गुरुवार, अक्तूबर 20

अनचाही कन्या


अभी-अभी दैनिक जागरण में यह खबर पढ़ी, ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ पर आज दिल में एक तीखा दर्द उठा उस अनजान शिशु कन्या के लिये, जिसे अब उचित देख-रेख मिल रही है और भविष्य में एक घर भी मिल जायेगा. कुछ पंक्तियां खुदबखुद उतर आयीं.

अनचाही कन्या

उसकी माँ बनना जिसका सौभाग्य नहीं था
ऐसी एक निर्मोही औरत
नवजात कन्या शिशु को रख आयी झाडियों में
नौ महीने कोख में रखे...
क्या वह इसी दिन की करती रही होगी प्रतीक्षा...?
कितना ही कठोर सही
पर रोया नहीं होगा उसका दिल....
शायद कहीं छिप कर देख रही हो
कोई तो ले जायेगा इस दुधमुंही को...
कितने सवाल न उठे होंगे उसके मन में
पाप और पुण्य के...
या रही होगी कोई पागल
विक्षिप्त मना...
किया अपराध किसीने
किसे मिल रही है सजा...?
बेटी-बेटे में भेद करता यह समाज
 मुँह नहीं मोड़ सकता अपनी जिम्मेदारी से....


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9 टिप्‍पणियां:

  1. बेटी-बेटे में भेद करता यह समाज
    मुँह नहीं मोड़ सकता अपनी जिम्मेदारी से....

    सही बात है । इतनी स्वतन्त्रता और आधुनिकता मे भी यह भेदभाव हमारे बीच अब भी पैर पसारे हुए है। बहुत अफसोस होता है यह सब देख सुन कर।

    सादर

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  2. सम्बन्ध पुरुष और स्त्री का.
    होता बड़ा कोमल - भावनात्मक.
    जिसमे उठती हैं लहरें उमंग की,
    प्यार की, हास की, परिहास की.
    जैसे करते हैं पक्षी कलोल.
    कभी जल में तैरते, हवा में उड़ते.
    जमी पर फुदकते, घोसले में दुबकते.

    पुरुष होता जल रूप वह अपने,
    शोणित से करता है अभिसिंचित,
    उर्वरा मिटटी को, नारी कोख को.
    करता है चरितार्थ, देता है अर्थ,
    उसके नाम को, मान को,
    सम्मान और अभिमान को.

    स्त्री फूली नहीं समाती,
    इस अर्थबोध पर,
    वह है गर्विता और आह्लादित....
    अब है,
    सिंचित करने की उसकी बारी.
    वह सींचती है पुरुष के सत्व को,
    पोषित - पल्लवित करती है,
    उसके तत्त्व को, पुन्सत्त्व को.

    पुरुष और स्त्री के स्नेहिल वाटिका में,
    खिलते हैं - पुष्प, सहस्रदल कमल.
    जो सुगन्धित करते हैं, दोनों कुल को.
    तृप्त-संतृप्त करते हैं,सात पीढ़ियों तक को.

    परन्तु यही फूल,
    आज क्यों बन गया है शूल?
    आज पुरुष का पुन्सत्त्व
    और माँ की मातृत्व,
    क्यों कर रही है -
    एक भारी भूल? भयंकर भूल?

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  3. आज के समाज की भयावह विडम्बना।

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  4. kaash aaj naari apne aap me itna dam rakh le ki apni is tarah se prapt santan ko janm dene ke baad apna sake....us din ka intzar rahega.

    dukhad samachar.

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  5. बहुत मार्मिक और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...अन्दर तक झकझोर देती है..

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  6. सही है समाज को मुह मो
    ड़ना भी नहीं चाहिए.

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  7. मार्मिकता में लिपटा सच है......अनीता जी जिस संस्था में मैं काम करता हूँ 'पालना' जो अनाथ बच्चों का घर है और जहाँ बच्चे'गोद' दिए जाते हैं उसमे ऐसी ही चीजें हम लगभग रोज़ देखते हैं........कोई बिनब्याही माँ, कोई विक्षिप्त बाप, कोई मजबूर प्राणी उस अनाथ बालक को रात के अँधेरे में इस निर्मोही संसार में अकेला छोड़ के चला जाता है |

    पर प्रभु की असीम कृपा है की वही अनाथ बच्चे आज देश-विदेश में हैं और उच्च पदों पर भी हैं | आपने इस पर बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है........हैट्स ऑफ इसके लिए |

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