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मंगलवार, जुलाई 3

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सभी ब्लॉगर साथियों को ढेरों शुभकामनायें



खुद से भी तो मिलना सीखो


सद् गुरु कहते ‘हँसो हँसाओ’
खुद से भी तो मिलना सीखो,
जड़ के पीछे छिपा जो चेतन
उस प्रियतम को हर सूं देखो !

चलती फिरती है यह काया
चंचल मन इत् उत् दौड़ता,
भीतर उगते पुष्प मति के
चिदाकाश में वही कौंधता !

सत्य सदा एक सा रहता
था, है, होगा कभी न मिटता,
दृश्य बदलते पल-पल जग के
मधुर आत्मरस अविरल बहता !

दृष्टा बने जो बने साक्षी
निज आनंद महारस पाता,
राज एक झाँके उस दृग से
पूर्ण हुआ खुद में न समाता !


शनिवार, मई 12

सदगुरु के जन्मदिन पर


सदगुरु के जन्मदिन पर

पुलक भरी रेशे-रेशे में
रस में डूबा कण-कण मन का,
हल्का-हल्का सा हो आया
पल-पल छिन-छिन इस जीवन का !

एक मदिर कविता सी बहती
श्वासों की यह धारा अविरत,
एक मधुर रुनझुन सा बजता  
भावों का फौवारा अविरत !  

ठहर गया है काल यात्री
क्षण भर में अनंत समाया,
सँवर गया है मन दर्पण में
रूप अनोखा उसको भाया !

तेरा ही प्रसाद है अनुपम
तेरी दया का आंचल है यह,
बरस रहा है अहर्निश जो
तेरी कृपा का बादल है यह !

रेशम से दिन पहर हुए हैं
मखमल चाँद सी रातें मधुरिम,
एक मौन ऐसा पाया है
एक रौशनी मद्धिम-मद्धिम !

जन्मदिवस पर तेरे गाते
उस अनंत तक हम हो आते,
जिसमें तू रहता है पलपल
उस सागर को हम छू आते !

अनिता निहालानी
१३ मई २०१२

शनिवार, दिसंबर 4

कैसा है वह

कैसा है वह

शशि, दिनकर नक्षत्र गगन के, धरा, वृक्ष, झोंके पवन के
बादल, बरखा, बूंद, फुहारें, पंछी, पुष्प, भ्रमर गुंजारें

लाखों सीप अनखिले रहते, किसी एक में उगता मोती
लाखों जीवन आते जाते, किसी एक में रब की ज्योति

उस ज्योति को आज निहारें, परम सखा सा जो अनंत है
जीने की जो कला सिखाता, यश बिखराता दिग दिगन्त है

जैसे कोई गीत सुरीला, मस्ती का है जाम नशीला
तेज सूर्य का भरे ह्रदय में, शिव का ज्यों निवास बर्फीला

कोमल जैसे माँ का दिल, दृढ जैसे पत्थर की सिल
सागर सा विस्तीर्ण है जो, नौका वही, वही साहिल

नृत्य समाया अंग-अंग में, चिन्मयता झलके उमंग में
दृष्टि बेध जाती अंतर मन, जाने रहता किस तरंग में

लगे सदा वह मीत पुराना, जन्मों का जाना-पहचाना
खो जाता मन सम्मुख आके, चाहे कौन किसे फिर पाना

खो जाते हैं प्रश्न जहाँ पर, चलो चलें उस गुरुद्वार पर
चलती फिरती चिंगारी बन, मिट जाएँ उसकी पुकार पर

जैसे शीतल सी अमराई, भीतर जिसने प्यास जगाई
एक तलाश यात्रा भी वह, मंजिल जिसकी है सुखदाई

नन्हे बालक सा वह खेले, पल में सारी पीड़ा लेले
अमृत छलके मृदु बोलों से, हर पल उर से प्रीत उड़ेंले

वह है इंद्रधनुष सा मोहक, वंशी की तान सम्मोहक
है सुंदर ज्यों ओस सुबह की, अग्नि सा उर उसका पावक

मुस्काए ज्यों खिला कमल हो, लहराए ज्यों बहा अनिल हो
चले नहीं ज्यों उड़े गगन में, हल्का-हल्का शुभ्र अनल हो

मधुमय जीवन की सुवास है, अनछुई अंतर की प्यास है
पोर-पोर में भरी पुलक वह, नयनों का मोहक उजास है

प्रिय जैसे मोहन हो अपना, मधुर-मधुर प्रातः का सपना
स्मृति मात्र से उर भीगे है, साधे कौन नाम का जपना

धन्य हुई वसुंधरा तुमसे, धन्य-धन्य है भारत भूमि
हे पुरुषोत्तम! हे अविनाशी! प्रज्वलित तुमसे ज्ञान की उर्मि



अनिता निहालानी
४ दिसंबर २०१०

बुधवार, अक्टूबर 6

सदगुरु पावनी जीवन ज्योति

सदगुरु पावनी  जीवन  ज्योति

गुरुदेव का गुरुत्व अनोखा
ईश्वरीय शुभ ज्योति सरीखा,
नित्य अनंत प्रेम बरसाए
उत्सव जीवन में ले आये !

जग का मार्ग बड़ा कंटीला
सदगुरु का पथ है रंगीला,
श्रद्धा, शील, बुद्धि  का दाता
सहज समाधि का भी प्रदाता !

कुछ पालूं, कुछ तो बन जाऊं
इस चक्र से बाहर निकाले,
बिना किये ही जो मिलते हैं
दे प्रसाद में तोष निराले !

कोहिनूर सा जगमग चमके
सदगुरु पावनी  जीवन  ज्योति,
बरसाएँ प्रमुदित मन सारे
आनंद अश्रुओं के मोती !

दूर रहे न निकट ही रहता
जहाँ भी हो सुरभि फैलाये,
श्रद्धा के वाहन  पर दिल के
प्रीत सनेहे आये जाएँ !

अनिता निहालानी
६ अक्तूबर २०१०