शनिवार, जुलाई 27

कारगिल



वर्षों पूर्व लिखी यह कविता आज स्मरण हो रही है. विजय दिवस पर सभी को  शुभकामनायें !

कारगिल


कारगिल
बन गया भारत का दिल !

हैं रक्तरंजित घाटियाँ
गोलियों की गूँज बन हुँकारता
आज घायल शेर सा दहाड़ता
पर्वतों की चोटियाँ ज्वलित हुईं
हिमशिलायें बनी शिखा जल उठीं !

कारगिल
बन गया जन-जन का दिल !

आज डेरा वीर जन का
यज्ञ स्थल अपने वतन का
रात-दिन इसको समर्पण
अदम्य शक्ति का प्रदर्शन
शत्रु हन्ता !  शत्रु बेधक !

कारगिल
बना हुआ वीर मंजिल !

कोटि-कोटि प्राण इसमें
पर्वतों के संग हँसते
निर्झरों के साथ बहते
स्वर्ग भूमि पर यह कहते
शत्रु माने और जाने
कारगिल, न होगा हासिल !


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