बुधवार, नवंबर 5

चाह जब जागे मिलन की

चाह जब जागे मिलन की 


निज आत्म में जागना है 

न कि जगत से भागना है, 

मिला बाहर, वही भीतर 

नहीं अब कुछ माँगना है !


भाव अपना शुद्ध हो जब 

प्रेम रस भीतर रिसेगा, 

मधुर प्रकाश ज्योत्सना का 

सहज उर से छन बहेगा !


श्रद्धा की भूमि ह्रदय में 

पुष्प कोमल भावना के, 

चाह जब जागे मिलन की 

भाव हों आराधना के !


वह अदेखा, वह अजाना 

निकट से भी निकट लगता, 

सुरभि सुमिरन की अनोखी 

पोर-पोर प्रमुदित होता ! 


माँग जो भी, वह मिला है  

तुझसे न कोई गिला है, 

कभी कुम्हलाया न अंतर 

जिस घड़ी से यह खिला है !


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