शुक्रवार, नवंबर 25

हीरा मन

हीरा मन 


अँधेरे में टटोले कोई 

और हीरा हाथ लगे 

जो अभी तराशा नहीं  गया है 

पत्थर और उसमें  नहीं है कोई भेद

ऐसा ही है मानव का मन 

वही अनगढ़ हीरा लिए फिरता है आदमी 

अभी जड़ है देह 

और प्राणों में तीव्रता है उन्माद की 

जो  बहुत दूर नहीं ले जा पाती  

नकार की आदत 

हिंसा को जन्माती 

परिस्थितयां घिसेंगी पत्थर  को 

तो चमक उठेगा किसी  दिन  

पर अभी बहुत दूर जाना है 

कठोर राहों पर घिसाना है 

जब पारदर्शी होगा मन 

तो दुनिया भी आड़े नहीं आएगी 

भीतर कैद ज्योति 

पूरी शान से जगमगाएगी ! 

 

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी!

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  2. आध्यात्मिक चिंतन!
    सुंदर सराहनीय रचना।

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  3. जब पारदर्शी होगा मन
    तो दुनिया भी आड़े नहीं आएगी
    भीतर कैद ज्योति
    पूरी शान से जगमगाएगी !
    जीवन संदर्भ पर बहुत ही सार्थक और जरूरी चिंतन ।

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