शुक्रवार, सितंबर 19

दुख या प्रेम

दुख या प्रेम 


दुख का अंत कैसे होता है ?

क्या ऐसा कभी हुआ भी है ?

या हो सकता है ?


हाँ, यह संभव है

प्रेम में !

पर इसके लिए

रहना होगा शुद्ध वर्तमान में

जहाँ कोई विचार नहीं 

स्मृति नहीं 

चाह नहीं 

प्रतिरोध नहीं 

भीतर कोई गति नहीं 

वहीं तो प्रेम ‘है’ !


दुख अभाव से उपजता है 

अभाव केवल एक विचार है 

क्योंकि उसका ‘होना’ सदा है 

उसमें कुछ जोड़ा नहीं जा सकता 

उसमें से कुछ घटाया नहीं जा सकता 

होना और न होना दोनों में 

कोई मेल नहीं !

उनके मध्य नया कुछ भी नहीं 

या तो सब अतीत है

या बस शुद्ध ‘अब’ 

‘होना’ पूर्ण है 

प्रेम के लिए ‘होना’ ज़रूरी है और 

होने के लिए विचार से स्वतंत्रता 

अंततः स्वतंत्रता ही प्रेम है !


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