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बुधवार, जून 15

रोज नया सूरज उगता है


रोज नया सूरज उगता है

प्रतिक्षण नूतन जल ले आती
नदिया रोज नयी होती है,
सदा प्रवाहित अंतर्मन भी  
नव पल्लव सा खिल उठता है !

रोज नया सूरज उगता है
रात्रि नया सवेरा लाए,
नयी सुरभि किसलय ले आते
 ताजा गीत कवि लिख लाए !

बासी मन क्यों लिये घूमते
ज्ञान नया होता है प्रतिदिन,
बासी हर विचार त्याग दें
बासी फूल न होते अर्पण !

छोड़ भूत की कल्मष कटुता
बढ़ आगे नव भाव जगाएं,
नई कल्पना के प्रेम में
पड़ कर नित नूतन हो जाएँ !

कथनी से करनी दुगनी हो
जिह्वा एक, दो कर दे डाले,
नया-नया निर्माण करें नित
फिर उसके चरणों में डालें !

पिटी-पिटाई बात न हो अब  
साहस का हम सँग करें
छोड़ लकीरों को पीछे फिर  
नित नयी मंजिलें तय करें !
अनिता निहालानी
१६ जून २०००