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रविवार, जून 18

गर्मियों की शाम सुंदर


गर्मियों की शाम सुंदर


छू रही धरा को शीतल ग्रीष्म की महकी पवन

छा गए गगन पे देखो झूमते से श्याम घन !


दिवस की अंतिम किरण भी दूर सोने जा रही

सुरमई संध्या सुहानी कहीं कोकिल गा रही !


कुछ पलों पहले हरे थे वृक्ष काले अब लगें

बादलों के झुण्ड जाने क्या कथा खुद से कहें !


छू रही बालों को आके करती अठखेलियाँ

जाने किसे छू के आयी लिये रंगरेलियाँ !


चैन देता है परस प्यास अंतर में जगाता

दूर बैठा चितेरा कूंची नभ पर चलाता !


झूमते पादप हँसें कलियाँ हवा के संग तन

नाचते पीपल के पात खिलखिला गुड़हल मगन !


गर्मियों की शाम सुंदर प्रीत के सुर से सजी

घास कोमल हरी मानो रेशमी चादर बिछी !


है अँधेरा छा गया अब रात की आहट सुनो

दूर हो दिन की थकन अब नींद में सपने बुनो !


मंगलवार, अप्रैल 21

राम

राम  

ग्रीष्म-शीत आते औ' जाते, 
सदा वसन्त राम अंतर में, 
संध्या के स्वर सदा गूँजते 
रात्रि-दिवस की हर बेला में !

कोना-कोना होता गुंजित 
कोकिल के मधुरिम गीतों से,
सदा महकता उर का उपवन 
ब्रह्म कमल की मृदु सुगन्ध से !

समता का शुभ अनिल विचरता 
रस की खानों से मधु रिसता,
शशधर की शीतल आभा से 
भीगा हुआ प्रेम भी झरता !

उर सरिता के ठहरे जल में 
प्रातः अरुण निज मुखड़ा धोता,
दिन भर विचरण करता नभ में 
 आ पुनः वहीं विश्रांति पाता  !

गुरुवार, नवंबर 13

ग्रीष्म की एक संध्या

ग्रीष्म की एक संध्या



छू रही गालों को शीतल ग्रीष्म की महकी पवन
छा गए अम्बर पे देखो झूमते से श्याम घन 

दिवस की अंतिम किरण भी दूर सोने जा रही
सुरमई संध्या सुहानी कोई कोकिल गा रही

कुछ पलों पहले हरे थे वृक्ष काले अब लगें
बादलों के झुण्ड जाने क्या कथा खुद से कहें 

छू रही बालों को आके कर रही अठखेलियाँ
जाने किसको छू के आयी लिये नव रंगरेलियाँ 

चैन देता है परस और प्यास अंतर में जगाता
दूर बैठ एक चितेरा कूंची नभ पर है चलाता 

झूमते पादप हंसें कलियाँ हवा के संग तन
नाचते पीपल के पत्ते खिलखिला गुड़हल मगन 

गर्मियों की शाम सुंदर प्रीत के सुर से सजी
घास कोमल हरी मानो रेशमी चादर बिछी 

है अँधेरा छा गया अब रात की आहट सुनो
दूर हो दिन की थकन अब नींद में सपने बुनो 

मंगलवार, जुलाई 15

ग्रीष्म

ग्रीष्म  

उफ़ !
उमस भरी यह रुत गर्मी की
भीगा-भीगा गात स्वेद से
नमी हवा में
नभ सूना, छुप गयी बदलियाँ
कहीं फिजां में
प्रातः काल सिमटा कुछ पल में 
प्रथम पहर बदला दो-पहर में
नयनों को चुभती, धूप चिलकती
भाती छाया
बंद कपाट, ढके झरोखे
शीतलता बस बंद घरों में
श्रमिक, किसान सभी तपते पर
 काम भला रुकता है कोई
 सर पर बांधे गीला साफा
चले बेचने आलू कांदा...

रविवार, मई 1

गर्मियों की शाम सुंदर


गर्मियों की शाम सुंदर


छू रही गालों को शीतल ग्रीष्म की महकी पवन
छा गए अम्बर पे देखो झूमते से श्याम घन

दिवस की अंतिम किरण भी दूर सोने जा रही
सुरमई संध्या सुहानी कोई कोकिल गा रही

कुछ पलों पहले हरे थे वृक्ष काले अब लगें
बादलों के झुण्ड जाने क्या कथा खुद से कहें

छू रही बालों को आके कर रही अठखेलियाँ
जाने किसको छू के आयी लिये नव रंगरेलियाँ

चैन देता है परस और प्यास अंतर में जगाता
दूर बैठा एक चितेरा कूंची नभ पर है चलाता

झूमते पादप हंसें कलियाँ हवा के संग तन
नाचते पीपल के पत्ते खिलखिला गुड़हल मगन

गर्मियों की शाम सुंदर प्रीत के सुर से सजी
घास कोमल हरी मानो रेशमी चादर बिछी

है अँधेरा छा गया अब रात की आहट सुनो

दूर हो दिन की थकन अब नींद में सपने बुनो


अनिता निहालानी
१ मई २०११

मंगलवार, जून 1

ग्रीष्म की एक संध्या

ग्रीष्म की एक संध्या

छू रही धरा को शीतल ग्रीष्म की महकी पवन
छा गए गगन पे देखो झूमते से श्याम घन !

दिवस की अंतिम किरण भी दूर सोने जा रही
सुरमई संध्या सुहानी कहीं कोकिल गा रही !

कुछ पलों पहले हरे थे वृक्ष काले अब लगें
बादलों के झुण्ड जाने क्या कथा खुद से कहें !

छू रही बालों को आके करती अठखेलियाँ
जाने किसे छू के आयी लिये रंगरेलियाँ !

चैन देता है परस प्यास अंतर में जगाता
दूर बैठा चितेरा कूंची नभ पर चलाता !

झूमते पादप हँसें कलियाँ हवा के संग तन
नाचते पीपल के पात खिलखिला गुड़हल मगन !

गर्मियों की शाम सुंदर प्रीत के सुर से सजी
घास कोमल हरी मानो रेशमी चादर बिछी !

है अँधेरा छा गया अब रात की आहट सुनो
दूर हो दिन की थकन अब नींद में सपने बुनो !

अनिता निहालानी
१ जून २०१०