चिनार की छाँव में - अंतिम भाग
धरती पर स्वर्ग
अभी थोड़ी देर पहले हम कश्मीर की राजधानी श्रीनगर का सिटी टूर करके वापस आये हैं। भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य का सबसे बड़ा शहर श्रीनगर झेलम नदी के किनारे बसा है। सुबह नौ बजे होटल से निकले तो सबसे पहले हम लाल चौक देखने गये। लाल चौक के बारे में न जाने कितने अच्छे-बुरे समाचार मन के पटल पर छा गये। कभी वहाँ आंदोलन होते थे पर आज पूरी तरह शांति थी। कुछ लोग सुबह की धूप सेंक रहे थे। हमने एक व्यक्ति से हमारे समूह की फ़ोटो खींचने को कहा। उसने बाद में बताया यहाँ कोई इंडस्ट्री न होने के कारण बेरोज़गारी ज़्यादा है, वह ख़ुद भी काम की तलाश में है। अभी दुकानें बंद थीं, एक दीवार पर हमने भगवान कृष्ण की सुंदर तस्वीर देखी, जो सनातन धर्म की किसी संस्था ने लगवायी थी। दिल को सुकून सा हुआ कि सभी धर्मों के लोग अब वहाँ अपने रीति-रिवाजों का पालन कर सकते हैं। सदियों पहले यहाँ सम्राट अशोक और चंद्रगुप्त ने राज्य किया था। ऋषियों की इस भूमि पर कभी कालिदास ने भी अपने कदम रखे थे।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5cIwLizkxMc2ksJMJdJp4poMIV-cLZlgKyk0-AIFIsqK22yOkrFxSGgofjg158UyO00hrq7FW_jCPeZuyGTV0Uqg8nC6N468iBTHXET8Ip0U9ZzpHHsduZZ-7xWini9EerKI1K-z2vX-YKJDvxP9OkOsCABiocUxAZIAbZl5EdJkQI4-GoM1Bjk5nZC8/s320/20231101_093746.jpg)
इसके बाद हम सेंट ल्यूक चर्च देखने गये, यह चर्च सौ वर्षों से भी अधिक पुराना है। चर्च के बाहर शानदार बगीचा है। भीतर भव्य पूजा स्थल तथा विशाल हॉल है। केवल एक व्यक्ति हमें वहाँ मिला, जिसने बताया, मुख्य पादरी मुंबई में रहते हैं, शुक्रवार को आकर सोमवार को वापस चले जाते हैं। हमने कुछ समय वहाँ बिताया। इसके बाद डल झील में शिकारा पर सैर करने की बारी थी।हमारी कार एक चौराहे पर रुकी तो एक छोटी सी लड़की मोजे बेचने आ गई, कुछ आश्चर्य भी हुआ और ख़ुशी भी कि लड़कियाँ भी काम के लिए बाहर निकल रही हैं। लगभग आठ किमी लम्बी और चार किमी चौड़ी डल झील अति खूबसूरत है। झील चार भागों में बंटी हुई है इस पर दो द्वीप भी हैं जो इसे और भी आकर्षक बनाते हैं। झील के शांत जल पर जब नाविक हमारी नाव को खे रहा था, न जाने कितनी फ़िल्मों के कितने गीत स्मृति पटल पर आ-जा रहे थे। फूलों से तथा अन्य सामानों से लदी कई नावें उसमें तैर रही थीं। हवा में हल्की ठंडक थी और धूप भली लग रही थी। शिकारा की साज-सज्जा देखने लायक़ थी, वहाँ बैठने का स्थान भी काफ़ी आरामदायक था।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjr-uUfyD2I7gcP9wvbTM9budkN4wtJMBV2wfFmSisCtGgrH0VTS4NS_YFb_i2t8hZXoF6KMJD8l2ycxNiz9YjALw9ZyUfLz1bbD1js3VxueIIfyV5EL76QgS6SkQfE3cwWciXFHdJzQ_uYZeW1uHv8SlgOTdJXy1FyL5-Mfp9PvoUkxLYQx0tfqsX0mfw/s320/20231101_121030.jpg)
तत्पश्चात हम ढाई सौ से अधिक सीढ़ियाँ चढ़कर प्रसिद्ध शंकराचार्य मंदिर देखने गये। भगवान शंकर को समर्पित इस मंदिर का निर्माण राजा गोपादित्य ने ३७१ ईसा पूर्व करवाया था।आठवीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण हुआ , बाद में डोगरा शासक गुलाब सिंह ने मंदिर तक पहुँचने के लिए सीढ़ियों का निर्माण करवाया।आदि गुरु शंकराचार्य ने अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान यहाँ तपस्या की थी, एक छोटा सा मंदिर उनकी तप:स्थली पर भी बनाया गया है। अनवरत लोगों की भीड़ वहाँ आ रही थी।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlECVL7Xg6ldSM2lTeqiEucW9mtSHNUnBKqPvREbaqi67CB8apWQmkwxRHEjocOInfbdciUNDUk8ZsHKD-07Hvxjp7UrmW9hXpdzXKxQFGLMmlBCsx3npoL9nfxWvINYbZIPkQxrl6fWir8PQSPBwklU2HawU5-PD0rgADJsWv7MXJI570u8IxPsCHRgg/s320/20231101_150138.jpg)
हमारा अगला पड़ाव था मुग़ल बादशाह जहांगीर द्वारा निर्मित शालीमार बाग, जो अपनी अनुपम सुंदरता के लिए सदियों से जाना जाता है।यहाँ कई नहरें बनायी गई हैं, और विभिन्न ऊचाइयों पर चार विशाल बगीचों का निर्माण किया गया है। अनेक मौसमी फूलों की बहार यहाँ अपने शबाब पर थी पर बाग का रख-रखाव उतना अच्छा नहीं था, जितना हो सकता था। जबकि दोपहर के भोजन के पश्चात जब हम निशात बाग गये तो वहाँ सभी रास्ते स्वच्छ थे, सभी फ़ौवारे काम कर रहे थे। रंग-बिरंगे फूलों को निहारने स्कूल के बच्चों की क़तारें भी वहाँ थीं। यहाँ चिनार और सरू के पेड़ों की लंबी क़तारें मन मोह रही थीं। इस बाग का निर्माण मुग़ल बादशाह की रानी के भाई ने करवाया था। यहाँ भी छोटी नहरों के माध्यम से जल धाराएँ बह रही थीं, जिनके किनारों पर टहलने के लिए रास्ते बनाये गये हैं।यहाँ से डल झील बिलकुल निकट ही है। दोनों ही जगह पर्यटकों की विशाल भीड़ थी, जो कश्मीर के बदले हुए मौसम की खबर दे रही थी।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh-_2mUF40f67tq1FuQ5Tj0Fo38wYMaoDWJuQo2iwJa_zv0e86FAQKyBuGDq_1HYDZ9ZzlKPBOd5rtIi-aP-b4QQypJE-0RzWZzgP9_1OfaMNPbfaWDmmL5YbuXdx5mg4m-nAxYnfqO2hD-N3c77yWwAWr49O7UPm1buawN7X5GQO0tQ5nvZOJsj1_DUtg/s320/20231101_150152.jpg)
लौटते समय वॉलनट फ़ज की दुकान ‘मूनलाइट’ पर गये। कल सुबह हमें वापस जाना है। इस यात्रा में कितने ही लोगों ने हमारी सहायता की है। उनके नाम कुछ दिनों बाद शायद हम भूल जाएँगे पर मेहमान नवाज़ी का उनका जज़्बा और आत्मीयता की सुगंध सदा साथ रहेगी। दुनिया में अच्छे लोग अधिक हैं, यह यात्रा इसका अटूट प्रमाण है। सर्वप्रथम बैंगलुरु हवाई अड्डे पर ड्यूटी मैनेजर द्वारा दी गई मदद, फिर दिल्ली हवाई अड्डे पर मिली सहायता। श्रीनगर से पूरे दस दिन ड्राइवर हमारे साथ रहा, जिसने सदा समय पर आकर और उत्साह दिलाकर यात्रा को सुखद बनाया।कई बार पूछे जाने पर भी वह बड़े धैर्य से उन्हीं सवालों का जवाब देता रहा। हाउस बोट का मैनेजर, पहलगाम व अन्य स्थानों के होटलों के कर्मचारी सभी यात्रियों का दिल से स्वागत करते हुए दिखे। पर्यटन ही यहाँ का मुख्य व्यवसाय है, वह शायद हरेक के साथ ऐसे ही पेश आते होंगे। कश्मीर ने सदियों से हिंसा के दौर देखें हैं, अब यहाँ अमन की ज़रूरत है। इसके लिए ज़रूरी है कि हमें भी उनके साथ वैसा ही प्रेम भरा व्यवहार करना चाहिए, जैसा हम उनसे चाहते हैं।