शुक्रवार, जुलाई 9

बच्चों की पालना

उचित पालन-पोषण बनाम जिम्मेदार नागरिक

अंगरेजी में एक कहावत है कि ‘ चाइल्ड इज ऐज ओल्ड ऐज हिज एन्सेसटर्स’ अर्थात बच्चा उतना पुराना होता है जितने उसके पूर्वज. ईसा ने कितना सही कहा था कि बच्चे की शिक्षा-दीक्षा उसके जन्म से एक सदी पूर्व ही आरम्भ हो जाती है, उस समय भले ही उसका अस्तित्त्व न हो पर उसकी जड़ तो होती है. माता-पिता को संस्कार उनके पूर्वजों से ही मिलते हैं, उनके रहन-सहन, आचरण का असर निश्चित ही बच्चे पर पड़ने वाला है. पिता से भी अधिक माता का उत्तरदायित्व कहीं अधिक है, गर्भावस्था में बच्चे पर माँ की मानसिक भावनाओं व विचारों का बहुत असर पड़ता है. यदि माँ स्वस्थ, स्वच्छताप्रिय, मधुरभाषिणी, मेहनती व निष्ठावान है तो संतान आगे चलकर अवश्य ही श्रेष्ठ व प्रतिभावान होगी.
मानव जीवन के अनेकानेक कर्त्तव्यों में संतान उत्पन्न करना व उसका यथायोग्य पालनपोषण करना अत्यन्त महत्वपूर्ण है. भारत में आज भी बालविवाह की प्रथा जारी है जिससे कम उम्र में मातापिता बने युवक युवतियाँ इस कर्त्तव्य को ठीक से निभा नहीं पाते, जिसका कुपरिणाम सारे समाज को भोगना पड़ता है. आज देश में हजारों अनाथ व आवारा बच्चे हैं जिन्हें उचित देखभाल नहीं मिल रही है, यही बच्चे बड़े होकर समाज की शान्ति के लिये घातक सिद्ध हो सकते हैं. कहना न होगा कि आज के अपराधी प्रवृत्ति में लगे युवक यदि बचपन में अच्छे संस्कारयुक्त वातावरण में पाले गए होते तो न जाने इनमें से कितने योग्य, परोपकारी, समाजसेवी सभ्य नागरिक होते.
किसी देश का भविष्य उसकी भावी पीढ़ी पर निर्भर करता है. सुयोग्य बालक ही राष्ट्र के सुयोग्य नागरिक बनते हैं. बच्चों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास, अनुशासन और समर्पण, संस्कारवान माता के पालन से ही आती है. समाज में व्याप्त अनीति व भ्रष्टाचार को रोकने के लिये भावी पीढ़ी को चरित्रवान, ईमानदार तथा परिश्रमी बनाने का उत्तरदायित्व मातापिता का है. कर्मक्षेत्र में उतरने का अवसर मिलने पर जो सफलतापूर्वक अपना कर्तव्य निभाता है वही सच्चा नागरिक है. जो दूसरों का सम्मान करते हुए अपना सम्मान बनाये रखने में सक्षम हो वही अच्छा नागरिक है. जिन सदगुणों के आधार पर सम्मान पाया जा सकता है वे हैं- शिष्टता, परोपकार, स्वच्छता, सदाचार तथा व्यवस्था. इन गुणों का बीजारोपण बच्चों में आरम्भ से ही कर देना चाहिए. बच्चों का मानस इतना कोमल होता है कि उसमें बोये बीज आसानी से पनप जाते हैं. उन्हें बचपन से ही ऐसे वातावरण में रखा जाना चाहिए जिससे उनमें उदार भावनाओँ का जन्म हो. घर में किसी भी तरह का भेदभाव न हो, लड़का-लड़की दोनों को शिक्षा का अधिकार मिले, अन्यथा बच्चों में न्याय के प्रति अश्रद्धा कि भावना आ जाती है.
बच्चों से क्रम से ऐसे काम लेने चाहिए जिनसे उनमें जिम्मेदारी का भाव पनपने लगे. उनको रहन-सहन उठने-बैठने का एक सलीका सिखाना चाहिए. शिष्टाचार व मेलजोल सिखाने के लिये उन्हें मित्रोँ व सम्बधियों के यहाँ ले जाना चाहिए. बालक को भी अपने मित्रों को घर बुलाकर भोजन कराने का अवसर देना जरूरी है इससे उनमें सामाजिकता और आपसी सौहार्द उत्पन्न होगा. उनके नैतिक विकास के लिये अच्छी पुस्तकें पढ़ने की आदत बचपन से डालनी चाहिए.
बच्चों का निर्माण मातापिता अपनी वाणी से नहीं अपने आचरण से भलीभाँति कर सकते हैं. प्रसिद्ध बाल मनोवैज्ञानिक आर्थर डिन्गले ने कहा है ‘बालक उस पर अमल नहीं करता जो कुछ आप कहते हैं, बल्कि वह तो उससे सीखता है जो आप करते हैं. यदि मातापिता अपने दैनिक जीवन में पड़ोसियों, संबधियों तथा समाज के अन्य लोगों की निंदा करते रहते हैं तो बच्चे भी समाज विरोधी व क्रोधी स्वभाव के हो जाते हैं. यदि मातापिता जानबूझ कर या अनजाने में अपने बच्चों के सामने झूठ बोलते हैं तो बड़े होकर उनसे सच्चाई की उम्मीद रखना व्यर्थ है. वैसे प्रत्येक बच्चे के स्वभाव, संस्कार, मूल प्रवृत्तियों में अपनी कुछ न कुछ विशेषतायें होती हैं, फिर भी जैसे एक माली खाद-पानी देकर काट-छांट कर पौधे को अधिक उपयोगी व फलदायी बना सकता है, वैसे ही प्रत्येक बच्चा अपनी प्रतिभा को विकसित कर एक श्रेष्ठ नागरिक बन सकता है. उसके निर्माण पर ध्यान न देने से होनहार बालक भी अविकसित रह सकता है. प्रत्येक बच्चे में एक जन्मजात प्रतिभा होती है, यदि उसको बढ़ावा दिया जाये तो वह एक दिन असाधारण स्थिति प्राप्त कर सकता है.
बच्चों का सही ढंग से पालन करने के लिये उनके निर्वाह के लिये साधन जुटाने के अलावा तीन बातें विशेष रूप से आवश्यक हैं – प्रेम, अनुशासन तथा स्वतंत्रता. ये क्रमश बच्चे के हृदय, चरित्र तथा व्यक्तित्व को अभिसिंचित करती हैं, तथा उन्हें एक सही दिशा देकर एक जिम्मेदार नागरिक बनने में मदद करती हैं. प्रत्येक मातापिता अपने बच्चे से प्रेम करते हैं पर उस प्रेम की अभिव्यक्ति इस प्रकार होती है कि या तो अधिक लाड़-प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं या उनमें आत्मविश्वास की कमी रह जाती है. कुछ मातापिता अधिक लाड़-प्यार के कारण उनकी गलतियों की तरफ से आंखें मूंद लेते हैं, कुछ हर बात पर टोकते रहते हैं. प्रेम और अनुशासन का संतुलन बच्चों को बुराइयों के प्रति सजग रहना तथा अच्छाइयों के लिए लगाव रखना सिखाएगा. इसी तरह बच्चे को खुली छूट देना या बिलकुल स्वतंत्रता न देना दोनों गलत हैं. मातापिता को कदम-कदम पर बच्चे के सही विकास के लिये सोच समझ कर निर्णय लेने होंगे.
आज समाज में जो अफरा-तफरी मची हुई है, सामाजिक मूल्य खोते जा रहे हैं, कानून का पालन नहीं होता, अपराध बढ़ रहे हैं, प्रदूषण का स्तर बढता जा रहा है, विद्यार्थी आत्महत्या जैसा घृणित कदम उठाने लगे हैं. स्पष्ट है कि आज के नागरिक जिम्मेदार नहीं हैं, तुच्छ स्वार्थ के कारण वे अपने कर्त्तव्यों को भुला बैठे हैं. इन सबके पीछे गहराई से देंखे तो पता चलता है कि जिस वातावरण में उन्हें पाला गया वहाँ सच्चाई, ईमानदारी, पारदर्शिता तथा परोपकारिता जैसे गुणों को सिखाने की कोई व्यवस्था नहीं थी. आज न तो मातापिता के पास इतना समय है न शिक्षक इतने आदर्शवादी हैं जो बच्चों में अच्छे मूल्यों की स्थापना करें. किन्तु निराश होने की आवश्यकता नहीं है, आज भी समाज को राह दिखाने वाले संत तथा विद्वान मौजूद हैं जरूरत है सजग रह कर उनसे मार्गदर्शन ग्रहण करने की ताकि भावी पीढ़ी को सही ढंग से पाला जा सके.

अनिता निहालानी

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