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बुधवार, दिसंबर 25

बड़े दिन की कविता

बड़े दिन की कविता 


ईसा ने कहा था 

चट्टान पर घर बनाओ 

रेत पर नहीं 

क्या ‘मन’ ही हमारा असली घर नहीं 

क्या हर कोई मन में नहीं रहता 

 आपस में जुड़े हैं मन

मन वस्तुओं से जुड़ा है 

या कहें दुनिया से जुड़ा है 

देखें यह घर किस पर टिका है

रिश्तों का आधार क्या है 

आधार चट्टान सा मज़बूत हो 

वह प्यार हो 

जो अटल है, अमर है और अनंत भी 

न कि मोह 

जो रेत सा अस्थिर है डांवाडोल है 

मोह बाँधता है, जकड़ता है  

वरना तो टिकेगा कैसे 

प्रेम मुक्त करता है, पंख देता है 

ईसा ने कहा था 

ईश्वर प्रेम है !

रिश्तों का आधार ईश्वर हो तो 

किसी बात से न डिगेगा 

तब हर दिन बड़ा दिन मनेगा ! 

 




सोमवार, दिसंबर 19

तुम धरती के नमक बनो


तुम धरती के नमक बनो


येरूशलम का बेतलेहम गाँव
पूर्व दिशा में चमका तारा,
मरियम-युसूफ के घर जन्मा
परम पिता का पुत्र दुलारा !

हेरोदस राजा घबराया
ज्योतिषियों को तब बुलवाया,
खोजो शिशु को, भेजा उनको
दिल में उसके पाप समाया !

ज्योतिषी गण गौशाले आये
सोना, गंध, लोबान चढ़ाए,
आयी है एक दिव्य आत्मा
कर प्रणाम उसे मुस्काए !

युसूफ को भी मिला संदेश
मरियम व यीशू को बचाओ,
हेरोदस का देश त्याग तुम
मिस्र देश में शीघ्र ही जाओ !

युसूफ तब गलील जा पहुँचा
यीशू तभी नासरी कहलाया,
राजा को भी क्रोध उठा, कई
नन्हें बच्चों को मरवाया !

यूहन्ना इक ज्ञानी आये
यीशू के बारे में बताते,
स्वर्ग राज्य अब निकट आ गया
चर्चा कर फूले न समाते !

यीशू भी गलील से आये
बपतिस्मा लेने तब उनसे,
परम पिता की कृपा मिली तब
हुए प्रसन्न यीशू के तप से !

रोटी से ही नहीं है जीवित
मानव प्रभु के वचन से जीता,
परम पिता की आज्ञा में रह
उसके प्रेम की न ले परीक्षा !

यीशू पुनः गलील लौट गए,
यूहन्ना को जब कैद किया,
धर्म प्रचार किया लोगों में  
दो मछुवों को शिष्यत्व दिया !  

रोगीजन स्वस्थ हो जाते
यीशू जब उपदेश सुनाते,
दुखों में डोल रहे थे जो जन
निकट आ उनके राहत पाते !

दिया पहाड़ी पर उपदेश
दीन बनो, तुम नम्र बनो,
धर्म मार्ग पर सदा चलो
हृदय शुद्ध कर दयावान हो !

मेल-मिलाप रहे आपस में
दुःख से कभी न घबराओ,
स्वर्ग मिलेगा. धरा का सुख भी
परम पिता पर श्रद्धा लाओ !

तुम धरती के नमक बनो
और जगत की ज्योति भी,
तुमसे वह प्रकाश उठेगा
चमक उठेगी परम प्रीति भी !

गाँव-गाँव में घूमे यीशू
अद्भुत कथा, कहानी कहते,
भोले लोगों को समझाते
उन्हें कुरीति से छुड़वाते !

क्रिसमस उत्सव आया आज
प्रभु यीशू की याद दिलाने,
रक्त बहाया जिसने अपना
उस पावन की कथा सुनाने !    

रविवार, जून 12

बुद्धों की कीमत न जानी


बुद्धों की कीमत न जानी

यह दुनिया की रीत पुरानी
बुद्धों की कीमत न जानी,
जीवित का सम्मान किया न
बाद में पूजी उनकी वाणी !

ईसा को सूली पे चढाया
गाँधी को गोली से उड़ाया,
जहर का प्याला सुकरात को
महावीर को बहुत सताया !

जीवित संत को कुछ ही समझें
बाद में उन पर फूल चढाते,
तेरी जान की कीमत बाबा
पत्थर दिल ये समझ न पाते !

जब भी दुनिया को समझाने
संत कभी धरती पर आया,
नादां, भोली इस दुनिया ने
उनके भीतर रब न पाया !

बाद में पूजा मूरत गढ़ के
जीवित बुद्धों को दुत्कारा,
अजब खेल यह चलता आये
अपने संतों को ठुकराया !

बाबा तू अनमोल है कितना
कोई कहाँ यह बता सका है,
प्रेम भरा दिल तेरा बाबा
स्वयं ही स्वयं को जान सका है !

अनिता निहालानी
१२ जून २०११


शुक्रवार, दिसंबर 24

ईसा ने था यही कहा

ईसा ने था यही कहा

राज्य स्वर्ग का दिल के भीतर
लिये हुए, मानव ! तुम फिरते
पर जाने क्यों, हो बेखबर
अहर्निश नरकों को गढ़ते !

धन्य हैं वे जो नम्र, दीन हैं
दुख को दुःख रूप में जानें,
इक दिन होंगे सुख स्वर्ग में
बालक वत् जो होना जानें !

जाल फेंक मछली ही पकडें
थे ईसा न ऐसे मछुआरे,
ऐसा प्रेमिल जाल डालते
खिंच आये मानव, दिल वारे !

तन, मन और आत्मा के भी
घेर रहे जो रोग युगों से,
सबको मुक्त कराया उनसे
गाँव- गाँव घूमें बंजारे !

तुम धरती के नमक अमूल्य
तुम ज्योति इस जगत की सुंदर,
ऐसे विचरो झलके तुमसे
महिमा शाली वह परमेश्वर !

पूजा पाठ बाद में करना
रखना मन को जल सा निर्मल,
शत्रु से भी द्वेष न करना
अंतर्मन भी फूल सा कोमल !

प्रेम के बदले प्रेम दिया तो
ना कोई सौदा बड़ा किया,
सूली पर चढ़ते चढ़ते भी
ईसा ने तो यही कहा था !

अनिता निहालानी
२४ दिसंबर २०१०