तू अरूप है भारत माता
पुण्य भूमि, हे भारत माता
हर वासी मुस्काता, गाता,
आज़ादी का जश्न मनाने
लो एक हुजूम चला आता !
तेरे ही आंगन में हे माँ
गूँजी थी ऋषियों की वाणी,
तेरे सपूत थे महा वीर
कर्मठ, उत्साही औ दानी !
फिर समय की ऐसी पड़ी मार
वे सुख मदिरा में मत्त हुए,
तेरे सम्मान को रख गिरवी
गैरों से बंधे, परास्त हुए !
लेकिन चिंगारी भीतर थी
क्रांति का बिगुल बजाया था,
सुलगी पहले फिर भड़की थी
स्वराज्य का स्वप्न दिखाया था !
जाने कितनों का रक्त बहा
कितनी माँओं का दिल रोया,
कितने कवियों ने गीत लिखे
जेलों में गए, चैन खोया !
बापू, नेहरू, सुभाष, तिलक
आजाद, भगत, ऊधम भी लड़े,
करवट ली देश की जनता ने
बन सेनानी जांबाज बड़े !
लहराया था परचम प्यारा
छूने फिर नीले अम्बर को,
तीनों रंगों में सजा चक्र
प्रेरित करता जो बढ़ने को !
फिर जनगणमन था गूँज उठा
थे कोटि-कोटि जन हर्षाये ,
आज उसी की याद लिए उर
हम भारतवासी हैं आए !
तेरे चिरकाल ऋणी हैं हम
ओ ममतामयी, कल्याणी माँ,
तेरे सुंदर नव रूपों पर
हम जाते हैं बलिहारी माँ !
तू अरूप है भारत माता
रूप झलकता है जन-जन में,
तू ही लहराती फसलों में
तू ही मुस्काती हर मन में !
भारत का हर जन तेरा ही
तुझसे ही उसका हर नाता,
तेरे कारण हम एक हुए
तेरा आँचल हमको भाता !
हर प्रान्त तेरा खिल-खिल जाये
शहर-शहर, गाँव मुस्काए,
तेरी गलियों में मस्ती हो
बाजारों में रौनक छाये !
द्वार-द्वार पर सजे रंगोली
हर छत पर ध्वजा लहराए,
हर बच्चे में जोश भरा हो
हर दिल झूम तराने गाए !