गुरुवार, दिसंबर 8

मृत्यु शैय्या पर पड़ा व्यक्ति


मृत्यु शैय्या पर पड़ा व्यक्ति

न जाने कितने जन्मों में
कितनी देहें धरी होंगी,
कितने सम्मान गहे होंगे
कितने अपमान सहे होंगे
कितनी बार रोये गिड़गिड़ाए होंगे
सब व्यर्थ गया....
हर रुदन ही नहीं, हर हास्य भी
जो उठा होगा मनचाहा कुछ पा लेने पर
कैसे-कैसे स्वप्न न देखे होंगे
सोई ही नहीं, जगती आँखों से भी
सब बेमानी हो गए.... !

मृत्यु शैय्या पर पड़े व्यक्ति के लिये
हर पीड़ा हर अपमान
क्या इस सत्य से पीठ फेर लेना नहीं था
अब चंद श्वासें ही शेष हैं तो
आ रहा है नजर चेहरा वृद्धा पत्नी का...
कितना कुम्हलाया सा...
जैसे बरसों से नजर ही नहीं गयी हो उस ओर
उस चेहरे की झुर्रियों में
कितनी ही तो दी हैं उसी ने तोहफे में...
कितनी पीड़ा कितने उपालम्भ
व्यर्थ ही दिये वाणी के दंश
व्यर्थ ही किये वाकयुद्ध... मौन युद्ध... !

और ये बच्चे... जताया बड़प्पन
जिनकी आँखें भरी हैं अश्रुओं से
कितना रुलाया इन्हें अपने मान की खातिर
भूल गया वह सारे दंश
जो जगत ने भी दिये होंगे उसे
पर वे सारे प्रतिदान थे... उसने माँगे थे...
यूँ ही नहीं मिले थे
कमाए थे उसने बड़े यत्न से
बड़े आयोजन किये थे इसके लिये
क्योंकि सारा जीवन तो बस
जीया था अपने लिए
उसकी दुनिया घूमती थी बस अपने इर्द गिर्द
वही धुरी था इस विश्व की
वही केन्द्र था जिसके चारों ओर घूम रहा था ब्रह्मांड
और आज छूट रहा था सारा साम्राज्य !

लेकिन अचानक पाया उसने, उतर गया है बोझ
अब वह नहीं है... केवल पूर्ण शांति है
मौत इतनी सुंदर है
उसे यकीन ही नहीं हुआ
जैसे ही आभास हुआ व्यर्थता का
अहंकार जैसे खो गया
और शेष रह गया अस्तित्त्व
नितांत मुक्त, शांत, आनंद मय अस्तित्त्व
जिसे न कुछ पाना है, न कुछ जानना है
न कुछ देना है, न कुछ लेना है
जो है, बस है और सहज है
उसी सहजता में कुछ घटता है
जो घटता है उसका अभिमान नहीं
जो नहीं घटता उसकी चाह नहीं
वह पूर्ण है अपने आप में पूर्ण...!





10 टिप्‍पणियां:

  1. काश यह दृष्टि मृत्यु शैया से पहले ही मिल जाती .. कुछ जीवन सुखी हो जाता .. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  2. आह कितना खूबसूरत चित्रण …………ज़िन्दगी से मौत तक के सफ़र को कैसे खूबसूरती से पिरोया है…………मौत तो विश्रांति काल है वो कोई अंत कहाँ………बहुत पसन्द आयी आज की रचना।

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  3. उसी सहजता में कुछ घटता है
    जो घटता है उसका अभिमान नहीं
    जो नहीं घटता उसकी चाह नहीं
    वह पूर्ण है अपने आप में पूर्ण...
    ....
    वाह दीदी
    शुक्र है भगवान का कि आप जैसा लेखन मौजूद है यहाँ ..बहुत लंबा सफर है अभी इस पूर्णता तक पहुँचने के लिए !!

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  4. बहुत ही सुन्दर पोस्ट.......दिल को अन्दर तक छू लेने वाली..........सलाम है आपको इसके लिए|

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  5. झझकोर दिया आपने तो . बहुत कुछ दिखने लगा . नेपथ्य का भी ..आपका आभार..

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  6. जीवन रहते मौत का स्मरण रहे तो ज़िन्दगी की सूरत ही कुछ और हो...!

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  7. ab bhi sambhal jaye to hamari khud par inayat hogi lekin insan pal bhar k liye badlaav mehsoos karta hai aur fir vahi chaal......

    bahut bahut acchhi prastuti.

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  8. और शेष रह गया अस्तित्त्व
    नितांत मुक्त, शांत, आनंद मय अस्तित्त्व
    गहरे अर्थों वाली रचना।

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