्वप्न कभी मत घेरे मन को !


अब भी बादल छाते नभ पर 

तूफां भीषण तेज हवाएँ, 

किंतु अमर यह ज्योति अनुपम 

बाल न बाँका ज़रा कर पाएँ !


जो भी जगता इस प्रकाश में 

उसे न अंधकार का भय है, 

मिथ्या जैसे स्वप्न लोक है 

वैसे ही यह जगत लुप्त है  !


मंगलवार, जनवरी 25

एक चेतना की डोरी से

एक चेतना की डोरी से 

 विजयगान गूँजे दुनिया में 

जय हिंद ! जय भारत न्यारा !

दिप-दिप दमक रहा गौरव से

महिमा मंडित भाल तुम्हारा !


युग-युग से करते आये हो 

संगम चिन्मय आदर्शों का, 

बहती आयी गंगा में नित 

ज्ञान, भक्ति व कर्म की धारा !


सदा सत्य के रहे पुजारी 

उपनिषदों का शुभ ज्ञान दिया, 

कोटि-कोटि जनों ने मिलकर 

सदा दिया उत्कर्ष का नारा ! 


एक चेतना की डोरी से 

बँधा हुआ हर भारत वासी, 

भिन्न बोलियाँ, भिन्न प्रांत हैं 

जुड़ा हुआ है भाग्य हमारा !


भारत माता की संतानें 

उसके हित कर्त्तव्य निभातीं, 

 दुश्मन आँख उठा भर देखे 

वीर सैनिकों ने ललकारा !



सोमवार, जनवरी 24

तुम्हें याद करता है भारत

तुम्हें याद करता है  भारत 


‘जयहिंद’ का नारा गूंजा 

जाग उठे थे भारतवासी

नहीं सहेंगे पराधीनता

लगने दो चाहे फांसी !


तुम भारत के पुत्र अनोखे 

फौलादी दिल को था ढाला

खून के बदले ही आजादी 

मिल सकती यही कह डाला !


बापू के थे निकट खड़े तुम 

फिर भी उनके साथ थे लड़े

दिल झुकता था उन कदमों पर 

कर्तव्य बुलाते कहीं बड़े !  


कैसे अद्भुत सेनानी थे 

साम्राज्य से भिड़ने निकले

‘दिल्ली चलो’ का नारा दे 

संग सेना ले लड़ने निकले !


भारत गौरवान्वित तुमसे 

‘आजाद हिंद फ़ौज’ निर्माता

कभी-कभी ही किसी हृदय में 

इतना बल साहस भर पाता !


तुम्हें याद करता है  भारत 

अचरज से भरी निगाहों से

जिस माटी में तुम खेले थे 

ध्वनि आती है उन राहों से !


‘जय हिंद’ की एक पुकार पर 

हर भारतवासी डोल उठे

 देशभक्ति जो सोयी भीतर 

ले अंगड़ाई किलोल उठे !


श्वासों की माला जपनी थी

श्वासों की माला जपनी थी


जो हीरे तूने सौंपे थे 

पत्थर सम हमने गँवा दिए, 

अमृत की खानें छिपी भीतर 

भयभीत गरल से कंपा किए !


शीतलता भरता था सुमिरन 

जग की आँधी में उड़ा दिया, 

श्वासों की माला जपनी थी 

सपनों, नींदों में भुला दिया !


तू रहबर बनकर बैठा था 

आवाज़ लगाते हम रोए, 

कब तूने त्यागा था हमको 

रस्तों पर हम ही खोए थे !


रंगीनी, दुनिया की माया 

कुछ और नहीं मन है छाया, 

तू था प्रकाश का स्रोत खड़ा 

हम पीछा करते थे मन का !


जिसका ना रूप कभी ठहरे 

उस दुनिया के पीछे भागे, 

कब सपने झूठे छोड़े थे 

कब तेरी करुणा लख जागे !


तुझको पाया कोई कहता 

तू मुँह फेर हंसता होगा, 

पाना उसका जो खोया हो 

तू कण-कण में रमता होगा !


हम अनजाने से बन जाते 

तू कदम-कदम पर बिखरा है, 

तेरी आभा से रवि दमके 

चंदा रूप भी संवरा है !


शनिवार, जनवरी 22

यहाँ हवाएं भी गाती है


यहाँ हवाएं भी गाती है

सुनना है सुख,  पुण्य  प्रदायक
सुनने की महिमा है अनुपम, 
करे श्रवण जो बनता साधक 
मिल जाता इक दिन वह प्रियतम !

निज भाषा में सुनने का फल
 सहज ही हों सभी कर्म कुशल, 
अध्ययन वृत्ति, श्रवण है भक्ति
 मन की धारा बनती निर्मल !

राग सुनो, आलाप सुनो तुम 
मधुरिम तान सुनो कोकिल की,
यहाँ हवाएं भी गाती है
 सरिता बहती सुर सरगम की! 

कल-कल नदिया की भी सुनना 
बादल का तुम सुनना गर्जन,
गुनना पंछी की बोली को ,
सागर की लहरों का तर्जन !

पिउ पपीहा, केकी मोर की
सुनना भी है एक विज्ञान,  
गूँज मौन की सुन ले कोई 
हृदय गुह में जगता प्रज्ञान !

गुरुवार, जनवरी 20

हर इक राह सुगम हो जाए

हर इक राह सुगम हो जाए 


हर कंटक तेरे पथ का मैं 

चुन लूँ अपने इन हाथों से, 

हर इक राह सुगम हो जाए 

दुआ दे रहा है मन कब से !


अनजाने में पीड़ा बाँटी 

खुद से ही दूरी थी शायद, 

अब जबसे  यह भेद खुला है 

पल-पल पाती भेज रहा मन !


दुःख में  सिकुड़ गया अंतर्मन 

शोक लहर जिससे बहती है, 

पाला पड़ा हुआ धरती  पर 

सूर्य किरण झट हर लेती है  !


प्रीत उजाला जब प्रकटेगा 

खो जाएगा हर विषाद तब, 

उसके अनुपम उजियाले में 

झलकेंगे पाहन बन शंकर !


मंगलवार, जनवरी 18

यह पल

यह पल 


माना अनंत युग पीछे हैं 

और इतने ही आगे हमारे 

किंतु यह क्षण 

न कभी हुआ न होगा दोबारा 

हर दिन नया है 

हर घड़ी पहली बार भायी है 

चक्र घूम चुका हो चाहे कितनी बार 

पर हर बार बरसात 

किसी और ढंग से आयी है 

स्मृतियों का बोझ न रहे सिर पर 

न भावी का कोई डर 

इस पल में ही जी लें और मरना पड़े तो जाएँ मर 

हर क्षण हमें पूरा ही चाहता है 

पूर्ण होकर ही पूर्ण से मिला जा सकता है 

हरेक फूल द्वारा 

अपनी तरह से ही खिला जा सकता है 

इसलिए यह पल दर्द का है या ख़ुशी का 

अनमोल है 

वक्त के लम्बे दौर में 

न इसका कोई मोल है ! 


रविवार, जनवरी 16

जब जागो तभी सवेरा है

जब जागो तभी सवेरा है 


चढ़ आया हो सूरज नभ पर 

निद्रा में गहन अँधेरा है, 

सही कह गए परम सयाने 

जब जागो तभी सवेरा है !


सोए-सोए युग बीते हैं 

जाने कब आँख खुले अपनी, 

निज हाथों से छलते खुद को 

तज पाते नहीं जब आसक्ति !


कुदरत चेताती है हर पल 

हम आदतों के ग़ुलाम बने, 

गुरु के वचनों को सदा भुला 

मन्मुख होकर जीते रहते !


जब बारी आती तजने की 

हम झट प्रकाश को तज देते, 

वह अंतर्यामी जाग रहा 

दस्तक ना उसके दर देते !


वह हर अभाव को हर लेता 

उसकी छाया में सब पलते, 

कोई कमी नहीं शेष रहे 

यदि उसके जैसे हो पाते !


बुधवार, जनवरी 12

सूर्य देव राशि बदलेंगे

सूर्य देव राशि बदलेंगे


संधिकाल आया ऋतुओं का 

रुत शीत विदा लेने को है,  

खेतों में सरसों फूलेगी 

कुसुमाकर अब दूर नहीं है !


धरा घूमती निशदिन अनथक

सूर्य देव राशि बदलेंगे,

आम्र वाटिका महक उठेगी

तिल गुड़ के उपहार बँटेगे !


माना शीतल पवन अभी भी 

हाड़ कँपाती हुई बहेगी, 

किंतु आ रही आहट कोई 

सूर्य  रश्मियाँ यही कहेंगी !


खिचड़ी पोंगल की सुगंध से 

महक उठेंगे सब घर आँगन,  

रंग-बिरंगी कनकैया से 

 होगा सज्जित यह नीलगगन  !


लोहरी  की अग्नि ज्वाला में 

मन से हर इक  भेद मिटेगा, 

मकर संक्रांति पर एक हुआ 

भारत नई दिशा पकड़ेगा !


मंगलवार, जनवरी 11

हो तुम जन्मों के चिर-परिचित



हो तुम जन्मों के चिर-परिचित



तुमसे मिलकर मिटी दूरियाँ

हो गए अपने सब पराये,

अनजाने जाने से लगते

परिचय तुमने दिये कराए !


हो तुम जन्मों के चिर-परिचित

जीवन में तुम ! तुम्हीं मरण में,

दूरस्थ निकट तुम ला देते

खुद प्रतिपल साथ रहे मेरे !


पंछी, बादल, पुष्प रंगीले

है रंग भरा यह जग भाता, 

रंग हमें आनन्दित करते 

जल में सूर्य रंग बरसाता !


शिशु-बालक हो मुग्ध खेलते  

निरख-निरख तुम हर्षित होते !

विमल लहर सुर स्वर बिखराती

सर-सर-सर वट गीत सुनाते,


पत्ते वन-वन डोला करते

जैसे लोरी शिशु हों सुनते 

हवा सिहरती क्या कुछ कहती 

नयन मुँदे से रहें ऊनींदे  !


( गीतांजलि से प्रेरित पंक्तियाँ )


सोमवार, जनवरी 10

सदा जागरण के ही स्वर दे


सदा जागरण के ही स्वर दे


परम अनंत अपार प्रेम वह 

गुरु की महिमा कही न जाए, 

कब कैसे जीवन में आकर 

बिछुड़े हुए सुमीत मिलाए !


प्रेम ज्योति जब मद्धिम होती 

आकर बाती  को उकसाता,

रूखे-सूखे से जीवन में 

पुनः पुनः फूल, बहार खिलाता  !


गुरु बदली सा बनकर बरसे 

जीवन को ख़ुशियों से भर दे, 

नयनों में मुस्कान भरे जो 

सदा जागरण के ही स्वर दे !


गुरू जहाँ, ऐश्वर्य वहाँ है 

अपनेपन की लहरें उठतीं, 

सारा जगत मीत बन जाता 

मन उपवन में कलियाँ खिलतीं !


गुरु दीवानों का यह आलम 

स्वयं बखानें अपनी क़िस्मत, 

तृप्ति के सागरों में डूबें 

मुस्कानें बन जाती फ़ितरत !

शुक्रवार, जनवरी 7

बन के इक-दूजे का संबल



विवाह जीवन को पूर्णता की ओर ले जाने वाला एक पावन बंधन है। इस एक रिश्ते में सारे रिश्ते छिपे हैं। ऊपर-ऊपर से लोग एक को ही देख पाते हैं पर जो भी गहराई में जाते हैं, वे जीवनसाथी में परमेश्वर का रूप भी पाते हैं; जो हर मोड़ पर साथ खड़ा है, जिसके साथ ने सिखाया कि प्रेम हर बात से बड़ा है।मित्र की तरह साथ चलते-खेलते, संगी की  हर पीड़ा को अपना समझते, उम्र के अंतिम पड़ाव तक आते-आते मन से भी आगे आत्मा से जुड़ जाते हैं !

बन के इक-दूजे का संबल


झर-झर ज्यों बहता है निर्झर 

नीरव किसी अरण्य प्रांत में, 

ऐसे ही बहता है अंतर 

प्रेम बना इस शुभ प्रभात में !


दशकों पहले संग चले थे 

आज भी राही से मार्ग पर, 

बन के इक-दूजे का संबल

बढ़ते जाते निर्भय होकर !


मन के पार हुए जब जाना 

युग-युग से है साथ अनूठा, 

नदी-नाव संजोग नहीं था 

जन्मों का अटूट था नाता !


मन को एक दिशा मिलती है 

भावनाएँ भी सुदृढ़ होतीं, 

साहचर्य और मित्रता की 

उर में सुरभित बेलें खिलतीं !


एक-दूसरे के पूरक बन 

जीवन साथी जग में विचरें, 

शिव-शक्ति की कर आराधना 

प्रतिपल श्रेष्ठ बने मन निखरे !