शुक्रवार, जनवरी 31

पुस्तक विमोचन समारोह में आमंत्रण



पुस्तक विमोचन समारोह में आमंत्रण



प्रिय ब्लॉगर मित्रों,  


आप सभी को यह सूचना देते हुए मुझे अति प्रसन्नता हो रही है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थित भारत मंडपम, प्रगति मैदान में पहली फ़रवरी से लगने वाले आगामी विश्व पुस्तक मेले में मेरी नयी पुस्तक ‘यायावर - यात्रा संस्मरण’ का विमोचन होने जा रहा है। यदि आप दिल्ली  में रहते हैं, अथवा आये हुए हैं, तो चार फ़रवरी की सुबह ग्यारह बजे से एक बजे के मध्य पुस्तक मेले के Hall 4,  Stall Number H-07 में पधारने के लिए सादर आमंत्रित हैं।  


बुधवार, जनवरी 29

श्रम


श्रम 

लगभग पचास मीटर लंबी 

मोटी हौज़ पाइप लिए 

डालता जाता है 

हर विला के बगीचे में जल 

कहीं कहीं गमलों की क़तारें हैं 

कहीं घास के लॉन और छोटे-बड़े पेड़ 

देता है सहयोग 

घर-घर जा हरियाली जीवित रखने में 

ग्रीष्म और सर्दियों के मौसम में 

बरसात में ज़रूरत नहीं होती अक्सर 

वह सोचती है 

जब भी उसे देखती है 

झुक गये कंधे पर 

लिपटी हुई भारी सी पाइप

 रखे आते 

सुकून से भरा है उसका वृद्ध चेहरा 

सुबह से शाम हो जाती है 

हर लेन में हर घर में 

जाते-जाते उसे 

कभी वह उसे कुछ देती है तो 

मुस्कुरा कर स्वीकारता है और 

हरे कोट की जेब में रख लेता है 

जीवन कितने लोगों के 

श्रम से चलता है ! 


सोमवार, जनवरी 27

अयोध्या का राम मंदिर

अयोध्या का राम मंदिर 


नगरी अति प्राचीन अयोध्या 

युग बीते जब राम हुए थे, 

स्मृतियाँ संजो रखी देश ने 

कैसे अनुपम कर्म किए थे !


कोमल ह्रदय भुजाओं में बल 

अद्भुत संगम  प्रेम-शक्ति का, 

करुणा ने कपीश के दिल में 

 बोया बीज पावन  भक्ति का !


अवसर शतकों बाद मिला है 

नव युग ज्यों  देता है दस्तक,

आज बना विशाल इक मंदिर 

भारत हुआ जहाँ नत मस्तक !


शनिवार, जनवरी 25

मज़दूर

मज़दूर 


घास काटने की मशीन का शोर 

आ रहा है अनवरत 

साथ में उस तेल की गंध 

जो मज़दूर ने मशीन में डाला होगा 

जनवरी की एक सुबह 

पर धूप इतनी तेज है 

मानो दोपहर का समय हो 

मुँह को कपड़े से ढाँपे वह दत्तचित्त होकर 

काटता जा रहा है 

घरों के आगे बने बगीचों की घास 

शायद सारा दिन उसे यही करना है आज 

घास के छोटे-छोटे तिनके 

चिपक जाते हैं उसके कपड़ों पर 

शायद अभ्यस्त हो चला होगा 

उन लाखों मज़दूरों की तरह 

जो बंद फ़ैक्टरियों में काम करते हैं 

शोर और अजीब-अजीब गंधों के बीच 

या उन खदान मज़दूरों की तरह 

जो धरती से नीचे कितनी गहराई में 

ख़तरों का सामना करते हैं 

मालिकों के लिए 

सोना, चाँदी और कोयला लाकर 

उनके ख़ज़ाने भरते हैं !


गुरुवार, जनवरी 23

साधना

साधना 


वह, जो है 

वह, जो अनाम है 


पाया जा सकता है 

उसका पता, उससे

 वह, जो नहीं है 


जो नहीं है 

पर होने का भ्रम जगाता है 


स्वीकार कर लेता है जब 

न होने को अपने 

तब झलक जाता है वह, जो है 


और तब जो नहीं है 

बन जाता है वह जो है 


कुछ नहीं से 

सब कुछ बन जाना ही 

साधना है  


देह व मन को भी 

यही भेद जानना है 


कि वे नहीं हैं अपने आप में कुछ 

और तब वे जुड़ जाते हैं विराट से 


एक विशाल मन ही 

चलाता है सारे मनों को 


पंचभूत चलाते हैं 

सारी देहों को ! 


मंगलवार, जनवरी 21

सारे माला के मनके हैं

सारे माला के मनके हैं


सच के सपने देखा करता 

माया में रमता निशदिन मन, 

जाने किसने बंधन डाले 

मुक्त सदा ही मुरली की धुन ! 


अग्निशिखा सा दिप-दिप करता 

भीतर कोई यज्ञ चल रहा,

दैव एक लिखता जाता है 

लेख कर्म के कौन पढ़ रहा !


शून्य वही जो ब्रह्म कहाये 

एक अनूप  लोक गढ़ता है, 

ख़ुद ही ख़ुद को रहे जानता 

चकित हुआ मन जब तकता है !


है अनंत, अनंत का सब कुछ 

जड़-चेतन दोनों उसके हैं, 

वही बनाये वही चलाये 

सारे माला के मनके हैं !


रविवार, जनवरी 19

नये साल की एक भोर

नये साल की एक भोर 


वादा किया था उस दिन

एक नयी भोर का  

लो !  आज ही वह भोर 

मुस्कुराती हुई आ गई है 

गगन लाल है पावन बेला 

सितारों ने ले ली है विदा 

दूर तक फैला है उजियाला 

नयी राहों पर कदम बढ़ाओ 

आँख खोली है पंछियों और कलियों ने 

संग हवाओं के तुम भी तो कुछ गुनगुनाओ 

पोंछ डालो हर कालिमा बीती रात की 

नये जोश से नये साल में कदम रखो 

ख़ुद के होने पर गर्व करो 

अपनी हस्ती को जरा और फैलाओ !


गुरुवार, जनवरी 16

भव सागर में डोले नैया

भव सागर में डोले नैया 


मन ही तो वह सागर है 

जिसमें उठती हैं निरंतर लहरें 

मन ही तो वह पानी है 

जो तन नौका के छिद्रों से 

भीतर चला आया है 

तभी तन की यह नाव 

जर्जर होती जाती है 

नाविक ने कहा भी था 

छिद्रों को बंद करो 

पानी को उलीचो बाहर 

नाव हल्की हुई तो तिर जाएगी 

ज्यों की त्यों उस पार उतर जाएगी 

अथवा तो आने दो 

परम सूर्य की

किरणों को 

मन को सुखाने दो  

मन वाष्प होकर उड़ जाएगा 

देह ख़ाली होगी 

पानी भर जाये तो डुबाता है 

बाहर रहे तो पार ले जाता है 

मन जितना अ-मन हो 

उतना ही भला है 

उसकी तर्क पूर्ण बातें 

केवल मदारी की कला है ! 


बुधवार, जनवरी 15

राम में विश्राम या विश्राम में राम

राम में विश्राम या विश्राम में राम


भीग जाता है अंतर 

जब उस एक के साथ एक हो जाता है 

समाप्त हो जाती है 

कुछ होने, पाने, बनने की दौड़ 

जब हर साध उठने से पहले ही 

हो जाती है पूर्ण 

कुछ होने में अहंकार है 

कुछ न होने में आत्मा 

कुछ पाने में भय है खो जाने का 

छोड़ने में आनंद 

कुछ बनने में श्रम है 

 जो हैं उसमें विश्राम 

और विश्राम में है राम 

तब राम ही मार्ग दिखाते हैं 

पथ जीवन का सुझाते हैं 

ध्यान में मिलते 

जीवन में संग उन्हें पाते हैं 

संत जन इसी लिए एक-दूजे को 

‘राम राम जी’ कहकर बुलाते हैं ! 


सोमवार, जनवरी 13

पीली आग भली लगती है लोहड़ी की

लोहड़ी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ 


पीली आग भली लगती है लोहड़ी की 

दिल में कैसी धुन बजती है लोहड़ी की !


मकई के फुल्ले मूँगफली  

 गज्जक-रेवड़ियाँ तिल-गुड़ की,

अग्निदेव को करें समर्पित 

वैश्वानर भीतर आदीपित !


खेतों में जब झूमती फसलें सरसों की 

पीली आग भली लगती है लोहड़ी की !


गिद्धे और भांगड़े सजते 

तन पर सुंदर वस्त्र शोभते, 

पहली लोहड़ी नववधू की 

या घर आये कोमल शिशु की !


दिल में कितना रंग जगाती उमंग भरी 

पीली आग भली लगती है लोहड़ी की !


रविवार, जनवरी 12

हादसा

हादसा 


बढ़ती जाती है भीड़ मंदिरों में 

सैकड़ों, हज़ारों अब लाखों की 

दिलों में आस और विश्वास लिए 

कि जो गुहार लगायी 

वह सुनी जाएगी 

पर अचानक हो जाने वाले हादसों में 

गुहार लगाने वाला ही नहीं बचता 

भगदड़ में सदा के लिए गुम हो जाता  

 कुछ हो जाते हैं घायल 

देवता भी सिहर जाते होंगे 

शायद राह दिखाते हों 

मृतात्माओं को 

कहते होंगे 

जब अनेक बार आ चुके, 

अनेक बार फिर आना है 

क्या जल्दी है आगे जाने की 

परमात्मा तो हर जगह है 

कुछ न कुछ पाने की 

कुछ न कुछ बनने की 

होड़ में लगा मानव 

ख़ुद को गँवा देता है 

भीड़ में दबकर विदा लेने से 

बुरा, भला और क्या हो सकता है !