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रविवार, अगस्त 18

प्यार का राज यही



प्यार का  राज यही


लिखना-पढ़ना, हँसना-रोना  इतना ही तो आता था 

 आँखों से बतियाना लेकिन तुम्हीं ने सिखला दिया 


ज़िंदगी का यह सफ़र धूप में जब-जब कटा 

बदलियों का एक छाता तुम्हीं ने लगा दिया


कुछ कहें दिलों की दुनिया की कुछ सुनें 

प्यार का  राज यही, तुम्हीं ने बता दिया 


दिल अगर उदास हो देख लो आईना 

प्रीत का चंद्रमा तुम्हीं ने झलका दिया


प्रेम की बयार भी जब अभी बही न थी 

ह्रदय में गुलाब इक तुम्हीं ने उगा दिया


शनिवार, अगस्त 10

बरबस प्यार जगाये कोई

बरबस प्यार जगाये कोई


जीवन बँटता ही जाता है 

पल-पल याद दिलाये कोई, 

किसकी राह खड़े ताकते 

मधुर पुकार लगाये कोई !


अपनी-अपनी क़िस्मत ले कर 

कोकिल और काग गाते हैं, 

दोनों के ही भीतर बसता 

बरबस प्यार जगाये कोई !


नदिया दौड़ी जाती देखो 

सागर से मिलने को आतुर, 

उर मतवाला मिटना चाहे 

एक पुकार लगाये कोई !



शुक्रवार, मई 3

संबंध

संबंध 


यह जगत एक आईना है ही तो है 

हर रिश्ते में ख़ुद को देखे जाते हैं  

चुकती नहीं अनंत चेतना 

हज़ार-हज़ार पहलू उभर जाते हैं 

जन्म पर जन्म लेता है मानव 

कि कभी तो जान लेगा सम्पूर्ण 

ख़ुद को 

पर ऐसा होता नहीं 

जब तक अनंत को भी 

अनंतता का दीदार नहीं हो जाता 

तब तक बनाता रहता है संबंध 

विचारों, भावों, मान्यताओं 

और व्यक्तियों से 

वस्तुओं, जगहों, मूर्त और अमूर्त से 

यदि प्यार बाँटता है निर्विरोध 

तो भीतर सुकून रहता है 

रुकावट है यदि किसी भी रिश्ते में 

तो ख़ुद का ही दम घुटता है !




सोमवार, अप्रैल 22

एकांत

एकांत  

उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक

धरा के इस छोर से उस छोर तक

कोई दस्तक सुनाई नहीं देती

जब तक सुनने की कला न आये 

वह कर्ण न मिलें  

 सुन लेते हैं जो मौन की भाषा 

 जहां छायी है 

अटूट निस्तब्धता और सन्नाटा

वहीं गूंजता है 

अम्बर के लाखों नक्षत्रों का मौन हास्य 

और चन्द्रमा का स्पंदन  

मिट जाती हैं दूरियाँ

हर अलगाव हर अकेलापन

जब मिलता है उसका संदेशा 

एक अनमोल उपहार  सा

और भरा जाता है एकांत 

मृदुल प्यार सा  !


गुरुवार, सितंबर 19

आशा फिर भी पलती भीतर



आशा फिर भी पलती भीतर


राहें कितनी भी मुश्किल हों
होता कुछ भी ना हासिल हो,
आशा फिर भी पलती भीतर
चाहे टूट गया यह दिल हो !

प्यार की लौ अकम्पित जलती
गहराई में कलिका खिलती,
नजरें जरा घुमा कर देखें
अविरल गंगा पग-पग बहती !

महादेव रक्षक हों जिसके
रोली अक्षत हों मस्तक पे,
किन विपदाओं से हारे वह
भैरव मन्त्र जपा हो मन से !

सृष्टि लख जब याद वह आये
बरबस मन अंतर मुस्काए,
अपनेपन की ढाल बना है
बाँह थाम वह पार लगाये !

सुख-दुःख में समता जो साधे
मन वह बोले राधे-राधे,
हँसते-हँसते कष्ट उठाये
सदा समर्पित जो आराधे !

शनिवार, मार्च 2

जिन्दगी का गीत मिलकर


जिन्दगी का गीत मिलकर


सादगी हो जिन्दगी में
दिलों में थोड़ी शराफत,
दिन कयामत अगर आये
खुशदिली से करें स्वागत !

नफरतों की बात ना हो
दूरियां मिट जाएंं दिल से,
प्यार के किस्से कहेंं फिर
फूल बन मुस्काएं खिल के !

'शुक्रिया' हर साँस में हो
 हर दिल से बन दरिया बहे,
इश्क की ही जीत होगी
हर शब्द अपना यह कहे !

सुख की ही चाहत जगे न 
दुःख से न नजरें चुराएँ,
जिन्दगी का गीत मिलकर
हर जुबां में गुनगुनाएं !

आज दिल में उठे ख्वाहिश
 दोस्ती हो जंग ना हो,
खूबसूरत इस जहाँ में
बेरुखी का रंग न हो !

शनिवार, अगस्त 11

अभी समर्थ हैं हाथ



अभी समर्थ हैं हाथ



अभी देख सकती हैं आँखें
चलो झाँके किन्हीं नयनों में
उड़ेल दें भीतर की शीतलता
और नेह पगी नरमाई
सहला दें कोई चुभता जख्म
कर दें आश्वस्त कुछ पलों के लिए ही सही
बहने दें किसी अदृश्य चाहत को
वरदान बनकर !

अभी सुन सकते हैं कान
चलो सुनें बारिश की धुन
और पूर दें
किसी झोंपड़ी का टूटा छप्पर
अनसुना न रह जाये रुदन
किसी बच्चे का
 न ही किसी पीड़ित की पुकार !

अभी समर्थ हैं हाथ
समेट लें सारे दुखों को झोली में
और बहा दें
तरोताजा होकर संवारें किसी के उलझे बाल
उदास मुखड़े और उड़े चेहरे से पूछें दिल का हाल !

अभी श्वासें बची हैं
जिसने दी हैं उसका कुछ कर्ज उतार दें
थोड़ा सा ही सही
उसकी दुनिया को प्यार दें !

बुधवार, अगस्त 16

फूल ढूँढने निकला खुशबू

फूल ढूँढने निकला खुशबू

पानी मथे जाता संसार
बाहर ढूँढ रहा है प्यार,
फूल ढूँढने निकला खुशबू
मानव ढूँढे जग में सार !

लगे यहाँ  राजा भी भिक्षुक
नेता मत के पीछे चलता,
सबने गाड़े अपने खेमे
बंदर बाँट खेल है चलता !

सही गलत का भेद खो रहा
लक्ष्मण रेखा मिटी कभी की.
मूल्यों की फ़िक्र भी छूटी
गहरी नींद न टूटी जग की !

जरा जाग कर देखे कोई
कंकर जोड़े, हीरे त्यागे,
व्यर्थ दौड़ में बही ऊर्जा
पहुँचे कहीं न वर्षों भागे !

 चहुँ ओर बिखरा है सुदर्शन
आँखें मूँदे उससे रहता,
तृप्त न होता भिक्षु मन कभी
अहंकार किस बूते करता !

हर क्षण लेकिन भीतर कोई
बैठा ही है पलक बिछाये,
कब आँखें उस ओर मुड़ेगीं
जाने कब वह शुभ दिन आये !

रविवार, जुलाई 2

पा परस उसका सुकोमल



पा परस उसका सुकोमल

बह रहा है अनवरत जो
एक निर्झर गुनगुनाता,
क्यों नहीं उसके निकट जा
दिल हमारा चैन पाता !

झूमती सी गा रही जो
हर कहीं सोंधी बयार,
पा परस उसका सुकोमल
क्यों न समझे झरता प्यार !

निकट ही जो शून्य बनकर
बन अगोचर थाम रखता,
भूल जाता बेखुदी में
क्यों न उसका मान रखता !

जो बरसता प्रीत बनकर
संग है आशीष बनकर,
क्यों नहीं नजरें हमारी
चातकी सी टिकी उसपर ! 

शुक्रवार, दिसंबर 16

दृष्टि धूमिल मोहित है मन

दृष्टि धूमिल मोहित है मन 

 किसी-किसी दिन झूठ बोलता लगता दर्पण
नयन दिखाते वही देखना चाहे जो भी मन !

दृष्टि धूमिल मोहित है मन 
धुंधला-धुंधला सा संसार,
प्रिय को महिमामंडित करता 
छलक रहा जब अंतर प्यार !

सत्य छिपा ही रहता इक तरफ़ा जब अर्पण 
श्रवण सुनाते वही सुनना चाहे जो भी मन !

पक्षविहीन खड़ा  हो जग में 
शक्तिहीन के लिए असम्भव,
झुक जाता है निज पक्ष में 
झेल आत्मा का पराभव !

थोड़े में सन्तुष्ट हुआ जो काट सके न बंधन 
बुद्धि सुझाती वही जानना चाहे जो भी मन !


गुरुवार, जुलाई 28

नाम प्रेम का लेकर

नाम प्रेम का लेकर


उससे मिलकर जाना हमने
प्यार किसे कहते हैं,
नाम प्रेम का लेकर कितने,
 खेल चला करते हैं !

चले हुकूमत निशदिन उस पर,
 जिसको अपना माना,
मैं ही उसका रब हो जाऊं
और न कोई ठिकाना !

नहीं प्रेम में कोई बंधन
मुक्त गगन के जैसा,
सब पर सहज मेह सा बरसे
मुक्त पवन के जैसा !  

गुरुवार, अक्टूबर 1

बापू की पुण्य स्मृति में

बापू की पुण्य स्मृति में


रामनाम में श्रद्धा अटूट, सबका ध्यान सदा रखते थे
माँ की तरह पालना करते, बापू सबके साथ जुड़े थे !

सारा जग उनका परिवार, हँसमुख थे वे सदा हँसाते
योग साधना भी करते थे, यम, नियम दिल से अपनाते !

बच्चों के आदर्श थे बापू, एक खिलाड़ी जैसा भाव
हर भूल से शिक्षा लेते, सूक्ष्म निरीक्षण का स्वभाव !

निर्धन के हर हाल में साथी, हानि में भी लाभ देख लें
सोना, जगना एक कला थी, भोजन नाप-तोल कर खाते !

छोटी बातों से भी सीखें, हर वस्तु को देते मान
प्यार का जादू सिर चढ़ बोला, इस की शक्ति ली पहचान !

समय की कीमत को पहचानें, स्वच्छता से प्रेम बहुत था
मेजबानी में थे पारंगत, अनुशासन जीवन में था !

पशुओं से भी प्रेम अति था, कथा-कहानी कहते सुनते
मितव्ययता हर क्षेत्र में, उत्तरदायित्व सदा निभाते !

मैत्री भाव बड़ा गहरा था, पक्के वैरागी भी बापू
थी आस्था एक अडिग भी, बा को बहुत मानते बापू !

विश्राम की कला भी सीखी, अंतर वीक्षण करते स्वयं का
एक महान राजनेता थे, केवल एक भरोसा रब का !

अनासक्ति योग के पालक, परहित चिन्तन सदा ही करते
झुकने में भी देर न लगती, अड़े नहीं व्यर्थ ही रहते !

करुणा अंतर में गहरी थी, नव चेतना भरते सबमें
प्रेम करे दुश्मन भी जिससे, ऐसे प्यारे राष्ट्रपिता थे !


शनिवार, सितंबर 14

लड़कियाँ

लड़कियाँ



बड़ी समझदार, थोड़ी नादान
खुद से अनजान, करतीं पहचान
वर्तमान और भविष्य की
कड़ी लड़कियाँ !

हवा सी तेज, पानी सा बहाव
 हिरनी सी चाल, डाली सा झुकाव
चुनौती दें आँखों से हर  
घड़ी लड़कियाँ !

चेहरों पे ओज, कांधे पे बोझ
ऊँची चढाइयाँ तय करें रोज
हंसती खिलखिलाती सी
 लड़ी लड़कियाँ !

अंतर में प्यार, हिम्मत अपार
 बिखरे जहाँ को, दे पल में संवार
 धरती की अंगूठी में
 जड़ी लड़कियाँ !