सोमवार, जुलाई 30

शब्दों से ले चले मौन में


शब्दों से ले चले मौन में


माटी का तन ज्योति परम है
सद्गुरु रब की याद दिलाता,
है अखंड वह परम निरंजन
तोषण का बादल बरसाता !

खुद को जिसने जान लिया है
गीत एक ही जो गाता है,
एक तत्व में स्थिति हर क्षण 
अंतर प्रेम जहाँ झरता है !

शब्दों से ले चले मौन में
परिधि से सदा केंद्र की ओर,
गति से निर्गति में ले जाए
मिले नहीं कभी जिसका छोर !

परम आत्म का स्मरण दिलाता
सहज मूल की ओर ले चले,
सच से जो पहचान कराए
भेंट करा दे उस प्रियतम से !

इक से जिसने नाता जोड़ा
एक हुआ उसका अंतर मन,
अपने लिए नहीं जीता वह
जग हित उसका पावन जीवन !

मिटे सभी भय मीत बना जग
खाली हुआ हृदय घट उसका,
बांट रहा दोनों हाथों से
घटता नहीं रंच भर जिसका !

सोमवार, जुलाई 23

पावन प्रीत पुलक सावन की



पावन प्रीत पुलक सावन की

कितने ही अहसास अनोखे
कितने बिसरे ख्वाब छिपे हैं,
खोल दराजें मन की देखें
अनगिन जहाँ सबाब छिपे हैं !

ऊपर-ऊपर उथला है जल
कदम-कदम पर फिसलन भी है,
नहीं मिला करते हैं मोती
इन परतों में दलदल भी है !

थोड़ा सा खंगालें उर को
जाल बिछाएं भीतर जाकर,
चलें खोजने सीप सुनहरे
नाव उतारें बचपन पाकर !

पावन प्रीत पुलक सावन की
या फिर कोई दीप जला हो,
गहराई में उगता जीवन
नीरव वन में पुहुप खिला हो !

अम्बर से जो नीर बरसता
गहरे जाकर ही उठता है,
कल का सूरज जो लायेगा
वही उजास आज झरता है !  




सोमवार, जुलाई 16

अस्तित्त्व और हम



अस्तित्त्व और हम

अस्तित्त्व खड़े करता है प्रश्न
खोजने होते हैं जिनके उत्तर हमें
आगे बढ़ने के लिए..
जरूरी है परीक्षाओं से गुजरना
अनसीखा मन लौटा दिया जाता है बार-बार
कच्चे घड़े की तरह अग्नि में !
जीवन कदम-कदम एक मौका है
खड़े रहें इस पार.. डूब जाएँ मंझधार में..
या उतर जाएँ उस पार !
हर दिन एक नई चुनौती लेकर आए
इसका भी प्रबंध हमें ही करना होगा...
अथवा
छोड़ ही दें सब कुछ अस्तित्त्व पर..
जब तक टूट नहीं जाता हर रक्षा कवच
परम रक्षक छिपा ही रहता है
जब तक बना रहता है ‘मैं’
सत्य ढका ही रहता है !

गुरुवार, जुलाई 12

नदिया सा हर क्षण बहना है



नदिया सा हर क्षण बहना है



ख्वाब देखकर सच करना है 
ऊपर ही ऊपर चढ़ना है,  
जीवन वृहत्त कैनवास है 
सुंदर सहज रंग भरना है !

साथ चल रहा कोई निशदिन 
हो अर्पित उसको कहना है,
इक विराट कुटुंब है दुनिया 
सबसे मिलजुल कर रहना है !

ताजी-खिली रहे मन कलिका
नदिया सा हर क्षण बहना है,
घाटी, पर्वत, घर या बीहड़ 
भीतर शिखरों पर रहना है !

वर्तुल में ही बहते-बहते 
मुक्ति का सम्मन पढ़ना है,
फेंक भूत का गठ्ठर सिर से 
हर पल का स्वागत करना है !

जुड़े ऊर्जा से नित रहकर 
अंतर घट में सुख भरना है,  
छलक-छलक जाएगा जब वह 
निर्मल निर्झर सा झरना है !

सोमवार, जुलाई 9

पुत्र के जन्मदिन पर




 माँ का उपहार 
पिता ने कहा कुछ दिन पहले
जन्मदिन आ रहा है तुम्हारा, क्या भेजें !
परमात्मा ने दिया है सब कुछ तुम्हें
सोचा, भेजते हैं थोड़ी सी दुआएं
दुआएं.. जो दूर तक साथ जाती हैं
जब घना हो अँधेरा तब उम्मीद का दीप जलाती हैं
इसी तरह खिला रहे मृदु मुस्कान से चेहरा तुम्हारा
हर कदम पर बनो एक-दूजे का सहारा
मित्रों संग खेलो-खिलखिलाओ
गमलों में कुछ और गुलाब उगाओ
इस शुभ दिन पर थोड़ा ध्यान भी करो
किसी जरूरत मंद को जाकर कुछ दान भी करो
सुबह उठकर शुक्रिया करना हर उस शख्स का
जिसकी वजह से आज तुम्हें यह मुकाम है मिला
पूर्वजों को याद करना, अपनों से आशीष लेना
मित्रों संग भोज कर, नव सृजन का स्वप्न देखना


शनिवार, जुलाई 7

चाह जो उस की जगी तो



चाह जो उस की जगी तो



राह कितनी भी कठिन हो
दूब सी श्यामल बनेगी,
चाह जो उस की जगी तो
उर कली इक दिन खिलेगी !

जल रहा हर कण धरा का
अनुतप्त हैं रवि रश्मियाँ,
एक शीतल परस कोमल
ताप हरता हर पुहुप का  !

लख नहीं पाते नयन जो
किन्तु जो सब देखता है,
जगी बिसरी याद जिसमें
मन वही बस चेतता है !

व्यर्थ न कण भर भी जग में
अर्थ उसमें कौन भरता,
नयन रोते, अधर हँसते
राज जब खुल रहा लगता !

एक कोमल छांव पल-पल
श्वास में आलोक भरती,
बांह थामे आस्था इक
हर कदम पर साथ देती !

बुधवार, जुलाई 4

राज खुलता जिंदगी का




राज खुलता जिंदगी का


एक उत्सव जिन्दगी का
चल रहा है युग-युगों से,
एक सपना बन्दगी का
पल रहा है युग युगों से !

घट रहा हर पल नया कुछ
किंतु कण भर भी न बदला,
खोजता मन जिस हँसी को
उसने न घर द्वार बदला !

झाँक लेते उर गुहा में
सौंप कर हर इक तमन्ना,
झलक मिलती एक बिसरी
राज खुलता जिंदगी का !

मिट गये वल्लि के पुतले
चंद श्वासों की कहानी,
किंतु जग अब भी वही है
है अमिट यह जिंदगानी !