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बुधवार, नवंबर 16

बदल रहा है देश

बदल रहा है देश

लोग निकल रहे हैं घरों से
छोटे-बड़े सब समान होकर खड़े हैं लम्बी-लम्बी कतारों में
जिन्हें एक नहीं कर पाये सद उपदेश और भगवान
उन्हें एक ही कतार में ले आया है इस देश का संविधान
आखिर प्रधानमन्त्री को चुना है जनता ने
उसका संवैधानिक हक है
जनता को जागरूक बनाना
देश से भ्रष्टाचार मिटाना
अब किसी को हिम्मत नहीं होगी
नोटों से भरे तिजोरी
या फिर बेहिसाब कमाई में से करे कर चोरी
अब इस देश का कोई माईबाप है
जिसको देना हर किसी को जवाब है
देश बदल रहा है
हमको भी बदलना है
न कि ‘सब चलता है’ का मन्त्र जपना है
अब यहाँ बेईमानी नहीं चलेगी
अभी तो गंदगी फ़ैलाने वालों की नकेल भी कसेगी
स्वच्छ भारत का सपना अब हकीकत बन रहा है
वाकई देश बदल रहा है !

रविवार, दिसंबर 11

जाग गया है हिंदुस्तान


जाग गया है हिंदुस्तान

सोये हुए जन-जन में अन्ना, फूंक चेतना की चिंगारी
आत्मशक्ति के बल पर तुमने, भारत की तस्वीर संवारी ! 

संसद में हो चर्चा अविरत, भ्रष्टाचार मिटाना होगा
भ्रमित न होगी अब जनता, लोकपाल बिठाना होगा ! 

कोई तो हो ऐसा जिसको, पीड़ित जन फरियाद कर सकें
रक्षक जो भक्षक बन बैठे, उनसे वे निजात पा सकें ! 

न्यायालय में न्याय कहाँ है, पैसे में बिकता कानून
कॉलेजों में सीट नहीं हैं, निगल गये भारी डोनेशन ! 

राशन हो या गैस कनेक्शन, सब में गोलमाल चलता है
ऊपर से नीचे तक देखें, भ्रष्टाचार यहाँ पलता है ! 

नेता भी बिकते देखे हैं, ऑफिसर बेचें ईमान
घोटाले पर घोटाला है, नई पीढ़ी होती हैरान ! 

कोई ऐसा क्षेत्र बचा न, जहां स्वच्छ काम होता है  
महँगाई तो बढती जाती, सबका बुरा हाल होता है ! 

अन्ना ने मशाल जलाई, जाग गया है हिंदुस्तान
झांक के अपने भीतर देखे, बने आदमी हर इंसान ! 

थोड़े से सुख सुविधा खातिर, गिरवी न रखेंगे आत्मा
नई पीढ़ी यह सबक ले रही, अनशन पर बैठा महात्मा ! 

अन्ना का यह तप अनुपम है, देश का होगा नव निर्माण
रोके न रुकेगा यह क्रम, करवट लेता हिंदुस्तान !

शुक्रवार, अप्रैल 22

कैसा यह गोरख धंधा है


कैसा यह गोरख धंधा है

शासन में गोरख धंधा है
हर कोई मांगे चंदा है,
"ए राजा’ को महल दिया
रोटी को तरसे बंदा है I

यहाँ पैसे वाले एक हुए
धन के बल पर नेक हुए,
मिलजुल कर सब मौज उड़ाते
शर्म बेच कर फेक हुए I

हड़प लिये करोड़ों गप से
जरा डकार नहीं लेते,  
अरबों तक जा पहुंची बोली
बस बेचे देश को देते I  

है जनता भोली विश्वासी  
थोड़े में ही संतोष करे
सौंप दी किस्मत जिन हाथों में
वे सारे अपनी जेब भरें I

सदा यही होता है आया
कुछ खट-खट कर श्रम करते
कुछ शातिर बन जाते शासक
बस पैसों में खेला करते I

जागें अब भी कुछ तो सोचें
अपनी किस्मत खुद ही बदलें
जेल ही जिनका असली घर है
ऐसे राजाओं से बच निकलें I

अनिता निहालानी
२२ अप्रैल २०११