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सोमवार, जनवरी 20

सन्नाटे को गुनना होगा


सन्नाटे को गुनना होगा



शब्दों को तो बहुत पढ़ लिया सन्नाटे को गुनना होगा, शोर बहुत है इस दुनिया में नीरवता को चुनना होगा ! महानगर की अपनी ध्वनियाँ गाँवों में भी शोर बढ़ रहा, दिनभर वाहन आते-जाते देर रात संगीत बज रहा ! कानों में मोबाईल लगा कोकिल के स्वर सुनेगा कौन ? कुक्कुट की ना बाँग सुन रहे गऊओं का रंभाना मौन ! अपनों को भी नहीं सुन रहे मन में भीषण शोर मचा है, खुद की आवाजें भी दुबकीं जग को भीतर बसा लिया है ! जाने किससे बात हो रही दूजा कोई नहीं वहाँ है, उस तक पहुँच नहीं हो पाती निर्जन में ही जो रमता है !

बुधवार, जनवरी 29

जीवन का गीत

जीवन का गीत

हर तरफ है शोर
 भीड़ और दुःख का साम्राज्य...
बहते हुए अश्रु, सिसकियाँ और अर्थहीन आवाजें
जीवन जैसे एक खोल में सिमट आया हो
उड़ने के लिए गगन तो है मगर भरा है धुँए से
त्राण यदि पाना है तो भीतर ही जाना है
बाहर का सब कुछ कितना बेगाना है
शब्द हैं, चेहरे हैं, बातें हैं खोखली
पर इन अर्थहीन बातों में ही जीवन को पाना है
सरल दृष्टि सरल  उर सब पर लुटाना है
नहीं कहीं मुक्ति और, नहीं कोई स्वर्ग और
कला की ऊंचाइयों को
ओस की बूंदों में पिरोये हुए पाना है
शब्दों के जंगल से पार हुआ मन कहे
जीवन का गीत अब मौन में ही गाना है
कमी कुछ नहीं कहीं, हर घड़ी पूर्ण है
नहीं है अभाव कोई, नहीं कहीं जाना है !

शुक्रवार, दिसंबर 6

नेता और नाता

नेता और नाता



नेता का जनता से अटूट नाता है
पर कोई बिरला ही इसे निभाता है
जनता ने उसे चुना
अपनी आवाज बनाया
निश्चिन्त हो गयी
अपने स्वप्नों को उसे सौंप
पर नेता का नाता
टूट गया जनता से उसी वक्त
जब उसे राज सिंहासन दिखा
सत्ता पर विराजते ही
शोर प्रतीत होने लगी
 जनता की पुकार
स्वर भर लिए चाटुकारों के
अपने कानों में उसने
उड़ने लगा आकाश में
सुख-सुविधाओं का चश्मा लगाये आँखों पर
जनता, जो पहले उसके पीछे चलती थी
बुलेट प्रूफ शीशों के पीछे धकेल दी गयी  
किसी और नेता की प्रतीक्षा में
बैठी है फिर आँखें बिछाए जनता...




बुधवार, सितंबर 14

जरा सोचें तो


जरा सोचें तो

कहीं कुछ हुआ भी है,
जो व्यर्थ शोर मचा रहे हैं ..

जिसे दुश्मन मान कर हम जंगल में
रोता छोड़ आए हैं 
वह हमारा ही दूसरा अवतार है !

जो बड़ी-बड़ी डींगे मार रहे थे
अपने कृत्यों की
कराने वाला तो वही करतार है !

दर्द से कराहते जो फिर रहे
वह हम नहीं
बस हमारी देह बीमार है !

दिवास्वप्न जो देखा करते
झूला करते उडनखटोले पर 
उसी जादूगर का चमत्कार है !

गुरुवार, जुलाई 14

बम विस्फोट

बम विस्फोट

हवा में उठता शोर, गंध, शोले और
चीथड़े लाशों के
दो पल में जिंदगी ने दम तोड़ा
कटे सर, कहीं धड़
बर्बरता ने सारी सीमाओं को छोड़ा

चीखें, कराहटें, आर्तनाद
विलाप, विनाश, विध्वंस
कहीं दूर नफरत ने जाल बिछाया
कहर बरसाया

शैतान कभी मरा ही नहीं
दानव आज भी जिन्दा हैं
जीवित हैं राक्षस
आतंकियों के रूप में  

की दानव ने ही हथियारों की खेती
बमों के बीज उगाए
कभी धर्म, जाति, कभी देश के नाम पर
मासूमों पर बरसाए

सहमे, सिमटे डरे हुए लोग
मौत के क्रूरतम चेहरे
को भौंचक खुली आँखों से
देखते सो गए  
लोग जो कभी गुनगुनाते थे.
हँसते, गाते थे
बमों की आवाज से बहरे हो गए !