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सोमवार, अप्रैल 13

आशा ज्योति जलानी है

आशा ज्योति जलानी है


खेतों में झूम रही फसलें 
कोई भंगड़ा, गिद्दा, न डाले,  
चुप बैठे ढोल, मंजीरे भी
इस बरस बैसाखी सूनी है !

यह किसकी नजर लगी जग को 
नदियों, सरवर के तट तकते, 
नहीं आचमन न कोई डुबकी 
यह कैसी छायी उदासी है !

बीहू का उत्सव भी फीका 
कदमों को किस ने रोका है,
आया 'पहला बैसाख'  लेकिन  
कोई जुलूस ना मेला है !

केरल में विशु गुमसुम मनता
यह कैसा सन्नाटा छाया, 
संशय के बादल हों कितने  
पर आशा ज्योति जलानी है !


सोमवार, अप्रैल 18

मृणाल ज्योति संस्था द्वारा बीहू नृत्य

प्रिय ब्लॅागर साथियों,  मृणाल ज्योति से मैंने  आपका परिचय विश्व विकलांग दिवस ,३ दिसम्बर की पोस्ट में कराया था , बीहू के अवसर पर ये बच्चे भला कैसे पीछे रहते , अपनी संस्था के लिये धन एकत्र करने  हेतु निकल पड़े अपनी टोली लेकर मनोहारी नृत्य दिखाने,प्रस्तुत हैं कुछ तस्वीरें !   
बीहू की मस्ती छाई , मन भावन ऋतु है आई


ढोल बजे मृदंग बजे, तुरही और खरताल बजे
बंसी की धुन मोहक है
गीत सुरीले गूंज रहे  

कदम सभी के थिरक रहे नैनों से भी पुलक बहे