बिखरा दें, फिर मुस्का लें 
खाली कर दें अपना दामन 
जग को सब कुछ दे डालें,  
प्रीत ह्रदय की, गीत प्रणय के 
बिखरा दें, फिर मुस्का लें !
तन की दीवारों के पीछे 
मन मंदिर की गहन गुफा से, 
जगमग दीप उजाला जग में 
फैला दें, फिर मुस्का लें ! 
अंतर्मन की गहराई में 
अनुपम नाद सदा गूंजता, 
चुन चुन कर मधु गुंजन जग में 
गुंजा दें, फिर मुस्का लें !
भीतर बहते अमृत घट जो  
प्याले भर भर उर पाता, 
अमिसरिस रस धार जगत में 
लहरा दें, फिर मुस्का लें !
हुआ सुवासित तन-मन जिससे 
भीतर जिसके भरे खजाने,
सुरभि सुगन्धित पावन सुखमय 
छितरा दें, फिर मुस्का लें !
अनिता निहालानी 
२१ जनवरी २०११  
 
हुआ सुवासित तन-मन जिससे
जवाब देंहटाएंभीतर जिसके भरे खजाने,
सुरभि सुगन्धित पावन सुखमय
छितरा दें, फिर मुस्का लें !
गहन जीवन दर्शन से परिपूर्ण प्रेरक रचना. बहुत भावपूर्ण
बहुत सुन्दर रचना......ये पंक्ति सबसे अच्छी लगी -
जवाब देंहटाएंखाली कर दें अपना दामन
जग को सब कुछ दे डालें,
प्रीत ह्रदय की, गीत प्रणय के
बिखरा दें, फिर मुस्का लें !
खाली कर दें अपना दामन जग को सब कुछ दे डालें, प्रीत ह्रदय की, गीत प्रणय के बिखरा दें, , फिर मुस्का लें !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सकारात्मक भाव लिए हुए -
बहुत सुंदर कोमल भावमयी रचना -
बधाई एवं शुभकामनायें
प्रेरणा देती पोस्ट.
जवाब देंहटाएंखाली कर दें अपना दामन जग को सब कुछ दे डालें,
प्रीत ह्रदय की, गीत प्रणय के बिखरा दें, फिर मुस्का लें !
मुस्करा ही दें तो कुछ समस्याएँ ऐसे ही हल हो जाती हैं