शनिवार, सितंबर 10

जिसमें किसलय परम खिलेगा


जिसमें किसलय परम खिलेगा


मन क्या है ? बस एक सवाल
जिसका उत्तर कोई नहीं है,
मन क्या है ? बस एक ख्याल
होना जिसका कहीं नहीं है !

मन बंटवाता, मन उलझाता
दुःख के काँटों में बिंधवाता,
कभी हवाई किले बनाकर
मिथ्या स्वप्नों में भरमाता !

बीत गया जो भूत हो गया
मन उससे ही चिपटा रहता,
जो भावी है अभी न आया
दिवास्वप्न में खोया रहता !

क्यों न मन से नजर मिलाएं
उसके आर-पार देखें हम,
प्रीत की जिस झालर को ढके है
उसको तार-तार देखें हम !

मन खाली हो जाये अपना
तब इक जीवन नया मिलेगा,
इक उपवन सा पनपे भीतर  
जिसमें किसलय परम खिलेगा ! 

7 टिप्‍पणियां:

  1. क्यों न मन से नजर मिलाएं
    उसके आर-पार देखें हम,


    आपको बहुत बहुत बधाई --
    इस जबरदस्त प्रस्तुति पर ||

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  2. मन खाली हो जाये अपना
    तब इक जीवन नया मिलेगा,
    इक उपवन सा पनपे भीतर
    जिसमें किसलय परम खिलेगा

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  3. यही सार है जीवन का, सुंदर और गूढ़ अर्थ समेटे हुए रचना......

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  4. बीत गया जो भूत हो गया
    मन उससे ही चिपटा रहता,
    जो भावी है अभी न आया
    दिवास्वप्न में खोया रहता !

    बहुत सुन्दर कविता है अनीता जी............अतीत से ही अधिक लगाव रखता है मन...........कभी ये कचोट की जो पाया जा सकता था वो पाया नहीं.........कभी ये कमी की जो पाया था वो खो दिया........बहुत ही सुन्दरता से मन की दुर्बलता को बयान किया है .........हैट्स ऑफ

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  5. अतीत को अंदर समेटे जीने कि बलवती होती इच्छा. बेहद अर्थ भरी प्रस्तुति

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