दूर कोई गा रहा है
कौन जाने आस
किसकी
किस बहाने आँख
ठिठकी
प्रीत की गागर
बना दिल
बेवजह छलका रहा
है !
चढ़ हवाओं के परों
पर
अनुगूँज मुड़ जाती
किधर
कौन उस पर कान
देगा
सुर मधुर बिखरा
रहा है !
बद्ध लय ना टूटती
है
अनवरत बहती नदी
है
मिल गयी निज
लक्ष्य से जब
मौन अब बस छा रहा
है !
(अभी-अभी दूर बैठे एक पक्षी की आवाज खिड़की से भीतर आ रही थी, फिर अचानक बंद हो गयी.)
सुन्दर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार कामिनी जी !
हटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.3.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3288 ,में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरूवार 28 मार्च 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार !
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब...
एक बेहतरीन पोस्ट लिखने के लिए धन्यवाद
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