दिल को अपने क्यों नहीं राधा करें
जिंदगी ने नेमतें दी हैं हजारों
आज उसका शुक्रिया दिल से करें,
चंद लम्हे ही सदा हैं पास अपने
क्यों न इनसे गीत खुशियों के झरें !
दिल खुदा का आशियाना है सदा से
ठहर उसमें दर्द हर रुखसत करें,
आसमां हो छत धरा आंगन बने
इस तरह जीने का भी जज्बा भरें !
वह बरसता हर घड़ी जब प्रीत बन
मन को अपने क्यों नहीं राधा करें,
दूर जाना भी, बुलाना भी नहीं
दिल के भीतर साँवरे नर्तन करें !
झुक गया यह सिर जहाँ भी सजदे में
वह वही है, क्यों उसे ढूंढा करें,
मांगना है जो भी उससे माँग लें
मांगने में भी भला क्यों दिल डरें !
उर खिलेगा जब उठेगी चाह उसकी
फूल बगिया में अनेकों नित खिलें,
शब्द का क्या काम जब दिल हो खुला
भाव उड़के सुरभि सम महका करें !