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शुक्रवार, सितंबर 27

एक पाती मृणाल ज्योति के नाम


एक पाती मृणाल ज्योति के नाम


बरसों पहले जब तुम्हारा जन्म ही हुआ था
नन्हे थे तुम अभी नामघर में पल रहे थे
एक दिन अवसर मिला था मुलाकात का
सिलसिला वह रुका नहीं और...
 एक रिश्ता बनता गया
तुमसे किसी गहरे जज्बात का !
साक्षी बनी उस दिन की जब
दुलियाजान क्लब में एक मेला लगा था
अनेक तरह के सबने स्टाल लगाये
नेहरू मैदान तक एक बार जुलूस भी निकला था
राखियाँ बनाकर क्लब में लगाई थीं दुकानें
ऐसे ही न जाने कितने हैं अफसाने
सफाई अभियान में झाड़ू लगाया
स्टेज पर कार्यक्रम का संचालन किया
राजगढ़ में बनी साक्षी नई शाखा की
भाग लिया 'परिवार' के कार्यक्रम में
दुलियाजान व डिब्रूगढ़ में
बच्चों को कुछ माह हिंदी पढ़ाई
योग व प्राणायाम की विधि सिखाई
शिक्षकों के साथ भी बिताये कुछ पल
पहचानें वे स्वयं को दिया इसके लिए संबल
आज जाने की बेला है
मन में यादों का एक रेला है
समय-समय पर कितनी मासूम आवाजों ने तुम्हें पुकारा है
आज युवा हो गये हो
अनगिनत समर्थ हाथों ने तुम्हें संवारा है
इसी तरह तुम्हें आगे भी बलवान होना है
अपने पैरों पर खड़े ही नहीं होना
हर बच्चे की आशाओं पर कुर्बान होना है !

गुरुवार, दिसंबर 4

विश्व विकलांग दिवस पर



मृणाल ज्योति – एक आश्वास

दुलियाजान, कुमुद नगर स्थित गैर सरकारी संस्था मृणाल ज्योति आज एक चिर परिचित नाम है, जो पिछले पन्द्रह वर्षों से विशेष बच्चों की सहायता में जीजान से संलग्न है. इस समय यहाँ के स्कूल में एक सौ चालीस बच्चे पढ़ते हैं. जिनमें से सतासी छात्र तथा चौसठ छात्राएँ हैं. यहाँ मानसिक रूप से अविकसित विद्यार्थियों की संख्या छियासठ है तथा सुनने-बोलने में बाधित उन्नीस बच्चे हैं. चार छात्र ऐसे हैं जिन्हें शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार की बाध्यता है. सतावन सेरीब्रल पालसी से बाधित हैं.  चार ऑटिस्टिक हैं   तथा एक  लोकोमोटर बाध्यता से ग्रस्त है. इन सभी प्रकार के बच्चों के पूर्ण विकास के लिए हर सम्भव प्रयास किया जाता है. उन्हें रोजमर्रा के कार्यों के योग्य बनाया जाता है. उन्हें स्वच्छता तथा सामान्य व्यवहार की शिक्षा दी जाती है. कला तथा नृत्य के माध्यम से उनमें आत्मविश्वास जागृत किया जाता है. विभिन्न हुनर सिखाकर उन्हें भविष्य में आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी जाती है. यहाँ कक्षा आठ तक की शिक्षा का प्रबंध भी है. जो बच्चे सामान्य स्कूल में जाने के योग्य हो जाते हैं उन्हें स्थानांतरित कर दिया जाता है. अठारह वर्ष तक उन्हें यहाँ रखा जा सकता है, इसके बाद वे यदि चाहें तो कुछ वर्ष और भी रुक सकते हैं. माता-पिता का सहयोग मिले तो ये बच्चे भविष्य में अपना रोजगार भी शुरू कर सकते हैं और किसी हद तक एक सम्मानजनक सामान्य जीवन जी सकते हैं. किन्तु देखा गया है जब इस स्कूल में सीख कर बच्चे अपना दैनिक क्रियाकलाप करने योग्य हो जाते हैं तो माता-पिता उन्हें स्कूल भेजना बंद ही कर देते हैं और कुछ ही दिनों में बच्चे सीखा हुआ भी भूल जाते हैं और पुनः उसी स्थिति में पहुंच जाते हैं जहाँ वे पहले-पहल आए थे. इसलिए मृणाल ज्योति ने समय-समय पर माता-पिताओं को भी प्रशिक्षण देना आरम्भ किया है.
बदलते हुए समय के साथ आज समाज में इनके जैसे व्यक्तियों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता. यदि इन्हें अपने अधिकारों से रूबरू कराया जाये और सम्मानजनक जीवन जीने के अवसर प्रदान किये जाएँ तो ये बच्चे भी बहुत कुछ कर के दिखा सकते हैं. देखा जाये तो कमी किस इन्सान में नहीं है. समाज में कितने ही व्यक्ति ऐसे हैं जो शारीरिक व मानसिक रूप से पूरे सक्षम हैं पर समाज पर बोझ हैं, यदि वे किसी नशे की आदत के शिकार हैं या अपराधी प्रवृत्ति के हैं. जबकि ये बच्चे यदि इन्हें विशेष शिक्षा दी जाये समय पर उचित सहायता दी जाये तो राष्ट्र के विकास में अपनी भूमिका निभा सकते हैं. यह सही है कि समाज से विकलांगता को पूरी तरह मिटाया तो नहीं जा सकता पर इसे अभिशाप समझने की मानसिकता से बचा अवश्य जा सकता है. किसी भी कीमत पर इन्हें हीन भावना का शिकार नहीं होने देना है. प्यार और स्नेह से इन्हें सींचना है और बदले में इनके प्रेम को महसूस करना है. हर तरह से प्रोत्साहित करना है न कि इन्हें उपहास का पात्र समझना है. शारीरिक अक्षमता का यह अर्थ नहीं कि कोई मानसिक रूप से भी अक्षम है, इनमें भी भावनाएं हैं. इन्हें भी बराबरी से जीने का हक है.

सरकार ने भी ऐसे बच्चों के लिए कई योजनाये बनायी हैं. समान अवसर देना, अधिकारों की रक्षा करना और पूर्ण सहभागिता विकलांग व्यक्ति अधिनियम के अंतर्गत आते हैं. समय-समय पर सरकार द्वारा सहायक उपकरण प्रदान किये जाते हैं, छात्र वृत्तियाँ और पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं. शासकीय नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था भी है. समाज का कर्त्तव्य है कि इनमें आत्मविश्वास जगाकर आत्मनिर्भर बनाने में मदद करे और सामान्य जीवन जीने का जज्बा पैदा करे. मृणाल ज्योति संस्था इनके पुनर्वास के लिए अनथक काम कर रही है और भविष्य में भी करती रहेगी.      

शनिवार, दिसंबर 3

मृणाल ज्योति के बच्चों को समर्पित


 दुलियाजान असम में स्थित मृणाल ज्योति संस्था, विकलांगों के पुनर्वास के लिये पिछले कई वर्षों से कार्य कर रही है. आज यहाँ भी विश्व विकलांग दिवस मनाया जा रहा है, यह कविता उसी कार्यक्रम में पढ़ी जायेगी.


विश्व विकलांग दिवस

वे बाधाग्रस्त हैं
अपूर्ण हैं
किन्तु केवल देह के तल पर,
मन और आत्मा से वे भी पूर्ण हैं
हम आप ही की तरह..

कभी वे बोल नहीं सके
सुन पाने में असमर्थ रहे
कभी नाकाबिल चल पाने में
मन की मन में रखने को विवश रहे  !

झूठ और हिंसा के बलबूते पर
जीती हुई दुनिया से हैं अछूते
जहाँ जन्मे वहाँ भी
कभी-कभी बोझ हैं माने जाते
कहलाकर मंदबुद्धि उपहास के पात्र हैं बनते !

वे ऐसे हुए  
ताकि हम कीमत जान सकें
जीवन के बहुमूल्य उपहारों की
ताकि हम पा सकें सेवा का अवसर
भर सकें अपने भीतर का छोटापन
जो सम्भाल सके अपूर्णता को
भर सकें अपने भीतर वह ताकत !

वे बाधाग्रस्त हैं लेकिन
अयोग्य या असहाय नहीं
आत्मशक्ति भरे भीतर वे तैयार हैं
करने सामना जीवन का

वे मुस्काते हैं, सहज हैं, इतने निर्दोष
कि वे शिकायत भी नहीं करते किसी से
ये तो हम ही हैं जो सकुचाते हैं उन्हें देख
वे अपनेआप में ऐसी कृति हैं परमात्मा की
जिन्हें चाहिए हमारी साज-सम्भार !

और हम जो भी करेंगे उनके लिये
अंततः होगा वह हमारे ही लिये
जाग उठेगी हमारे भीतर सोयी चेतना
उन आँखों में दिखेगी उसी की ज्योति
उन अधरों पर उसी की हँसी !

वे हमारी दया के नहीं, प्रेम के अधिकारी है
वे मासूम हैं, छलकपट की दुनिया से दूर
अपनी दुनिया में मस्त
चाहकर भी हम जिसमें प्रवेश नहीं पा सकते
पर इतना तो कर सकते हैं
कि उनके पथ के दो चार कंटक ही बीन दें
हमारे सहयोग से उनका जीवन
थोड़ा सा सरल हो जाये
विश्व विकलांग दिवस मनाना भी तो
सही अर्थों में सफल हो जाये !




  

बुधवार, अक्टूबर 12

एक बार दीवाली ऐसी


एक बार दीवाली ऐसी


बाहर दीप जलाये अनगिन
भीतर रही अमावस काली,
ज्योति पर्व मने कुछ ऐसा
मन अंतर छाये उजियाली !

तन का पोर-पोर उजला हो
फूट-फूट कर बहे ऊर्जा,
सुगठित, स्वच्छ, स्वस्थ देह में
दीप जले इक नव उमंग का !

प्राण में न कम्पन होता हो
सधा, सहज वह आये जाए,
श्वासों की सुंदर माला से
हृदय गुफा में देव रिझाएँ !

मन प्रांगण को भाव से लीपें
तृप्ति का अमृत जल छिडकें,
सत्य शिला पर शिव बैठे हों
सुंदर गीत रचें भक्ति के !

प्रज्ञा की इक बेल उगी हो
शील, समाधि के फल आयें,
भीतर इक उजास बिखरी हो
वाणी में भी जो छलकाए !

तब बिखरेगी हँसी फुलझड़ी
आनंद का अनार फूटेगा,
मुस्कानों के दीप जलेंगे
झर-झर कर आलोक बहेगा !

सिहर-सिहर जायेगी कालिमा
तमस रात्रि उजियारी होगी,
प्रेम सुरभि महका कर शोभित
ज्योति की फुलवारी होगी !

नयनों से फूटेंगी किरणें
अधरों से इक खनक नशीली,
मन से प्रेम प्रकाश बहेगा
वाणी से इक दुआ रसीली !

दीवाली का अर्थ यही है
मन का तमस विदा हो जाये,
तृष्णा कीट जलें अग्नि में
अंतर से अकुलाहट जाये !

पंचकोश पावन हों भीतर
नव द्वार फिर आलोकित हों,
दशम द्वार से परिचय पालें
उस पाहुन का स्वागत हो !

एक बार दीवाली ऐसी
जगमग जग अपना कर देगी,
सदा-सदा को मन मंदिर में
ज्योतिर्मय सपना भर देगी !  






   

सोमवार, अप्रैल 18

मृणाल ज्योति संस्था द्वारा बीहू नृत्य

प्रिय ब्लॅागर साथियों,  मृणाल ज्योति से मैंने  आपका परिचय विश्व विकलांग दिवस ,३ दिसम्बर की पोस्ट में कराया था , बीहू के अवसर पर ये बच्चे भला कैसे पीछे रहते , अपनी संस्था के लिये धन एकत्र करने  हेतु निकल पड़े अपनी टोली लेकर मनोहारी नृत्य दिखाने,प्रस्तुत हैं कुछ तस्वीरें !   
बीहू की मस्ती छाई , मन भावन ऋतु है आई


ढोल बजे मृदंग बजे, तुरही और खरताल बजे
बंसी की धुन मोहक है
गीत सुरीले गूंज रहे  

कदम सभी के थिरक रहे नैनों से भी पुलक बहे

गुरुवार, दिसंबर 2

विश्व विकलांग दिवस

 
Posted by Picasa
विश्व विकलांग दिवस

आज मैं आपका परिचय ‘मृणाल ज्योति’ से कराना चाहती हूँ, जो विकलांगों के पुनर्वास के लिये बनी एक गैर सरकारी संस्था है. जिसका मुख्य उद्देश्य है उन बच्चों की जल्दी से जल्दी पहचान करना जो किसी न किसी विकलांगता का शिकार हैं तथा उन्हें समुचित इलाज व शिक्षा की सुविधा देकर समाज में सम्मान पूर्वक जीने के योग्य बनने में मदद करना. आज यहाँ सभी लोग उत्साह से भरे हैं, पर सदा ऐसा नहीं होता, यहाँ आने वाले कुछ बच्चों का जीवन बेहद कठिन है, कुछ दिन पूर्व यहाँ ‘बढ़ते कदम’ नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ, [एक जागरूकता अभियान जो पूरे देश में चलाया जा रहा है]

मृणाल ज्योति

ज्योति स्नेह की
आत्मीयता की, अपनेपन की
सहानुभूति की , सेवा की
झर-झर झरती स्वतः हृदय से
मृणाल ज्योति के !

एक प्रकाश स्तम्भ सम चमके
हरता तिमिर जहां से,
कुछ सूने अंतर भर उठते
कुछ परिवार स्नेह पा खिलते,
कुछ नन्हें मुस्काने पाते
कुछ यौवन कौशल पा जाते
आश्रय मिलता विकलांगों को
मुरझाने से बचपन बच जाते !

विद्या स्थल भी, कर्म स्थल भी
जीवन की कठोर सहता,
दर्द छुपाये अपने भीतर
कितनी पीड़ाएँ है सहता,
किन्तु न विचलित, सदा समर्पित
और बिखेरे ज्योति प्यार की
करुणा की, औदार्य की
मरहम रखता रिसते मन पर
झर झर झरता स्नेह हृदय से
मृणाल ज्योति के !

अनिता निहालानी
३ दिसंबर २०१०