बुधवार, जनवरी 31

लहर उठी


लहर उठी

सहज तरंगित उच्छल ऊर्जित
लहर उठी विराट सागर में,
लक्ष्य नहीं है कोई जिसका
गिर जाती विलीन हो पल में !

छूता कोई दृश्य गगन का
कभी धरा हँसती अंतर में,
निज सृष्टि शुभा देख-देख ही
मुग्ध हो रहा कोई जग में !

कर वीणा तारों को झंकृत
हर्षित हो निनाद उपजाता,
सहज जगे जब पग में नर्तन
उर के भावों को दर्शाता !

 एक सत्य ही प्रकटे सब में
भाव जगें अंतर में ऐसे,
सहज ऊर्जा रवि बिखराता
 कृत्य झरें ऐसे ही जग में !

सोमवार, जनवरी 29

एक अजाना मौन कहीं है



एक अजाना मौन कहीं है


कभी उत्तंग नभ को छूतीं
कभी क्लांत हो तट पे सोतीं,
सागर को परिभाषित करतीं 
उन लहरों का स्रोत कहीं है !

कभी बुद्ध करुणानिधि बनता
रावण सा भी व्यर्थ गर्जता,
दुनिया जिसके बल पर चलती
उस मानव का अर्थ कहीं है !

अंतर को मधु से भर जाते
जोश बाजुओं में भर जाते,
विमल संग से हृदय पिघलता
उन गीतों का मर्म कहीं है !

भू की गहराई में सोया
नभ की ऊँचाई में खोया,
उर से जिसके शब्द फूटते
एक अजाना मौन कहीं है !

शुक्रवार, जनवरी 26

जैसे चन्द्र चमकता नभ में



गणतन्त्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित 

जैसे चन्द्र चमकता नभ में


भूमंडल पर देश सैकड़ों
भारत की है बात निराली,
जैसे चन्द्र चमकता नभ में
दिपदिप भारत की फुलवारी !

जिओ और जीने दो’ का यह   
मन्त्र सिखाता सारे जग को,
योग शक्ति से खुद को पायें
राह दिखाता हर मानव को !

प्रकृति का सम्मान करें सभी
शांति पाठ का गायन निशदिन,
मूषक, मोर, बैल वन्दित हैं
हर प्राणी का स्थान है उचित !

गौरवशाली परंपरा है
देवों से साहस पाता है,
सृष्टि के कई भेद जानता
युद्धों में गीता गाता है

मेधा, प्रज्ञा, समझ जगाता
सुप्त चेतना परम जगाकर,
दुनिया में परचम लहराता
वैदिक संस्कृति को पुनः लाकर !

भारत देश जवानों का है
श्रमिकों और किसानों का है,
जागरूक महिलाओं का भी
अलबेले दीवानों का है !

गुरुवार, जनवरी 25

विवाह की वर्षगांठ पर




आज छोटी बहन के विवाह की वर्षगांठ है, यह कविता उन सभी को समर्पित है जिनके विवाह की वर्षगांठ इस हफ्ते है.

विवाह की वर्षगांठ पर शुभकामनाओं सहित 

बरसों से ज्यों चल रहे, लिए हाथ में हाथ
राज खोलते हैं यही, जन्म-जन्म का साथ

इक दूजे का हौसला, इक दूजे का मान
बन सदा दिखलाया है, दिल से अपना जान

जो माँगा पाया सदा, पूर्ण हुई हर आस
आँगन में कलियाँ खिलीं, अंतर में विश्वास

सुर-तालों की साधना, मिल करता परिवार
खुशियाँ बाँटे जगत में, पा सुख का आधार

तन-मन दोनों स्वस्थ हों, और आत्मा पूर्ण
यही दुआ इस सुदिन पर, जीवन हो सम्पूर्ण

मंगलवार, जनवरी 23

सारा आकाश मिला है




सारा आकाश मिला है


शब्दों के पंख मिले हैं
सारा आकाश मिला है,
दिल में इक विरह अनोखा
रब में विश्वास मिला है !

पलकों में मोती पलते
नयनों में दीप संवरते,
अधरों पर गीत मिलन के
राहों में रहे बिखरते !

अंतर में अभिलाषा है
खिलने की शुभ आशा है,
बाहर आने को आतुर
बचकानी सी भाषा है ! 

शुक्रवार, जनवरी 12

कदमों में भी राहें हैं



कदमों में भी राहें हैं

अभी जुम्बिश भुजाओं में
कदगों में भी राहें हैं,
अभी है हौसला दिल में
गंतव्य पर निगाहें हैं !

परम  दिन-रात रचता है
जगती नित नूतन सजती,
नींदों में सपन भेजे
जागरण में धुनें बजतीं !

चलें, हम थाम लें दामन
इसी पल को अमर कर लें,
छुपा है गर्भ में जिसके
उसे देखें, नजर भर लें !

अभी झरने दें शब्दों को
प्रस्तर क्यों बनें पथ में,
सृजन का स्रोत है अविचल
बहाने दें सहज जग में !

अभी मुखरित तराने हों
विरह के भी प्रणय के भी,
किसी के अश्रु थम जाएँ
वेदना  से विजय के भी !

नहीं रुकना नहीं थमना
अभी तो दूर जाना है,
जिसे अपना बनाया है
उसे जग में लुटाना है !