ढाई आखर वाला प्रेम
‘ढाई आखर वाले’ उस प्रेम को पाने के लिये
इस प्रेम की गली से तो गुजरना ही होगा,
पर एक बार उस प्रेम को चखने के बाद
इस प्रेम का स्वाद भी बदल जायेगा
अभी तो मैल जमी है जिह्वा पर
माया के बुखार वाली
तभी बेस्वाद है जिंदगी
कभी भर जाता है मन कड़वाहट से
कभी कसैले लगने लगते हैं रिश्ते
कभी आंसुओं से भीग जाता है दामन
उस प्रेम को चखते ही..
बदल जाता है सब कुछ जैसे
सब ओर वही प्रकाश भर जाता है
सबकी आँखों में भी झलकता है वही
उमड़ता है सहज स्नेह
छूट जाती हैं अपेक्षाएं
खो जाती हैं सारी मांगे
उस प्रेम की बाढ़ में
तिरोहित हो जाती है संकीर्णता
बहा ले जाता है सारा का सारा विषाद
एक ही साथ..
जन्म भर के लिये
वसंत छा जाता है भीतर !
अनिता निहालानी
२० मई २०११