जीवन सा हो मरण भी सुंदर
भरे न उर ऊँची उड़ान जब
बरबस बहे न प्रेमिल सरिता,
पाँवों में थिरकन न समाये
जीवन वन सूना सा रहता !
एक मोड़ आये जब ऐसा
रुखसत पूर्ण ह्रदय से ले लें,
जीवन को भरपूर जी लिया
अब स्वयं ही मृत्यु पथ चुन लें !
गहन दुर्दम निद्रा है मृत्यु
जीवन सा हो मरण भी सुंदर,
अंतर का अवसाद मिटाने
मिला सभी को रहने का घर !
जान लिया हर लक्ष्य जगत का
जो पाना था पाया हमने,
पढ़ ही डाले जितने भी थे
ख़ुशियों और गमों के किस्से !
बने कृतज्ञ इस अस्तित्त्व के
धीमे से हम आँख मूँद लें,
जीवन ने कितना कुछ सौंपा
अब अंतिम ऊँचाई पा लें !
मृत्यु सभी भेदों से ऊपर
राजा-रंक सभी मरते हैं,
खेल ख़त्म हो जाते इसमें
व्यर्थ मनुज इससे डरते हैं !
जीने की जो कला सीख ले
सहज मरण के पार हो गया,
देह और मन के ऊपर जा
ख़ुद का जब दीदार हो गया !