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शनिवार, फ़रवरी 1

आया वसंत



आया वसंत

चल  सखि !  देखें, सरसों फूली 

हर्षाया उर , हर गम भूली !


हुलस उठी बगिया देखो ना 

नव यौवन वृक्षों पर आया 


लतर हरी भयीं भर-भर फूलीं 

गाया मन ने,  हर ग़म भूली !


चल  सखि !  देखें, सरसों फूली 


भँवरे गुन-गुन गायें फागुन 

कोकिल, मोर, पपीहा टेरें 


अमराई की गंध समो ली 

 हर्षाया उर, हर गम भूली !


चल  सखि !  देखें, सरसों फूली

शनिवार, मार्च 2

शुरू हुआ मार्च का मार्च

शुरू हुआ मार्च का मार्च 

यह नव ऋतु के आगमन का काल है 

जब पकड़ ढीली हो गई है जाड़ों की 

अंगड़ाई ले रही हैं नई कोंपलें

 वृक्षों की डालियों पर 

शीत निद्रा से जागने लगे हैं जंतु 

जो धरा के गर्भ में सोये थे

खिलने लगे हैं डैफ़ोडिल भी 

हज़ारों क़िस्म के फूलों के साथ 

आने को है महा शिवरात्रि का पर्व 

बढ़ाने महिला दिवस का गौरव 

इसी माह को जाता है श्रेय 

रमज़ान के आगाज़ का  

फिर आएगा झूमता गाता 

रंगीन पर्व मदमाती होली का 

कहते हैं मंगल से जुड़ा है 

गुलाबी रंगत लिए यह महीना 

जिसमें आकाश का रंग है नीला  

जंगल और हरे हो गये हैं 

पक्षी लौटने लगे हैं अपने ठिकानों पर 

पता है न,  मनाते हैं मार्च में 

जल और वन दिवस  

कविता व गौरैया दिवस 

आनंद और निद्रा दिवस  

और तो और 

सामान्य शिष्टाचार दिवस भी 

कितना कुछ समेटे है अपनी झोली में 

मार्च का यह वासंती मास 

जो बनाता है इसे ख़ासम ख़ास ! 


सोमवार, अगस्त 29

सदा गूँजते स्वर संध्या के

 सदा गूँजते स्वर संध्या के


ग्रीष्म-शीत आते औ' जाते, 

बसे वसन्त सदा अंतर में, 

 रात्रि-दिवस का मिलन प्रहर हो

  सदा गूँजते स्वर संध्या के !


गुंजित वर्षा काल में बाग 

कोकिल के मधुरिम गीतों से,

अंतर उपवन सदा महकता 

ब्रह्म कमल की मृदु सुगन्ध से !


समता का जहाँ वायु विचरे

रस की खानों से मधु रिसता,

शशधर उर शीतल आभा दे 

भीगा हुआ प्रेम भी झरता !


मानसरोवर  के थिर जल में 

प्रातः जाग निज मुखड़ा देखे,

गोधूलि में विश्रांति पाता 

दिन भर विचरण करता जग  में  !


रविवार, फ़रवरी 6

वासन्ती हवा

वासन्ती हवा


धूप ने पिया जब फूलों का अर्क

भर गयी ऊर्जा उसके तन-बदन में....

कल तक नजर आती थी जो कृश और कुम्हलाई

आज कैसी खिल गयी है...

वसंत के आने की खबर उसको भी मिल गयी है !


वसुधा ने भी ली है अंगड़ाई

भर दिया सहज  वनस्पतियों में यौवन

सिकुड़ी, सूखी सी दिखती थीं जो डालें कल तक 

पल्लवों से मिल गयी है

वसंत के आने की खबर उसको भी मिल गयी है !


पाले में ढके, कोहरे में खेत

झूमते पा परस वासन्ती हवा का

चुप सी खड़ी थी जो सरसों की हर वह कली कल 

फूल बन घर से गयी है

वसंत के आने की खबर उसको भी मिल गयी है !


उर में हुलस उठी बाल-युवा सभी 

शीत से बेहाल घरों में क़ैदी थे  , 

हुल्लड मचाने टोली उनकी मिलजुल कर आज 

दोस्तों के घर गयी है

वसंत के आने की खबर उसको भी मिल गयी है !


शुक्रवार, फ़रवरी 4

पंछी, तुम और वसंत

पंछी, तुम और वसंत 
मदमाता वसंत ज्यों आया 
कुदरत फिर से नयी हो गयी, 
मधु के स्रोत फूट पड़ने को 
नव पल्लव नव कुसुम पा गयी !

भँवरे, तितली, पंछी, पौधे 
हुए बावरे सब अंतर में, 
कुछ रचने जग को देने कुछ 
आतुर सब महकें वसंत में !

 याद तुम्हें वह छोटी चिड़िया 
नीड़ बनाने जो आयी थी, 
संग सहचर चंचु प्रहार कर 
छिद्र तने में कर पाई थी ! 

वृत्ताकार गढ़ते घोंसला 
हांफ-हांफ कर श्रम सीकर से, 
बारी-बारी भरे चोंच में 
छीलन बाहर उड़ा रहे थे !

आज पुनः निहारा  दोनों को 
स्मृतियाँ कुछ जागीं अंतर में, 
कैसे मैंने ली तस्वीर 
प्रेरित कैसे किया तुम्हीं ने ! 

 देखा करतीं थी खिड़की से 
 क्रीडा कौतुक उस पंछी का, 
 मित्र तुम्हारा’ आया देखो 
कहकर देती मुझको उकसा !

कैद कैमरे में वह पंछी 
नीली गर्दन हरी पांख थी, 
तुमने मनस नयन से देखा 
लेंस के पीछे यह आँख थी !

बुधवार, जुलाई 31

चंदा की आभा में कैसा यह हास जगा


चंदा की आभा में कैसा यह हास जगा


मानस की घाटी में श्रद्धा का बीज गिरा
प्रज्ञा की डालियों पर शांति का पुष्प उगा,
मन अंतर सुवास से जीवन बहार महकी  
रिस-रिस कर प्रेम बहा अधरों से हास पगा !

कण-कण में आस जगा नैनों में जोत जली
हुलसा तन का पोर-पोर अनहद नाद बजा,
मधुरिम इक लय बिखरी जीवन संगीत बहा
कदमों में थिरकन भर अंतर में नृत्य जगा !

मुस्काई हर धड़कन लहराया जब वसंत
अपने ही आंगन में प्रियतम का द्वार खुला,
लहरों सी बन पुलकन उसकी ही बात कहे
बिन बोले सब कह दे अद्भुत आलाप उठा !

हँसता है हर पल वह सूरज की किरणों में
चंदा की आभा में कैसा यह हास जगा,
पल-पल संग वही संवारे सुंदर भाग जगा
देखो यह मस्ती का भीतर है फाग सगा !

युग-युग से प्यासी थी धरती का भाग खुला
सरसी बगिया मन की जीवन में तोष जगा,
वह है वही अपना रह-रह यह कोई कहे
सोया था जो कब से अंतर वह आज जगा !


रविवार, जनवरी 25

आया वसंत

आया वसंत

महुआ टपके रसधार बहे
गेंदा गमके मधुहार उगे ,
महके सरसों गुंजार उठे
घट घट में सोया प्यार जगे !

ऋतू मदमाती आई पावन
झंकृत होता हर अंतर मन,
रंगों ने बिखराई सरगम
संगीत बहा उपवन उपवन !

जागे पनघट जल भी चंचल
हुई पवन नशीली हँसा कमल,
भू लुटा रही अनमोल कोष
रवि ने पाया फिर खोया बल !

जीवन निखरा नव रूप धरा
किरणों ने नूतन रंग भरा,
सूने मन का हर ताप गया,
हो मिलन, उठा अवगुंठ जरा !


सोमवार, अगस्त 18

जैसे

जैसे


उतरा हो वसंत
मन उमग रहा
उसकी आहट है !

खिले पलाश मधु बरसा
पादप-पादप सुख से सरसा
गाती कोकिल भावों का उड़ा पराग
फिर भी न जाने कैसी अकुलाहट है !

चिर प्रतीक्षा थी जिसकी
पाहुन वह घर आया
पोर-पोर में धुन बजती
ज्यों अंतर कलिका खिलती
किसलय रक्तिम ज्यों नाच रहे
तितली दल खुशबू बांछ रहे
उर में उडती सी आस लिए
यह कैसी घबराहट है !

उर्वर मन का कोना-कोना
मौन कोख माटी की ज्यों हो
बीज प्रतीक्षा का था बोया
सिंचन करने मन था रोया
 आज खिले हैं जूही, चम्पा
भूल गयी काली रातें वे
बिसर गयीं घन बरसातें वे
फिर भी न जाने क्यों
शंकित सी बुलवाहट है !


शनिवार, मार्च 1

वर्षा को भी मची है जल्दी

वर्षा को भी मची है जल्दी


टिप-टिप बूंदें दूर गगन से
ले आतीं संदेश प्रीत के,
धरा हुलसती हरियाली पा
खिल हँसती ज्यों बोल गीत के !

शिशिर अभी तो गया नहीं है
 रुत वसंत आने को है,
मेघों का क्या काम अभी से
 फागुन माह चढ़ा भर है !

वर्षा को भी मची है जल्दी
उधर फूल खिलने को आतुर,
मोर शीत में खड़े कांपते
 अभी नहीं जगे हैं दादुर !

मानव का ही आमन्त्रण है
उथल-पथल जो मची गगन में,
बेमौसम ही शाक उगाता
बिन मौसम फल-फूल चमन में !


बुधवार, फ़रवरी 5

लो आ गया वसंत

लो आ गया वसंत


धूप रानी हो गयी
रुत सुहानी हो गयी
बाग में कलियाँ खिलाता
छा गया वसंत
लो आ गया वसंत !

खुशबुएँ तन पर लपेटे
रंग अनगिन भी समेटे
भू सजाता मुस्कुराता
भा गया वसंत
लो आ गया वसंत !

भ्रमर गूँजते विकल
तितलियों के उड़ें दल
कुम्हलाया मुरझाया मन
खा गया वसंत
लो आ गया वसंत !

मंजरी मदहोश हुई
मस्तियों की कोष हुई
आम्र वन में खिलखिलाता
सा गया वसंत
लो आ गया वसंत !
  


मंगलवार, फ़रवरी 7

आया वसंत झूम के


आया वसंत झूम के

धूप ने पिया जब फूलों का अर्क
भर गयी ऊर्जा उसके तन-बदन में....
कल तक नजर आती थी जो कृश और कुम्हलाई
आज कैसी खिल गयी है...
वसंत के आने की खबर उसको भी मिल गयी है !

धरा ने ली अंगड़ाई
भर दिया वनस्पतियों में यौवन
सिकुड़ी, सूखी सी दिखती थी जो डाल
आज पल्लवों से मिल गयी है
वसंत के आने की खबर उसको भी मिल गयी है !

पाले में ढके, कोहरे में कैद खेत
झूमने लगे पा परस
वासन्ती हवा का
चुप सी खड़ी थी जो सरसों की हर वह कली
आज फूल बन के घर से निकल गयी है
वसंत के आने की खबर उसको भी मिल गयी है !

अंतर में हुलस उठी बालकों, बड़ों सबके
ठंड से जो थी बेहाल
घरों में बंद थी, हुल्लड मचाने
टोली उनकी फूलों के घर गयी है
वसंत के आने खबर उसको भी मिल गयी है !


शुक्रवार, फ़रवरी 4

आया वसंत





आया वसंत

नव वसंत की नई भोर का
तन-मन में जागी हिलोर का
उल्लसित हो करें स्वागत !

नयी प्रीत हो नयी रीत हो
नव ऊर्जा से रचा गीत हो,
नया जोश हो नव उमंग हो
हर दिल में छायी तरंग हो !

मधुमास के नए प्रातः का
नए तराने नयी बात का
हर्षित हो करें स्वागत !

नए इरादे नए कायदे
इस वसंत में नए वायदे,
नए रास्ते नयी मंजिलें
नव ऋतु में नए सिलसिले !

नव बहार की नई सुबह का
नई मित्रता नई सुलह का
प्रफ्फुलित हो करें स्वागत !

अनिता निहालानी
४ फरवरी २०११
 


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