शुक्रवार, जून 15

ईद के मौके पर एक इबादत


ईद के मौके पर एक इबादत

इक ही अल्लाह, एक ही रब है,
एको खुदाया, उसी में सब है !

अंत नहीं उसकी रहमत का
करें शुक्रिया हर बरकत का,
जो भी करता अर्चन उसकी
क्या कहना उसकी किस्मत का !

जग का रोग लगा बंदे को
‘नाम’ दवा, कुछ और नहीं है,
मंजिल वही, वही है रस्ता
उसके सिवाय ठौर नहीं है !

सारे जग का जो है मालिक
छोटे से दिल में आ रहता,
एक राज है यही अनोखा
जाने जो वह सुख से सोता !

तू ही अव्वल तू ही आखिर
तू अजीम है तू ही वाहिद,
दे सबूर तू नूर जहां का
तू ही वाली इस दुनिया का !

अल कादिर तू है कबीर भी
तू हमीद तू ही मजीद भी,
दाता, राम, रहीम, रहमान
अल खालिक खुदा मेहरबान !

तेरे कदमों में दम निकले
दिल में एक यही ख्वाहिश है,
तेरा नाम सदा दिल में हो
तुझसे ही यह फरमाइश है !

बुधवार, जून 6

सागर तपता है


सागर तपता है

सागर तपता है
और बनकर मेघ शीतल
डोलता है संग पवन के
बरस जाता है तप्त भूमि पर..
मन अंतर तपता है
और बनकर करुणा अनंत
डोलता हैं संग प्रेम के
बरस जाता है तप्त हृदयों पर..
विचारों को सच की आग में तपाना होगा
निखारना होगा भावनाओं को
उस भट्टी में
जहाँ सारे अशुभ जल जाते हैं  
न जाने कितने जन्मों की मैल
घुल गयी है मन के अनमोल पानी में
उसे तपाकर भाप बनकर उड़ना ही होगा ऊपर..
ऊर्जा पावन होकर ही बरसेगी
बनकर करुणा जल
मिटेगा अंधकार सदियों का
जब आत्मज्योति का पुष्प खिलेगा उस जल में
प्रीत की पवन बहेगी
उस पुष्प की महक
बिखरेगी चहुँ दिशाओं में
तपाये बिना जीवन का कोई रूप नहीं ढलता
तपाये बिना अहंकार नहीं पिघलता
सद्गुरू के चरणों में अहंकार ही चढ़ाना है
बार-बार अपने मन को यही एक अध्याय पढ़ाना है !
सुख की चाहत और दुःख के भय ने
कितना रुलाया है
स्वयं के कुछ बनने के
प्रयास ने कितना सताया है
अब बंद करना है यह खेल सदा के लिये
जीवन का आभार इस बोध उपहार के लिए !