प्रिय ब्लोगर मित्रों, मृणाल ज्योति से आप परिचित हैं, यह दुलियाजान, जिला डिब्रूगढ़, असम राज्य में स्थित एक स्वयंसेवी संस्था है जो शारीरिक व मानसिक रूप से बाधित बच्चों को समाज में पुनर्स्थापित करने का कार्य कर रही है. आज इसकी वार्षिक आम सभा थी जिसमें यह कविता मैंने पढ़ी, मैं आप सभी के साथ इसे बांटना चाहती हूँ. जैसा कि आमतौर से इस तरह की संस्थाओं में होता है फंड की जरूरत बढती जाती है, जैसे-जैसे संस्था आगे बढती जाती है. यदि इस तरह की हर संस्था धीरे-धीरे आत्मनिर्भर हो जाये तो इसे दान पर निर्भर नहीं रहना पडेगा. लेकिन इसके लिए भी आरम्भ में समाज की सहायता तो चाहिए ही.
मृणाल ज्योति
आत्मनिर्भर यह बनेगा, आगे बस आगे बढ़ेगा
मृणाल ज्योति दीप बन कर, हर अँधेरे से लड़ेगा
तन-मन से जो प्रतिबंधित हैं, नव जोश उनमें भरेगा
सृजन करके कुछ नया अब, निज पांव पर खड़ा होगा
अभी कार्य बहुत शेष है, उत्साह लेकिन न घटेगा
स्वच्छता का ध्यान रखके, नए कुछ मानक गढ़ेगा
भवन नूतन इक बना है, थेरेपी का सेंटर बनेगा
सहयोग पा समाज का, नित नए सोपान चढ़ेगा
शिक्षकों की अथक सेवा, कर्मचारी गण समर्पित
दिल में सबके एक लक्ष्य, कार्य करते रात-दिन
राखियां रंगीन सुंदर, प्रेम का संदेश देतीं
दीपकों के रंग मनहर, जगत में भरते हैं ज्योति
स्वप्न देखे है सदा यह, समतल पूरा मैदान बनेगा
बरस के थक जाएँ बादल, नहीं इसमें जल भरेगा
नर्सरी भी एक सुंदर, बाग फूलों का खिलेगा
निज नए उद्योग पनपें, कोष इससे भी बढ़ेगा
शिक्षा के साधन नवीन पा, नई विधियों पर चलेगा
हस्त कौशल भी सिखाकर, सक्षम छात्रों को करेगा
व्यवसाय नये खोल, रोजगार औरों को देगा
मृणाल ज्योति अगले बरस में, नए कीर्तिमान रचेगा
आपका सहयोग चाहे, आपसे ही यह कहेगा
आप मित्रों पर है श्रद्धा, आप से ही स्नेह मिलेगा